अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

छठ पर्व मनाएँ मगर सावधानी से

 

छठ पर्व आ गया है और उसके साथ तैयारी भी शुरू हो गई है। ज़ाहिर है ऐसे मौक़े पर ख़ुशियों का पारावार नहीं रहता। हर व्यक्ति के दिल में आनंद और उत्साह और उसके साथ एक अलग भक्ति जो हमें जोड़ती है अपनी परंपरा से रीति रिवाज़ से पर्व त्योहार से और अपने-अपने कर्मों से भी। और ज़ाहिर है कि पर्व त्योहार के अवसर पर हमारे भीतर जो बंधन होता है उससे हम मुक्त होते हैं और मुक्ति की स्थिति यह कि हम अपना कर्त्तव्य भूल जाते हैं अपनी सावधानियाँ भूल जाते हैं। कई तरह के ख़तरे मोल ले लेते हैं और ग़लतियाँ कर बैठते हैं। 

अक्सर छठ पर्व में लोग नदियों तालाबों में स्नान करते हैं। और बच्चों या महिलाओं को गहरी नदी में जाकर डुबकियाँ लगाते हुए देखा जाता है। ऐसे अवसर पर यदि ध्यान ना दिया जाए तो दुर्घटना होने का अंदेशा रहता है। इसी तरह बाज़ार में पूजा का सामान लेते हुए आने-जाने के क्रम में हम हड़बड़ी कर बैठते हैं और चोट-चपेट के शिकार हो जाते हैं। और इसके अलावा जब छठ पर्व के मौक़े पर गंगा नदी या तालाब के किनारे डूबते और उगते सूर्य को अर्ध्य दिए जाते हैं तब बच्चे पटाखे जलाने लगते हैं जिससे उनके हाथ पाँव चेहरे आदि जलने का भी ख़तरा बना रहता है। इस तरह की कई और समस्याएँ हम देखा करते हैं और उससे हम सावधान नहीं रह पाते। 

इसी तरह छु्ट्टी के मौसम में बच्चे बाज़ार की चीज़ें भी खाने लगते हैं। जिससे उनके पेट ख़राब होने का डर रहता है और सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है। छठ पर्व के मौक़े पर हमें कई तरह की सावधानियाँ के साथ घर में रहना चाहिए साथ ही अपने बच्चों को यह दायित्व बोर्ड दिया जाना चाहिए कि वह आवश्यकता अनुसार घर में अपने माता-पिता या अपने संबंधियों का सहयोग कर सके। इस तरह के अवसर पर भी अक्सर हम कई तरह की लापरवाहियाँ कर बैठते हैं जो ख़तरे से ख़ाली नहीं होता। जैसे:

  • शुद्धता-अशुद्धता का ख़्याल नहीं रखना। 

  • साफ़-सफ़ाई का ख़्याल नहीं रखना। 

  • लोगों से मधुर व्यवहार का ख़्याल नहीं रखना। 

  • अपने काम को समय पर करने का ख़्याल नहीं रखना

  • अपने स्वास्थ्य का भी ख़्याल नहीं रखना। 

इस प्रकार से हम छठ पर्व के मौक़े पर हम अपना ख़्याल रख सकते हैं और दूसरों का भी ख़्याल रख सकते हैं। 

पंडित विनय कुमार

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

काम की बात

कविता

साहित्यिक आलेख

सांस्कृतिक आलेख

सामाजिक आलेख

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं