मेरे राम कहाँ हैं?
काव्य साहित्य | कविता पं. विनय कुमार1 Sep 2020 (अंक: 163, प्रथम, 2020 में प्रकाशित)
अयोध्या आज उदास नहीं है
क्योंकि कल आपके निवास स्थान की
बरसों से चिर प्रतिक्षित नींव पड़ी है
पूरी दुनिया में दीपावली जैसा माहौल है
घर-घर दीप प्रज्वलित दिख रहे हैं
दीप मालिकाओं से सजी अयोध्या
किसी दुल्हन से कम नहीं दिख रही है...
राम भक्तों के घर बधावे बज रहे हैं
राम का आगमन और उनके स्थायी निवास हेतु
मंदिर की जो नींव पड़ी है ...।
कितना मधुर, मदिर, सुवासित करनेवाला
वातावरण दिखलाई पड़ रहा है चारों ओर
सब के सब हर्षित हैं–
हिंदू ,मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी –
धनी, ग़रीब, सवर्ण, दलित-
सब के चेहरे पर खुशियाँ हैं
क्या देशी? क्या विदेशी?
क्या ग्रामीण? क्या शहरी?
क्या नगरीय? क्या महानगरीय?
क्या झोंपड़े में निवास करने वाले?
और –
क्या महलों में रहने वाले?
क्या फुटपाथ पर रहने वाले?
और –
क्या किराए के मकान में रहने वाले?
क्या रोज़गार और नौकरी पेशा वाले?
और –
क्या बेरोज़गार और निठल्ले ...
भाग्य के मारे कुछ लोग हैं बेचारे
लेकिन सबके प्यारे- प्यारे राम...
देखे हम सबने - और
दिखते रहे अख़बारों के पृष्ठों में
राम-राम रँगे हैं ...
मीडिया राम को दिखला-दिखला कर
फूला नहीं समा रहा ...
और तो और;
होता रहा –
मंदिरों में भजन-कीर्तन
रामभक्ति का यह माहौल
मन - प्राणों को स्पंदित कर रहा है ...
फैला है सर्वत्र –
शांति और पवित्रता का वातावरण।
करता रहा –
राम का अभिषेक :
सरयू अपने
कल-कल निनादित
नवल, धवल और पवित्र जल से ...
फिर मैं पूछना चाहता हूँ –
अपने आराध्य से कि
हे राम! आपका निवास स्थान कहाँ है?
क्या आप केवल अयोध्या में ही रहेंगे?
या,
संपूर्ण भारत की धरा पर?
या,
संपूर्ण विश्व के तल पर?
या,
हम सब के मनों में विराजेगें?
और यदि हाँ तो कब तक?
न जाने कितनी माँयें अभी भी आपके आगमन की
प्रतीक्षा में पलक पाँवड़े बिछाए बैठी हैं –
भारत के इस कोने से लेकर उस कोने तक –
जो अयोध्या नहीं पहुँच सकीं
और न कभी भविष्य में पहुँच सकेंगी
क्योंकि उनके पास खाने को अनाज नहीं है–
उनके बेटों के लिए दवाइयाँ नहीं हैं –
उनके पति के पास कोई नौकरी नहीं है –
उसके ऊपर कर्ज़ों का भारी भरकम पहाड़ है!
जो "पूस की रात " कहानी की तरह
चुकता ही नहीं होता।
हल्कू अभी भी जबरा के साथ ईख की फसल
अगोरने जाया करता है हर रोज़
जहाँ नीलगायों के समूह उनकी फसल को
चौपट करने के लिए तैयार हैं ...
हल्कू हार रहा है ...
उसे शक्ति की आराधना करनी नहीं आती
उसके आस-पास न जाने कितनी रावणी-
शक्तियाँ मौजूद हैं ...
जहाँ वह हर पल हार रहा है ...
वहाँ कोई राम भक्त नहीं ,
न तो प्रभु आप हैं ...
और फिर अयोध्या में निवास करने के पश्चात्
आप कैसे वहाँ पहुँचेंगे उन ज़रूरतमंदों तक?
आपको कौन मार्ग दिखलाएगा उस स्थल तक
अत्याचारी,आतताइयों और भ्रष्टाचारियों के
सुदीर्घ समूह सीता माता की तरह ही सताता हुआ
अज्ञात स्थान में छिपा हुआ बैठा रहेगा?
आपके समय में तो ढेर सारी वानरी सेनाएँ थीं –
जाम्बबान, सुग्रीव, अंगद, हनुमान
और विभीषण जी थे...
आज तो कोई नहीं दिख रहा प्रभु?
आज शबरी उदास है!
आज केवट दुःखी है!
आज वाल्मिकी भी कहीं
नज़रबंद कर दिए गए हैं ...
जो आज की –
और आगे घटनेवाली कथा नहीं लिख पायेंगे।
× × ×
मेरे राम!
क्या आप के मंदिर निर्माण की
आधारशिला रखे जाने के बाद
चतुर्दिक आनंद का पारावार फैला है
वह स्थायित्व को प्राप्त करेगा प्रभु?
लाखों-करोड़ों रुपये ख़र्च करने के बाद
निषादराज कहाँ मिलेंगे?
क्या कभी आपने सोचा है?
मेरे राम!
मंदिर की नींव बन जाने के बाद
आपके लोकोपकारी आदर्शों, सिद्धांतों,
संदेशों, विचारादर्शों को जन-जन तक
आख़िर कौन प्रसारित करेगा?
मेरे राम!
ऐसे अनेकानेक सवालात मेरे ज़ेहन में मौजूद हैं
वे बाहर निकलने के लिए मचल रहे हैं।
आज रावण विभिन्न वेश में अपने यान पर सवार हो
घर-घर / हाट-हाट /बाज़ार-बाज़ार अपने
छल-छद्म रूप में
अदृश्य बनकर भ्रमणशील है...
हे राम!
अब आपको भक्तों के रक्षार्थ आना ही होगा
अवध की गलियों से निकल कर और
पूरे लाव-लश्कर के साथ।
हाँ, हाँ , प्रभु! मैं सत्य कह रहा हूँ :
अश्रुविगलित नेत्रों के साथ
हम सब आपकी बाट जोह रहे हैं!
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
काम की बात
कविता
साहित्यिक आलेख
सांस्कृतिक आलेख
सामाजिक आलेख
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं