मेहनती चींटियाँ
बाल साहित्य | बाल साहित्य कविता डॉ. आर.बी. भण्डारकर1 Jan 2021
चींटी रानी, चींटी रानी
रहती हो हरदम कुछ ढोती,
चलती रहती हो तुम हरदम
लगता है तुम कभी न सोती।
श्वेत ही श्वेत तुम्हारे अंडे
ढो कर इन्हें कहाँ ले जाती,
बिल तो बहुत बड़े, गहरे भी
फिर भी इधर उधर क्यों जाती।
बहुत बड़ी यह लाइन तुम्हारी
कुछ आती हैं तो कुछ जाती,
एक दूसरे के कानों में
चींटी रानी क्या कह जाती।
आज बताई है दादी ने
मुझे सही योजना तुम्हारी,
अभी फ़सल आने का मौक़ा
खाद्यान्न की है भरमारी।
आगे मौसम है वर्षा का
आना-जाना होगा भारी,
ढेरों अन्न इकट्ठा करती
यह वर्षा ऋतु की तैयारी।
समझ हमारी में भी आया
पक्का सबक़ तुम्हीं से पाया,
मेहनत सदा काम आती है
व्यर्थ नहीं युक्ति जाती है।
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