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चंद्रमौली

 

“अरे! कामदा . . .! 

“मौली अब सत्रह वर्ष का हो गया है और तुम उसे अभी तक अपने हाथ से खिला रही हो,” बैजूनाथ ने हँसते हुए कहा। 

“सत्रह वर्ष का हो गया है तो क्या हुआ? रहेगा तो मेरा बेटा ही। जब तक मौली मेरे हाथ से खाना ना खाये तब तक इसका पेट नहीं भरता और मेरा जी नहीं भरत,” कामदा अपने बेटे चंद्रमौली के माधे को चूमकर बोली। 

बैजूनाथ और कामदा के विवाह के चौदह वर्ष बाद चंद्रमौली पैदा हुआ था। इतने वर्षों बाद कामदा की गोद हरी हुई थी सभी के आँखों का तारा था चंद्रमौली . . . और कामदा के तो प्राण बसे हुए थे अपने बेटे में। 

“कामदा! गाँव में महामारी फैली हुई है। आज सुबाहु का फोन आया था बता रहा था चारों तरफ़ हाहाकार मचा हुआ है। अगर तुम कहो तो सुबाहु और उसकी पत्नी को अपने पास रहने के लिए बुला लूँ। वरना सुबाहु सोचेगा कि भ‍इया ने एक बार भी नहीं कहा कि यहाँ चले आओ,” बैजूनाथ ने कामदा से कहा। 

“सुबाहु की पत्नी कितनी झगड़ालू है दो वर्ष पहले जब वह आई थी तब हमारे रहन-सहन को लेकर ताने मार रही थी। कह रही थी कि आप सब कितने मज़े से रहते हो और एक हम है जो गाँव में पड़े है,” कामदा ने बैजूनाथ से कहा। 

बैजूनाथ कामदा को समझाते हुए बोले, “कहने दो। उसका स्वभाव ही ईर्षालु है लेकिन सुबाहु ऐसा नहीं है। वह सब जानता है कि मैंने गाँव में अपने हिस्से की ज़मीन उसे दे दी और यहाँ जो भी है मेरी मेहनत का है इसलिए सुबाहु की पत्नी को ईर्ष्या करने का कोई अधिकार नहीं है लेकिन कोई किसी के स्वभाव को नहीं बदल सकता। तुम सुबाहु की पत्नी की बातों पर ध्यान मत दो। सुबाहु मेरा छोटा भाई है यदि इस महामारी में सुबाहु और उसके परिवार को कुछ हो गया तो मैं स्वयं को कभी क्षमा नहीं कर पाऊँगा।” 

“ठीक है तो बुला लीजिए सुबाहु को परिवार समेत,” कामदा ने कहा। 

सुबाहु महामारी से बचने के लिए गाँव से अपनी पत्नी और दोनों बेटो समेत, अपने बड़े भाई बैजूनाथ के घर रहने के लिए आ गया। 

सुबाहु की पत्नी त्रिया की आँखें घर के सभी कोनों को कुटिलता से निहार रही थीं। उसके मन में लालच और ईर्ष्या दोनों साथ-साथ पक रही थी। 

एकांत में त्रिया ने अपने पति सुबाहु से कहा, “देखो तुम्हारे बड़े भाई कितने ठाठ से रहते हैं और हमें गाँव में सड़ने के लिए छोड़ दिया। कभी यह भी नहीं कहा कि आकर हमारे साथ रहो।” 

“कैसे कहेंगे? तुम्हारे स्वभाव से सभी भली-भाँति परिचित हैं तुम्हारा ईर्षालु स्वभाव एक दिन तुम्हें ले डूबेगा,” सुबाहु ने ग़ुस्से में त्रिया से कहा। 

त्रिया बुरा मुँह बनाकर वहाँ से चली गई लेकिन उसने अपनी कुटिलता नहीं छोड़ी। 

वह अपने दोनों बेटो को भड़काती रहती जिसके कारण त्रिया के दोनों बेटो के मन में लालच का अंकुर फूट पड़ा। 

भादों की अँधेरी रात बिजली कड़क रही थी। कामदा अपने पति बैजूनाथ की राह ताक रही थी। 

“मौली! अपने पिताजी को फोन करके पूछो, कहाँ है वो? अभी तक नहीं आये। रात हो गयी है और मौसम भी ख़राब हो रहा है,” कामदा चिंतित स्वर में बोली। 

अचानक फोन की घंटी बजी और कामदा ने जल्दी से फोन उठा लिया। दूसरी ओर से आवाज़ आयी कि बैजूनाथ का सड़क दुर्घटना में देहान्त हो गया है। कृपया आप तुरंत अस्पताल पहुँचें। कामदा बेहोश होकर गिर पड़ी चंद्रमौली ने एक ग्लास पानी लाकर कुछ छीटे अपनी माँ के चेहरे पर मारी। 

कामदा होश में आ गयी थी। लेकिन उसकी हरी भरी दुनिया उजड़ चुकी थी। बैजूनाथ के देहांत के बाद त्रिया और उसके दोनों बेटो ने चंद्रमौली को परेशान करना शुरू कर दिया। त्रिया किसी ना किसी बहाने कामदा को ताने मारती, सुबाहु ना चाहते हुए भी चुप रहता। कामदा अन्दर से टूट रही थी उससे चंद्रमौली का बुझा हुआ चेहरा नहीं देखा जाता था। 

चंद्रमौली अब बहुत डरा-सहमा रहता था। त्रिया और उसके दोनों बेटे उसे किसी ना बहाने से डाँटते रहते, कामदा का स्वास्थ्य भी ख़राब रहने लगा जिसके कारण धीरे-धीरे कामदा सूखकर पिंजर हो गयी और घर में त्रिया और उसके बेटों का राज आ गया। पैसा अच्छे-अच्छों की मति भ्रष्ट कर देता है। सुबाहु को पैसे की गंध लग गयी थी अब वह भी मौन रहकर त्रिया का साथ देता। चंद्रमौली के जीवन में दुखों का ज्वार आने वाला था। 

ठीक से इलाज ना होने से कामदा की मृत्यु हो गयी और चंद्रमौली अकेला रह गया। कामदा की मृत्यु के कुछ हफ़्ते बाद त्रिया ने चंद्रमौली को धक्के देकर घर से निकाल दिया। 

चंद्रमौली रोता रहा अपनी चाची त्रिया के पैर भी छुये कि मुझे घर से मत निकालो पर ममता से विहिन त्रिया का बंजर हृदय नहीं पसीजा। 

चंद्रमौली बेहताशा भागता जा रहा या पता नहीं कहाँ जाना है? बस भागता ही जा रहा था। रात हो गयी थी चंद्रमौली को बहुत भूख लग रही थ॥ चारों तरफ़ सन्नाटा ही सन्नाटा, भागते-भागते शहर से बहुत दूर निकल आया था वो। 

दूर से रोशनी दिखाई दे रही थी चंद्रमौली रोशनी की ओर चला जा रहा था। पास आकर देखा तो श्मशान में चारों ओर चिताएँ जल रहीं थीं। चंद्रमौली डर से आँखें फाड़कर चारों ओर का दृश्य देख रहा था। डर से वह वापस लौटने लगा तभी उसकी दृष्टि एक खेत पर पड़ी। खेत में भुट्टे की फ़सल थी। चंद्रमौली ने कुछ भुट्टे तोड़े और उनके दाने छीलकर मुँह में डालने लगा। लेकिन दाने कच्चे थे इसलिए वह ज़्यादा नहीं खा सका। भूख के मारे चंद्रमौली बिलबिला रहा था। 

तभी उसके मन में कुछ विचार आया और वह पलट कर श्मशान की ओर चल दिया। एक चिता जो जल चुकी थी बस थोड़े अंगारे जल रहे थे उसी चिता पर चंद्रमौली भुट्टे भूनकर खाने लगा। 

चंद्रमौली जल्दी-जल्दी भुट्टे खा रहा था तभी उसको कुछ आभास हुआ और वह भुट्टे खाना छोड़कर सामने देखने लगा। चंद्रमौली की चीख निकल गई ,भुट्टा हाथ से गिर गया। एक अघोरी श्मशान की राख को शरीर से लपेटे खड़ा था। 

“बेटा! कौन हो तुम? और यहाँ क्या कर रहे हो?” अघोरी ने चकित होकर पूछा। 

“मैं . . .मैं . . .” चंद्रमौली डर के मारे कुछ नहीं बोल पा रहा था। 

“घबराओ नहीं बेटा बताओ इस श्मशान में क्या कर रहे हो?” अधोरी बोला। 

चंद्रमौली ने काँपते अधरों से कहा “मेरा नाम चंद्रमौली है मेरे माता-पिता इस दुनिया में नहीं है मेरी चाची और उनके बेटों ने मुझे धक्के देकर घर से निकल दिया है,” इतना कहते ही चंद्रमौली के आँसू बहने लगे। 

अघोरी ने कहा, “घबराओ मत मेरे साथ चलो आज से तुम मुझे अपना पिता समझो।” 

