हमारे बच्चे
काव्य साहित्य | कविता पं. विनय कुमार15 Oct 2025 (अंक: 286, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
हमारे बच्चे
हमारे बच्चे कल के भविष्य हैं
हमारे बच्चे कल धरती के सौंदर्य बनेंगे
हमारे बच्चों की समस्याएँ अंतहीन हैं
वे पल पल तलाशते हैं अपने सपने
वे पल पल ढूँढ़ते हैं अपनी अपनी धरती और
अपना अपना आकाश
सुबह से लेकर शाम तक की उनकी दिनचर्या में
ढूँढ़ना होता है अपने आप को
अपनी पहचान को
अपनी मज़बूती को
अपनी संस्कृति को
अपनी सभ्यता को
और अपने लिए एक मुकम्मल जगह
जो हर बार
एक नए पराजय के साथ
उनके समक्ष आता दिखलाई पड़ता है
हर बार एक जीवन जीने की तड़प (संघर्ष)
हर रोज़ सूरज के उगने के साथ
शुरू हो जाती है
उनकी संघर्षमयी दुनिया में
वह दुनिया बाहर से सुंदर रहती है
लेकिन भीतर से बहुत ही बदसूरत और कुरूप!
मेरी हर चिंता के केंद्र में होता है हर घर का बच्चा
बच्चों के साथ जुड़ी होती है उनकी शिक्षा
उनका सर्वांगीण विकास
मन के भीतर चलती हुई ढेर सारी ख़्वाहिशें
एक शिक्षक के लिए—
एक शिक्षक के मन में
भारी अंतर्द्वन्द्व पैदा करता है।
बच्चा किसका है हमें नहीं पता
लेकिन वह हमारी ज़िन्दगी से जुड़ा हुआ है
रोज़ी-रोज़गार से जुड़ा हुआ है वह
राष्ट्र के विकास से जुड़ा हुआ है वह
समाज के विकास से जुड़ा हुआ है वह
और हमारी नैतिकता से भी जुड़ा हुआ है वह
हमारे बच्चे ही कल श्रेष्ठ नागरिक बनेंगे
यह बिल्कुल तय है!
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