इस माटी का स्वर्ग
काव्य साहित्य | कविता प्रांशु वर्मा15 Jan 2025 (अंक: 269, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
तुम कहते हो—
स्वर्ग सफ़ेद धुएँ में उड़ता है,
जहाँ दूध की नदियाँ बहती हैं।
हम कहते हैं—
हमारे खेतों की नदी,
बूँद-बूँद तरसती है।
हमारे पास दूध नहीं,
महुआ का रस है,
जो हमारे दुखों को सहलाता है।
तुम्हारी घंटियाँ सोने की हैं,
जो बड़े मंदिरों में गूँजती हैं।
हमारे लिए तो सूखे पत्ते हैं,
जो हमारे पैरों के नीचे
जीवन का संगीत रचते हैं।
तुम्हारे मंत्र त्याग के हैं,
हमारे मंत्र जीवन के।
तुम्हारे लिए स्वर्ग वहाँ है,
जहाँ बलिदान का ढोल बजता है।
हमारे लिए—
हर बीज, हर फ़सल बलिदान है।
तुम्हारे ठेकेदार कहते हैं,
धरती छोड़ो, आसमान देखो।
हम कहते हैं—
धरती को छोड़कर कौन आसमान छू पाया?
हमारे झोपड़े टपकते हैं,
पर इन्हीं के नीचे
हमने पुरखों की कहानियाँ सुनी हैं।
तुम्हारी किताबों में स्वर्ग चमकता है,
हमारी कहानियाँ मिट्टी से सनी हैं।
हमारी थाली में सुख नहीं,
बस कड़ी धूप की रोटी है।
तुम्हारे लिए स्वर्ग एक व्यापार है,
हमारे लिए जंगल की साँझ
एक देवता की तरह है।
तुम कहते हो, स्वर्ग कहीं और है।
हम कहते हैं, यह माटी ही हमारा स्वर्ग है।
तुम्हारे वादे—
झूठे, धुएँ की तरह उड़ते।
हमारी मेहनत—
नदियों की तरह बहती।
तुम्हारा स्वर्ग सोने की दीवारों में है,
हमारा स्वर्ग इस जंगल की गहराई में।
तुम जाओ,
अपने स्वर्ग को खोजो।
हम यहीं रहेंगे,
इस धरती की गोद में,
इस माटी को जीवन बनाते हुए।
यही जंगल, यही नदियाँ, यही मिट्टी—
हमारा स्वर्ग है।
यहीं हम जिएँगे,
यहीं मरेंगे,
यहीं अमर हो जाएँगे।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
कविता - हाइकु
नज़्म
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं