पूरा जंगल रोता है
काव्य साहित्य | कविता संगीता राजपूत ‘श्यामा’23 Feb 2024 (अंक: 248, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
रक्त नहीं बहता है फिर भी
दर्द हमें भी होता है
एक भी डाली कट जाए तो
पूरा जंगल रोता है
वृक्षो की डाली झुककर
धरती को गले लगाती है
देखो! लोभी वन को काटे
रोकर व्यथा सुनाती है
कोपित होकर धरती बोली
बंजर अपनी कोख करूँगी
जितने भी है खनिज ख़जाने
छिपा गर्भ में रोष भरूँगी
वृक्ष सभी यदि कट जाएँगे
पर्यावरण प्रदूषित होगा
सब जीवों के घर टूटेंगे
ताप चढ़ा भयंकर होगा
प्राणवायु का विघटन कर
जलवायु भी मुख फेरेगी
सूखी आँखें फसलों की
दूर गगन को हेरेंगी
कोयला सड़कों पर लुढ़केगा
तन को श्मशान बनाओगे
शव को जलना होता लेकिन
लकड़ी कहाँ से लाओगे
नाश करोगे तुम प्रकृति का
तो क्या तुम तर पाओगे
अपने शव को सुन ऐ लोभी!
गिद्धों का आहार बनाओगे
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