अश्रु अग्नि
काव्य साहित्य | कविता प्रांशु वर्मा15 Dec 2024 (अंक: 267, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
जब भी आँखों से आँसू बहें,
उन्हें यूँ ही बिखरने मत दो,
हर एक बूँद में छिपा है एक तूफ़ान,
इसे पहचानने दो, महसूसने दो।
ये आँसू कमज़ोरी नहीं हैं,
ये हमारी आत्मा की जड़ें हैं,
जो संघर्ष की ज़मीन में धँसी हुई,
गहराई से धड़क रही हैं।
इनमें छुपी है वो आग,
जो कभी बुझाई नहीं जा सकती।
जब आँसू गिरते हैं,
तो वो सिर्फ़ ज़मीन गीली नहीं करते,
बल्कि उस मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं,
जहाँ एक नई उम्मीद का पौधा उग सके।
वो सड़कों की बंजर ज़मीन पर,
नई हरियाली लाने की क़ाबिलियत रखते हैं।
सत्ता के महल हिल सकते हैं,
क्योंकि आँसुओं में वो शक्ति है,
जो किसी चट्टान को भी पिघला सकती है।
रो लो जितना चाहो,
मगर रोने के बाद उठो,
और अपना रास्ता तय करो।
तुम्हारे आँसुओं में छिपी है वो चिंगारी,
जो इंक़िलाब को सुलगा सकती है।
सुनो, आँसू सिर्फ़ दर्द नहीं हैं,
ये एक ऐसी चिंगारी हैं,
जो धरती के सीने में गहरी उतरी है,
जो हर अन्याय और हर ज़ुल्म को जला सकती है।
तुम अकेले नहीं हो,
हर आँसू यहाँ एक आवाज़ है,
एक कहानी है,
जो सदियों से सुनाई नहीं गई।
हम सबके आँसू मिलकर,
बेड़ियों को पिघला सकते हैं,
ज़ंजीरों को तोड़ सकते हैं।
आज अगर तुम्हारे दिल ने तुम्हें रोने दिया,
तो कल तुम्हारी आवाज़ गूँजेगी,
तुम्हारे आँसू हथियार बनेंगे,
और कोई भी अन्याय तुमसे छुप नहीं पाएगा।
आँसू अमृत हैं,
जागृति का प्रतीक,
वो जो सिर्फ़ हमारे नहीं,
हम सबके संघर्ष का ऐलान हैं।
हर एक आँसू को सहेज कर रखो,
क्योंकि एक दिन ये सब मिलकर,
सत्ताधीशों की दीवारों को गिरा देंगे,
और एक नई, सशक्त दुनिया बनाएँगे।
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