अग्निपथ की प्रार्थना
काव्य साहित्य | कविता प्रांशु वर्मा1 Dec 2024 (अंक: 266, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
हे मेरे भाग्य,
तुम मत देना मुझे आसान राहों का रास्ता,
तुम देना काँटों से भरी सँकरी पगडंडियाँ,
ताकि मैं चलने का हुनर सीख सकूँ,
हर काँटे को पार कर, अपने पैरों में
अटल धैर्य के जूते पहन सकूँ।
तुम देना चट्टानों का कठोर सहारा,
न कि समतल, रेशमी घास का बिछौना,
क्योंकि मुझे सीखना है उस जगह खड़ा होना,
जहाँ धरती फिसलती है, और पाँव टिकते नहीं।
ताकि हर क़दम पर मैं स्फूर्ति से जाग सकूँ,
अपने भीतर साहस की मशाल जला सकूँ।
मत देना मुझको उजाले का स्पर्श,
तुम देना घने कोहरे और स्याह अंधकार की धुँध,
ताकि मैं अपनी रोशनी ख़ुद खोज सकूँ,
तारों को अपने दिल में समेट सकूँ।
तुम देना तपते रेगिस्तान की जलती रेत,
ताकि मैं ओस की बूँदों के लिए तरसूँ,
और हर बूँद की क़ीमत समझ सकूँ।
तुम देना वो पहाड़ जिनकी चोटी देखी न जा सके,
ताकि मैं अनंत की ओर चढ़ाई कर सकूँ।
हर मोड़ पर, हर मुश्किल पर, मैं
अपने पुरुषार्थ की अचूक तलवार चला सकूँ।
तुम मत देना कोई ऐसा सहारा
जो मुझे निर्भर बना दे।
तुम देना वो ख़ालीपन,
जिसमें मैं ख़ुद का सहारा बन सकूँ।
हे भाग्य, तुम मुझ पर दुखों के बादल लाकर बरसाओ,
ताकि मैं अपने भीतर के सूखे खेतों में
संघर्ष का अंकुर बो सकूँ।
तुम मत देना किसी देवता का वरदान,
तुम देना संघर्ष का घनघोर अभियान,
ताकि मैं अपने कर्मों की पूजा कर सकूँ।
न देना मुझे भीड़ का समर्थन,
तुम देना अकेलेपन की गहरी खाई,
ताकि मैं अपने साथ चलना सीख सकूँ।
तुम देना मुझे वो रातें जिनमें चाँद न हो,
ताकि मैं अपने भीतर का चिराग़ जला सकूँ।
मत देना तुम मुझको फूलों की महक़ती बग़िया,
तुम देना वीरान बीहड़ों की मिट्टी,
ताकि मैं वहाँ मेहनत से हरियाली ला सकूँ।
क्योंकि मैंने सुना है,
जो ख़ुद बीज बोता है, वही सच्चा बाग़बान बनता है।
हे मेरे भाग्य,
तुम मत देना मुझे सहज, सरल बहते झरने,
तुम देना सूखी हुई, पथरीली नदी,
ताकि मैं अपने पसीने से उसको भर सकूँ,
अपने हौसले से उसमें लहरें ला सकूँ।
तुम मत देना कोई मंज़िल की सीधी राह,
तुम देना अनगिनत रास्ते,
ताकि मैं अपनी मंज़िल ख़ुद चुन सकूँ,
और हर राह को अपने क़दमों से माप सकूँ।
तुम देना वो विपदाएँ, जो मेरे हौसले की परीक्षा लें,
ताकि हर असफलता में मैं सफलता की ज्योति देख सकूँ।
क्योंकि मेरा सफ़र वही सही मायने में सफ़र होगा,
जो मेरे क़दमों के निशान छोड़ जाए।
तुमसे बस इतनी विनती है,
कि तुम मुझे कमज़ोर न बनाओ,
ताकि मैं अपने अस्तित्व का असली अर्थ जान सकूँ।
तुम मुझे देना तपता हुआ रेगिस्तान,
ताकि मैं उसमें अपने संघर्ष के सागर बहा सकूँ।
तुम मत देना आसान जीवन,
तुम देना जटिल पहेलियाँ,
ताकि मैं ख़ुद को हर जवाब में पा सकूँ।
हे मेरे भाग्य,
तुमसे ये ही प्रार्थना है कि
तुम मुझे मेरे हिस्से का संघर्ष देना,
ताकि मैं अपने पुरुषार्थ से,
अपना जीवन ख़ुद लिख सकूँ।
क्योंकि मैं चाहता हूँ,
हर दर्द के साथ बढ़ता रहूँ,
हर काँटे के संग निखरता रहूँ।
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