विनी
कथा साहित्य | लघुकथा संगीता राजपूत ‘श्यामा’15 Aug 2024 (अंक: 259, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
“मित्रा! अब तुम बदल गई हो . . . पहले की तरह कॉल नहीं करती, हर बार मुझे ही कॉल करना पड़ता है। कल शाम को भी तुमने फोन नहीं उठाया,” नित्या ने उलाहना भरे स्वर में कहा।
“मुझे माफ़ कर दो नित्या! कल शाम मैं विनी को कॉल कर रही थी। मैंने उसे कितनी बार कॉल किया लेकिन उसने उठाया ही नहीं . . . पता नहीं कहाँ व्यस्त है,” मित्रा ने उत्तर दिया।
“हम्म . . . हो सकता है वह तुमसे बात ही नहीं करना चाहता,” फोन के दूसरी तरफ़ से नित्या की आवाज़ आई।
“नहीं . . . ऐसी कोई बात नहीं है ज़रूर कहीं चला गया होगा . . . बहुत सी जगह नेटवर्क का इशू रहता है,” मित्रा ने कहा।
“इतना विश्वास . . . अच्छा नहीं है . . . सोशल मिडिया की दोस्ती कोई दोस्ती नहीं होती . . . कहीं मिली नहीं, फिर भी इतना विश्वास!” नित्या के स्वर में तेज़ी थी।
“विनी से बात हो जाती है . . . वही बहुत है न उसे मिलने की इच्छा है और न हमें . . . बस फोन पर बात हो जाती है वही बहुत है . . . उसकी बातों ने बहुत संबल दिया है।
“घर-गृहस्थी के बीच अपनी पढ़ाई, प्रतिभा सब भूल चुके थे हम . . . विनी ने याद दिलाया कि समय निकालकर अपने लिए भी जीना चाहिए . . . अपने शौक़, हुनर इन सभी को ज़िन्दा रखना चाहिए . . . पता है नित्या . . . घर पर सभी को मित्रा चाहिए लेकिन काम के लिए . . . विनी जब भी बात करता है केवल वही बात करता है जो हमें प्रेरित करे . . . नयी नयी जानकारी, देश-दुनिया की बातें वही तो बताता है। बिना किसी स्वार्थ के . . . पिछले चार वर्षोंं से रोज़ ही फोन करता है . . . उससे बात करके कभी ऐसा नहीं लगा कि किसी पुरुष से बात कर रहे हैं . . . उससे बात करने पर ऐसी अनुभूति होती है, जैसे किसी सच्चे इंसान से बात करने पर होती है . . .। चलो . . . अब कल बात करेंगे नित्या . . . मुझे थोड़ा काम है . . .” कहते हुए मित्रा ने फोन रख दिया।
कुछ देर बाद मित्रा ने फोन घुमाया, “. . . हेल्लो . . . विनी . . .”
दूसरी ओर से आवाज़ आई, “मैं हूँ विनी की वाइफ़।”
मित्रा को सुनकर बड़ा अजीब लगा, पिछले चार वर्षोंं से वह विनी से बात कर रही है लेकिन फोन हमेशा विनी ने ही उठाया। मित्रा ने कहा, “विनी से बात करनी है।”
फोन के दूसरी ओर से आवाज़ आती है, विनी इज़ नो मोर . . .
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