ओमिक्रोन
काव्य साहित्य | कविता पं. विनय कुमार1 Jan 2022 (अंक: 196, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
ओमिक्रोन के आने की ख़बर
मिल चुकी है
विद्यालयों में बाँटे जा रहे हैं मास्क
मगर केवल एक-दो
क्या इससे बच पायेंगे हमारे नौनिहाल?
लेकिन इन सब ख़बरों से भी बेख़बर हैं
एक और तबक़ा
जो अभी तक झुग्गी-झोपड़ियों में क़ैद है
शिक्षा से कोसों दूर
उनके छोटे-छोटे बच्चे नंग-धड़ंग
खुली सड़कों पर शरारत करते
कूदते-फांदते, बकरियाँ बाँधते-चराते
अपने-अपने काम में मशग़ूल।
ओमिक्रोन आ रहा है
पूरे लाव लश्कर के साथ
हर रोज़ बदल-बदल कर आती ख़बरें
ख़बरों से पैदा होता एक अज्ञात भय
लील जाना चाहता है पूरी की पूरी आबादी
और आज़ादी . . .
शायद सोचने के लिए नहीं बच गया कुछ
केवल और केवल सोशल डिस्टेंसिग
लगाए जानेवाले उन्नत और बेहतरीन मास्क
कुछ गिनी-चुनी दवाएँ
सूखे फल, पौष्टिक लेकिन सुपाच्य भोजन
पढ़ने के लिए कुछ पसंदीदा पुस्तकें
लिखने के लिए क़लम और नोट बुक
और यही तो साथ रहेंगे
जीवन की अंतिम यात्रा में
और—
पाप-पुण्य का लेखा-जोखा
सुकर्म-कुकर्म
आस्तिकता-नास्तिकता
विभिन्न विचारधाराएँ, तर्क-वितर्क-कुतर्क
और न जाने क्या-क्या?
जीवन का सत्य यही तो है!
इसे स्वीकारना ही होगा।
कल फिर मिलेंगे
इसी मंगल कामना के साथ!
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