कविताएँ
काव्य साहित्य | कविता पं. विनय कुमार15 Nov 2025 (अंक: 288, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
कविताएँ लिखी जाती रहेंगी
जब जब बदलेगा मौसम
जब जब आएगी बहार
फूलों में
मौसम में
जब हर बार थकेंगे
हम
जब जीवन का दुख
हमारे पीछे
आएगा लगातार
कई कई रूपों में
ग़रीबी
भ्रष्टाचार
आतंकवाद
धर्म संबंधी विवाद
पाखंड और
गढ़ी जा रही ग़लत परंपराएँ
सब कुछ पर लिखी जाएँगी कविताएँ
पेड़ पौधे पहाड़
हवाओं पर भी
सुंदर दिखते
खिले हुए फूलों पर भी
फ़सलों पर भी
और किसानों पर भी
पूस की रात और पंच परमेश्वर पर भी
लिखी जाती रहेंगी कविताएँ
राम सीता के विवाह पर
रावण के युद्ध पर
धर्मराज युधिष्ठिर संवाद पर भी
कृष्ण और अर्जुन पर भी
कविताएँ लिखी जाती रहेंगी
उन औरतों पर भी
जो विवश और लाचार हैं
उन बच्चों पर भी
जिनके माता-पिता
क़त्ल कर दिए गए हैं
हर बार जीवन का आँगन
गुलज़ार होगा
ऋतुएँ आएँगी-जाएँगी
खिलेगा मधुमास
चौरे करेंगे गुंजार
कोयल गाएँगी गीत
झींगुर अपनी झंकार से हमें
खींचेंगा अपनी ओर
निरभ्र नीलाकाश
पूछेगा हमसे सवाल
सबके बारे में
सबका कुशल
वह जानना चाहेगा
हर बार बाग़ में
गुलज़ार होंगे
शिशिर, शरद और वसंत
कवि को ढूँढ़ेगा कोई पाठक
हर बार
अपनी चमक दिखाएगी
भाषा—
मातृभाषा, राष्ट्रभाषा, जनभाषा
बनेगी यही संपर्क भाषा हिंदी
बनेगी यही
जीवन का सुंदर गीत
बार-बार खिल-खिलाएगी
पछुआ हवा में
गेहूँ और ज्वार
बाजरा और धान
फैलेगी एक सुंदर नदी
हमारे चारों ओर
जहाँ जाएँगी कविताएँ
अपने कोकिल कंठ में!
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