शकुनि को जीवन से निकाल दीजिये
काव्य साहित्य | कविता संजय कवि ’श्री श्री’15 Mar 2020
शकुनि को
जीवन से निकाल दीजिये।
सुविधा देख
स्वयं गढ़ेगा
धर्म के नए मापदंड
षडयंत्र का पर्याय
ये शकुनि
जब सलाहकार होगा,
अरि का प्रचंड वार होगा;
पराजय से पहले
स्वयं को सँभाल लीजिये;
शकुनि को
जीवन से निकाल दीजिये।
विस्मरण न हो
महाभारत का
जाने कितने
रथी महारथी
घोर धनुर्धर
वीर गदाधर
अपयश मस्तक मढ़े
इसकी भेंट चढ़े
ऐसा महाविष है
ये शकुनि
चेतिये, विष न पीजिये;
शकुनि को
जीवन से निकाल दीजिये।
आवश्यक नहीं मामा हो,
हो सकता है
मित्र सम्बन्धी सहोदर या भ्राता हो;
किन्तु शकुनि है,
हर युग में होता है
क्योंकि शकुनि अमर है,
आप इसे मार नहीं सकते,
आड़ लिए मर्यादा का
कुटिल स्वांग करता है,
स्वजनों के सुख चैन हरता है;
ये शकुनि
इसका त्याग कीजिये;
शकुनि को
जीवन से निकाल दीजिये।
शकुनि को
जीवन से निकाल दीजिये।
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