चंद्रमौली अघोरी के साथ रहने लगा और अघोरी की तरह ही जप-तप करने लगा पाँच साल हो चुके थे चंद्रमौली एक अघोरी बन कर शिव की भक्ति में लीन रहने लगा। 

अमावस की रात थी। चारों ओर चिता के अंगारे तारों की भाँति टिमटिमा रहे थे। चंद्रमौली रेत पर आसन लगा कर साधना में लीन था। तभी किसी के पैरो के चलने की आवाज़ आयी। एक अधेड़ आदमी और एक औरत दोनों ने आकर चंद्रमौली को प्रणाम किया। 

चंद्रमौली की आँखों पर चिरपरिचित छवि उभरने लगी। वह दोनों अधेड़ आदमी और औरत चंद्रमौली के चाचा चाची थे। वे दोनों चंद्रमौली को पहचान नहीं पाये। लेकिन चंद्रमौली पहचान गया था परन्तु अनभिज्ञ बनकर बोला। 

“आप दोनों कौन हैं? और क्यों आये हैं?” 

“स्वामी मेरा बड़ा बेटा बहुत बीमार है बहुत दवाई करवा ली कितने ही डॉक्टर को दिखा दिया लेकिन कुछ फ़ायदा नहीं। किसी ने बताया कि यदि अघोरी अपने शरीर की थोड़ी भस्म निकालकर बीमार इंसान को दे दे तो अस्वस्थ इंसान स्वस्थ हो जाता है,” त्रिया ने रोते हुए कहा। 

चंद्रमौली ने शांत भाव से कहा, “मुझे नहीं पता कि मेरे शरीर की भस्म से तुम्हारा बेटा सही होगा या नहीं परन्तु शिव जी की भस्म से तुम्हारा बेटा अवश्य ठीक हो जायेगा।” 

“तो मुझे शिव जी की भस्म ही दे दीजिए,” सुबाहु ने आतुर होकर कहा। 

चंद्रमौली ने अपने हाथों को थोड़ा मसलकर भस्म निकाली और सुबाहु को दे दी। 

एक महीने के बाद त्रिया और सुबाहु वापस आये और चंद्रमौली को प्रणाम करके बोले, “स्वामी जी आपकी दी हुई भस्म के कारण, मेरा बेटा एकदम स्वस्थ हो गया था। आप एक बार मेरे घर चलें आपके चरणों की धूल से मेरा घर पवित्र हो जायेगा।” 

“नहीं, मैं नहीं चल सकता,” चंद्रमौली ने कहा। 

त्रिया बोली, “ऐसा मत कहिये स्वामी जी कृपया एक बार मेरे घर को चलकर पवित्र कर दीजिये। मेरे घर में कोई ना कोई बीमार ही रहता है।” 

चंद्रमौली ने कहा, “जिस घर से मुझे धक्के देकर पाँच साल पहले निकाला था अब उस घर में मैं वापस नहीं जाऊँगा।” 

सुबाहु और त्रिया चकित होकर अघोरी का मुँह ताकने लगे। 

“मैं चंद्रमौली हूँ,” चंद्रमौली ने उत्तर दिया। 

त्रिया और सुबाहु के होंठ सुन्न पड़ चुके थे वह कुछ बोल नहीं पा रहे थे। 

थोड़ी देर बाद सुबाहु बोला, “तुम चंद्रमौली हो। हमने तुम्हारे साथ इतना बुरा व्यवहार किया और तुमने फिर भी हमारी सहायता की। यदि तुम चाहते तो भस्म देने से मना भी कर सकते थे।” 

“जिस चंद्रमौली को आपने धक्के देकर निकाला था वह तो कब का मर गया अब मैं एक अघोरी हूँ। मेरा कोई शत्रु नहीं मेरा कोई मित्र नहीं। आपने मेरे साथ जो किया उससे मुझे कुछ लेना देना नहीं है। मेरी आकांक्षा, मेरा दुख-सुख सब शव के समान है। जिसने अपनी शत्रुता का नाश कर दिया है वही शिवत्व को प्राप्त कर सकता है। 

“अब आप यहाँ से जाओ मेरी साधना का समय निकला जा रहा है।” 

त्रिया और सुबाहु वापस लौट रहे थे लेकिन आज अपनी दृष्टि से गिरना कैसा होता है वह उन दोनों को भली-भाँति पता था।

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टिप्पणियाँ

Sarojini Pandey 2023/04/04 02:50 PM

बढ़िया है

पाण्डेय सरिता 2023/03/31 08:42 PM

हे ईश्वर! कैसे-कैसे लोग होते हैं अपनों के वेश में ।बहुत ही बढिया चरित्र चित्रण!

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