अधूरी दीवारें
काव्य साहित्य | कविता प्रांशु वर्मा15 Dec 2024 (अंक: 267, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
कभी सुना है तुमने,
कि किसी का प्यार ऐसे चुपचाप,
एक दोस्ती की ख़ामोशी में दफ़न हो जाए,
जैसे कोई नदी प्यास से सूख जाए,
और उसके किनारे बस एक काग़ज़ी कश्ती रह जाए,
जो कभी किसी ने चलाने की कोशिश भी ना की हो।
वो हँसती है,
मेरी बातों पर ऐसे जैसे मैं मज़ाक कर रहा हूँ,
जैसे दिल की ये धड़कनें
कोई बेवुक़ूफ़ी भरी कहानी हों,
वो किसी और से प्यार करती थी,
और मैं उसकी हर मुस्कान को सजाता,
एक सफ़ेद चादर पर गुलाब की पंखुड़ियों सा।
कहती थी,
“तुम अच्छे हो, “
अरे! कोई पूछे उससे,
क्या उसे मालूम है
कि अच्छे होने का इनाम कभी इश्क़ नहीं होता।
अच्छे लोग अक्सर अधूरे रह जाते हैं,
अधूरे लोग अक्सर सच्चे रह जाते हैं।
वो मेरे घर नहीं आती,
मैं भी उसके घर के पास से नहीं गुज़रता,
मगर इस शहर की सड़कों पर
हमारी यादें अक्सर टकरा जाती हैं।
उसकी हँसी की आवाज़,
अब भी मेरे कानों में घुली रहती है,
जैसे कोई पुराने रेकॉर्ड पर बजता हुआ गाना,
जो कभी ख़त्म नहीं होता।
मैंने सोचा था,
मौत शायद उसे यक़ीन दिला दे,
मगर मेरी क़ब्र पर फूल रखते हुए भी
उसकी आँखों में वही पुरानी दोस्ती थी।
मुझे देख कर भी ना देख पाने का हुनर,
शायद उसने किसी और से सीखा था।
वो चली गई,
मेरे नाम पर एक काँटा छोड़कर,
जैसे ये उसकी आख़िरी सज़ा हो मुझे,
या शायद आख़िरी तोहफ़ा।
उसकी दोस्ती का कर्ज़ अदा करने की कोशिश में,
मैंने अपना सब कुछ खो दिया,
और उसने कह दिया,
“तुम अच्छे हो,
पर ये प्यार नहीं है।”
कहानी ख़त्म नहीं होती,
कहानी कभी ख़त्म नहीं होती,
वो जीती रही, मैं मरता रहा,
और इस तन्हाई के शहर में
मेरे और उसके नाम की इमारतें बनती रहीं,
ढहती रहीं,
क्योंकि इश्क़ के शहर में,
अक्सर ये दोस्ती की दीवारें खड़ी रह जाती हैं,
मगर छत कभी नहीं बनती।
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अरूण कुमार प्रसाद 2024/12/22 09:37 AM
दोस्ती और प्यार एक सिक्के के दो पहलू नहीं है।पहल करनी चाहिये।