अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

सौवीं कहानी

(लघुकथा / लघुनाटक)

 

"लघुकथा के इस मंच पर स्वागत है, मंजुल जी आपका।"

"जी,धन्यवाद।"

"मंजुल जी! आप लघुकथा का पाठ करें, इससे पहले हम अपने श्रोताओं को आपका एक वीडियो दिखाना चाहेंगे, आप सहमत हैं?"

"जी, दिखाइए, दिखाइए।"

(वीडियो चालू होता है।)

(बैठक में पूर्व और पश्चिम की दीवालों से सटे थ्री सीटर सोफ़े लगे हुए हैं। उत्तर की ओर की दीवाल से सटा सिंगल सीटर सोफ़ा है तो दक्षिण की दीवाल से सटे सुसज्जित रैक पर नए ज़माने का बड़ा एल ई डी टीवी रखा हुआ है। पश्चिमी दीवाल के सहारे सोफ़े और रैक के बीच एक दीवान बिछा हुआ है। श्रीमती मंजुल जी दीवान पर बैठी अख़बार पढ़ रही हैं।)

उनके पति आकर दीवान से सटे वाले सोफ़े पर बैठ जाते हैं।

श्रीमती मंजुल- "हो गया सवेरा? हद हो गयी, कितना सोते हैं आप?"

"कहाँ अधिक सोया; अभी सवा छह ही तो बजे हैं।"

(मंजुल जी अख़बार दीवान पर रखते हुए) "चाय पियेंगे?"

"जी, आधा कप।"

"जीss आधा कप! कितनी बार कहा, चाय मत पिया करो, नुक़सान करती है आपको, मानते ही नहीं।"

(मंजुल जी अंदर की ओर जाती हुई दिखतीं हैं।...थोड़ी देर बाद चाय लाती हुई दिखती हैं, बैठक में आते ही चाय का कप पति के सामने टी टेबल पर रखकर पति से अख़बार झटक लेती हैं।)

"आप चाय पियो।"

(पतिदेव अख़बार के सहपत्र 'स्टार,' 'सिटी चर्चा' उठा लेते हैं। उन्हें ही पढ़ने लगते हैं; साथ ही चाय भी पीते जाते हैं।)

मंजुल जी अख़बार पढ़ते हुए- "अरे हद हो गयी। सब्ज़ियों के भाव तो आसमान छू रहे हैं।... यह लो, फिर हो गयी कवर्ड केम्पस में चोरी।.. एक्सीडेंट! क्या हो रहा है शहर में? रोज़ दो चार एक्सीडेंट हो ही जाते हैं।... (सिर उठाकर बाहर की ओर देखते हुए)
"फिर बादल छाए हुए हैं, लगता है आज पानी फिर बरसेगा।"

(अब मंजुल जी पति की ओर देखती हैं जो चाय ख़त्म करने के बाद उन्हीं की ओर टकटकी लगाकर देख रहे होते हैं।)

"क्या हुआ? .....मुझे क्यों घूर रहे हो?"

"घूर नहीं रहा हूँ प्रभु, प्रतीक्षा कर रहा हूँ... यह टेप रिकॉर्डर बन्द हो, तो मैं भी कुछ पढ़ पाऊँ।"

(वीडियो फ़ेड आउट होता है।)

सूत्रधार-"हा हा हा हा..घर घर की यही कहानी है।... कोई बात नहीं मेरे घर भी ऐसा होता है।"

श्रीमती मंजुल पहले कुछ झेंपती-सी हैं, फिर सूत्रधार के साथ साथ ठहाके लगा कर हँसने लगती हैं।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

105 नम्बर
|

‘105’! इस कॉलोनी में सब्ज़ी बेचते…

अँगूठे की छाप
|

सुबह छोटी बहन का फ़ोन आया। परेशान थी। घण्टा-भर…

अँधेरा
|

डॉक्टर की पर्ची दुकानदार को थमा कर भी चच्ची…

अंजुम जी
|

अवसाद कब किसे, क्यों, किस वज़ह से अपना शिकार…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा

कविता

चिन्तन

कहानी

लघुकथा

कविता - क्षणिका

बच्चों के मुख से

डायरी

कार्यक्रम रिपोर्ट

शोध निबन्ध

बाल साहित्य कविता

स्मृति लेख

किशोर साहित्य कहानी

सांस्कृतिक कथा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं