सुन्दरता
काव्य साहित्य | कविता पं. विनय कुमार1 Nov 2025 (अंक: 287, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
सुंदरता हर कहीं है
बाहर भी
भीतर भी
और हर ओर—हर कहीं
प्रकृति के चारों ओर:
दसों दिशाओं में
फैली हुई है सुंदरता
सुंदरता का कोई उत्स नहीं होता
नहीं होता—
सुंदरता को ढालने का
नए ढंग का जज़्बा!
सुंदरता बेमिसाल चलती है—
हवाओं की तरह
पानी की बूँदों की तरह
खिलते हुए फूलों की तरह
बढ़ते हुए पौधों की तरह
चलते हुए बच्चों की तरह
ज़ुबान में बोले जाने वाले
हर एक शब्द की तरह।
सुंदरता हर कहीं है—
प्रकृति की अट्टालिकाओं में
चलती हुई बादलों के झुण्ड में
सुन्दरता—
हर वस्तु की तरह
दिखती है चारों ओर
नए सौंदर्य को रचते
नये आयाम को तलाशती चलती
मचलती दिखती है:
सौंदर्य की दीपशिखा।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
चिन्तन
काम की बात
साहित्यिक आलेख
सांस्कृतिक आलेख
सामाजिक आलेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं