दोहों में संवेदनाओं की सहज सरल अभिव्यक्ति: ‘मैं तो केवल शून्य हूँ ’
समीक्षा | पुस्तक समीक्षा डॉ. दीपक पाण्डेय1 Apr 2023 (अंक: 226, प्रथम, 2023 में प्रकाशित)
पुस्तक का नाम: मैं तो केवल शून्य हूँ (दोहा संकलन)
लेखक: विजय मिश्र ‘दानिश’
प्रकाशक: कृष्णा पब्लिशर्स, नई दिल्ली
हिंदी साहित्य की समृद्ध परंपरा विद्यमान है और इस समृद्धि में साहित्य की विविध विधाओं की अपनी-अपनी भूमिका है। साहित्य की काव्य विधा को सबसे प्राचीन विधा स्वीकार किया जाता है और हिंदी काव्य साहित्य की विलक्षणता इसके अगाध छंद सागर में निहित है। इस छंद सागर में सबसे लोकप्रिय व व्यापक छंद ‘दोहा छंद’ है। संत कबीरदास, तुलसीदास, रहीम, वृन्द, नानक, बिहारी, संत दादू दयाल एवं अनेक कवियों ने अपनी रचनाओं में ‘दोहा छंद’ की लोकप्रियता को सिद्ध किया है। कवियों ने मानव, परिवार, देश धर्म, समाज, राजनीति एवं वैश्विक जीवन के विविध यथार्थ एवं समस्याओं को दोहा छंदों के माध्यम से कहीं कुरेदा तो कहीं उकेरा है इसलिए अनेकानेक दोहे भारतीय समाज के जन-मानस में अनायास ही स्थिर हो जाते हैं। दोहों में सामाजिक चेतना की अभिव्यक्ति उसे सहज, सुलभ बनाकर प्रभावोत्पादक बनाती है। आज भी संत साहित्य के दोहे जन-जन की वाणी में अभिव्यक्ति पाते हैं, जैसे:
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागैं अति दूर॥
वर्तमान समय में हिंदी के प्रसिद्ध दोहाकार साहित्यकार डॉ. रामनिवास ‘मानव’ का मंतव्य दोहा-छंद की व्यापकता और गांभीर्य दर्शन को अभिव्यक्त करता है जहाँ वे लिखते हैं, “कभी रीति और नीति, कभी राग और विराग, तो कभी अध्यात्म और उपदेश के रंग में रंगे, 13-11 के क्रम से चार चरणों और अड़तालीस मात्राओं के दोहा छंद ने, अपने वामन कलेवर में भावों का विराट संसार समाहित करने का सार्थक प्रयास हर युग में किया है।” (रामनिवास मानव) दोहे की प्रकृति ‘गागर में सागर’ भरने की होती है। दिल की जितनी गहराई से उठा भाव दोहे की शक्ल लेता है, उतना ही गहरा होता है उसका घाव।
‘मैं तो केवल शून्य हूँ’ जयपुर निवासी बहुमुखी प्रतिभा के धनी विजय मिश्र ‘दानिश’ की संवेदनाओं का संग्रह है, इस संग्रह में लगभग तेरह सौ दोहे शामिल हैं। साहित्यिक अभिरुचि ने उन्हें रंगमंच से जुड़ने और रचने का अवसर दिया और यह क्रम पाँच दशकों से चलता आ रहा है। अनेक समाचार पत्रों, साहित्यिक पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रहीं हैं। पर एक छोटी सी दुर्घटना ने उन्हें दोहों के माध्यम से भावबोध को अभिव्यक्त करने के लिए प्रेरित किया। इस संग्रह में संकलित दोहे समकालीन परिस्थियों के विविध विषयों को उद्घाटित करते हैं। विजय मिश्र ने अपनी बात के अंतर्गत इस बात को स्वीकार भी किया है—“प्रस्तुत दोहे सभी बिंबों पर रचे हैं किन्तु ज़्यादातर दोहे सामाजिक कुरीतियों, कड़वे सत्य, मानवीय ढोंग, जालसाज़ी, फ़रेब, स्वार्थ आदि अनेक भावों को इंगित करते हैं।”
साहित्य सरोज पत्रिका, गहमर, गाजीपुर उत्तर प्रदेश द्वारा दिसंबर 2021 में आयोजित सातवें गोपाल राम गहमरी साहित्यकार महोत्सव 2021 में सहभागिता के दौरान अनेक साहित्यकारों, साहित्यप्रेमियों से मिलने और उनके रचनाकर्म से जुड़ने का अवसर मिला। कार्यक्रम के संयोजक श्री अखंड गहमरी साधुवाद के पात्र हैं जिन्होंने हिंदी के जासूसी उपन्यासकार गोपाल राम गहमरी की धरती को माथे लगाने, देश के विविध क्षेत्रों की प्रतिभाओं से मिलाने और कामाख्या देवी, गंगा मैया के दर्शन कराकर कुछ पुण्य पाने का मौक़ा दिया। इस सम्मलेन में प्रतिभाग कर रहे अनेक लोगों से रागात्मक साहचर्य हुआ इन्हीं में विजय मिश्र ‘दानिश’ भी थे। पहली मुलाक़ात में ही विजय मिश्र से जो आत्मीयता और अपनेपन की तरंगें मिलीं, उन्होंने मुझे ऐसे रचनाकार से मिलने का अवसर दिया जिसके व्यक्तित्व में सकारात्मकता के साथ धीर-गंभीर, सहृदयी, सहज सरल स्वभाव अनेक गुण समाहित हैं। विजय मिश्र की सपाट बयानी और दोहा छंद में उनकी भावाभिव्यक्तियों ने आकर्षित किया। जब विजय जी से उनकी रचनाधर्मिता पर चर्चा हुई तो उन्होंने बताया कि साहित्य की विविध विधाओं में रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं पर अभी तक कोई पुस्तक प्रकाशित नहीं हुई है। जब मैंने उन्हें रचनाओं को पुस्तकाकार रूप में प्रकाशन के लिए प्रोत्साहित किया तो उन्होंने कहा कि भी मैं अपने पल्ले से पुस्तकें प्रकाशित नहीं कराना चाहता। मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि आपकी भावनाओं को ध्यान में रखकर मैं चाहता हूँ कि आपके दोहे संकलित कर एक पुस्तक ‘मैं तो केवल शून्य हूँ’ प्रकाशित हो और आज पुस्तक पाठकों तक पहुँचाते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है। विजय मिश्र ‘दानिश’ ने मानव समाज के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक सभी स्थितियों-परिस्थितियों से संबंधित मनोभावों को अपनी कविताओं में अभिव्यक्त किया है। अधिकांश दोहे सामाजिक कुरीतियों, कड़वे सत्य, मानवीय ढोंग, जालसाज़ी, फ़रेब, स्वार्थ, मानव-मूल्यों में ह्रास आदि पर सपाट बयानी की है।
समाज में व्यक्ति समय के फेर में बँधा हुआ है और उसका आचरण समसामयिक परिस्थितियों के अनुसार बदल जाता है। कठिन समय में व्यक्ति सहायता के लिए अपनों से ही सहायता या सांत्वना की आस करता है, पर अब स्थितियाँ उल्ट-पुलट गई हैं जिसकी अभिव्यक्ति दानिश के इस दोहे में मिलती है:
जिन रिश्तों पर नाज़ था, हुए सभी अनजान।
गर्दिश के दिन देख कर, माँग रहे पहचान॥
आज समाज में बुज़ुर्गों को बोझ माना जाने लगा है का बड़ा हिस्सा इस समय स्वयं को समाज से कटा हुआ और मानसिक प्रताड़ना की अनुभूति कर रहा है। माता-पिता कठिन परिश्रम कर अपने बच्चों के जीवन को सँवारते हैं और अपने बच्चों के लिए आशियाना बनाने वाले लोग वक़्त और परिस्थितियों की ठोकरों से मजबूर होकर उपेक्षित हो रहे हैं। निःसंदेह भौतिकवादी सभ्यता और एकाकी परिवार का उभार ही बुज़ुर्गों की उपेक्षा का मुख्य कारण है। इसी गंभीर समस्या को मार्मिक ढंग से इस दोहे में दानिश जी ने प्रस्तुत किया है:
बेटा बेटी चार हैं, सबको दिए मकान।
माँ बापू बेघर हुए, ढूँढ़ रहे पहचान॥
राजनीति के क्षेत्र में व्यक्तियों के व्यक्तित्व और कार्य शैली में आए बदलाव समाज में विपरीत प्रभाव डाल रहे हैं और राजनीति की अराजकता लोकतंत्र को भी दूषित कर रही है। दानिश जी इन्हीं भावबोध को अपने दोहों में अभिव्यक्त करते हैं:
वोटतंत्र में ढूँढ़ते, लोकतंत्र की शान।
गणतंत्र का और क्या, होगा अब अपमान॥
राम राज का स्वप्न भी, छोड़ रहा अब आस।
चोर उच्चके आज कल, सत्ता के हैं ख़ास॥
नए-नए अनुसंधान व्यक्ति की महात्वाकांक्षी होने के प्रमाण हैं जो मानव-जीवन के लिए जितने उपयोगी हो सकते हैं उतने ही विनाश के कारण बन सकते हैं या बन रहे हैं। आज के आइंस्टाइन कहे माने वाले वाले भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा भी था कि मानवता के सामने आने वाले ज़्यादातर ख़तरे विज्ञान और टेक्नॉलोजी की उन्नति द्वारा पैदा होते हैं। इनमें परमाणु युद्ध, प्रलयकारी ग्लोबल वार्मिंग और जेनेटकली इंजीनियर्ड वायरस जैसे ख़तरे शामिल हैं। यही भाव विजय मिश्र के निम्न दोहे में अभिव्यक्त होते हैं:
अवसरवादी आदमी, अवसर रहा तलाश।
महज़ लालसा के लिये, ख़ुद का करे विनाश॥
रक्तदान की महत्ता और आवश्यकता के विषय को आधार बनाकर विजय मिश्र ने अनेक दोहे रचे हैं। समाज में यह ग़लतफहमी व्याप्त है कि नियमित रक्त देने से लोगों की रोग प्रतिकारक क्षमता कम होती है और उसे बीमारियाँ जल्दी जकड़ लेती हैं। इस भ्रम के कारण लोग रक्तदान करने से पीछे हट जाते है और यहाँ तक कि दूसरों को भी रक्तदान से हतोत्साहित करते हैं। इन सब भ्रमों को दूर करते हुए विजय मिश्र रक्तदान को मानवता की रक्षा में आवश्यक मानते हैं और अपनी काव्य प्रतिभा से रक्तदान के लिए लोगों को प्रोत्साहित करते हैं:
रक्तदान का दान ही, सबसे उम्दा दान।
मरते को जीवन मिलें, तुम्हें मिलें सम्मान॥
रक्तदान करते रहो, होगा जन कल्याण।
एक सुनहरे दौर का, फिर होगा निर्माण॥
रक्तदान से आपका, जिस्म बने बलवान।
नए ख़ून का आगमन, स्वस्थ रखे श्रीमान॥
देश की रक्षा में सैनिकों का योगदान महत्त्वपूर्ण है। गर्मी, बरसात व ठंड के मौसम में खुले आसमान तले रहते हुए सीमा पर डटे रहते हैं और ज़रूरत पड़ने पर जान की बाज़ी लगा देते हैं। समाज को अपने देश के वीर सैनिकों पर गर्व होता है और इसी कारण हर देश प्रेमी सैनिकों के जज़्बे को सलाम करता है और उनके प्रति श्रद्धा का भाव रखता है। विजय मिश्र ने सैनिकों के जीवन पर अपनी भावनाओं को दोहों में अभिव्यक्त किया है। कुछ दोहे देखिए:
उस माता से पूछिए, सैनिक की पहचान।
एक नहीं दो चार जो, पुत्र करे क़ुर्बान॥
सरहद पर सैनिक लड़, देता यह पैग़ाम।
देश हमारी शान है, भूल गए आराम॥
आज समाज में अपनत्व या कहें इंसानियत को नीलाम करने का काम तथाकथित धार्मिक ठेकेदारों ने रखा है और वे समाज में विष घोलने का काम कर रहे हैं। इन्हीं सब स्थितियों से तिलमिलाकर कवि दानिश कहते हैं-
जात धर्म मज़हब यहाँ, साज़िश का परिणाम।
क़ुदरत ने इंसान को, कब भेजा पैग़ाम॥
मुल्ला पण्डित ढोंग की, नित्य करे बरसात।
पाप करे ख़ुद सौ मगर, करे पुण्य की बात॥
‘मैं तो केवल शून्य हूँ’ संग्रह में संकलित दोहे विषय वैविध्य के साथ समसामयिक स्थितियों को मार्मिकता से सशक्त अभिव्यक्ति में सफल हैं और कवि मानवता की रक्षा के लिए मानव-मूल्यों की दुहाई देते हुए ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की प्रत्याशा में सकारात्मक भावों को अभिव्यक्त करते हैं। अंत में दानिश के दो दोहे में आपके सामने रखता हूँ:
शोर मचाने से नहीं, चलता रब पर ज़ोर।
मन ही मन उससे कहो, कर देगा वह भोर॥
मौत सदा ही सत्य है, जीवन का अन्जाम।
छोड़ व्यर्थ अभिमान को, दानिश का पैग़ाम॥
विजय मिश्र ‘दानिश’ ने बहुत ही सटीक दोहों की रचना की, उन्हें बहुत-बहुत बधाई और मुझे पूरा विश्वास है कि ‘मैं तो केवल शून्य हूँ’ पुस्तक पाठकों में लोकप्रिय होगी।
समीक्षक:डॉ दीपक पाण्डेय
सहायक निदेशक
केंद्रीय हिंदी निदेशालय
शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार
नई दिल्ली ईमेल –dkp410@gmail.com
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