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मॉरीशस-बाल साहित्य में कल्पना लालजी का काव्य संग्रह– ‘खट्टी-मीठी मुस्कानें’

मनुष्य सामजिक प्राणी हैं और उसके सरोकार समाज सापेक्ष होते हैं। मनुष्य अपने भावों और विचारों की अभिव्यक्ति में स्वतंत्र होता है और उसकी यही अभिव्यक्ति प्रक्रिया कई सोपानों का सृजन करती हैं। साहित्य का सृजन भी उन्हीं सोपानों में से एक है। साहित्य सृजन भी विविध परिवेश और परिस्थितियों से संबंधित होता है। जब कोई रचनाकार बच्चों को केंद्र में साहित्य का सृजन करता है बाल-साहित्य की सर्जना होती है। बाल साहित्य के पुरोधा डॉ. श्री प्रसाद ने लिखा है कि– "बालक का जीवन दो प्रकार का होता है– अन्तर्मुखी और बहिर्मुखी। बालक के अन्तर्मन की सोच, उसकी आकांक्षाएँ, उसकी अपनी पीड़ा और आनंदानुभूति उसके अन्तर्मन की अभिव्यक्ति है। यह क्षेत्र इतना व्यापक है कि रचनाकार कल्पना की गहराई तक जकर भी बालमन को पूर्णतः व्यक्त करने का दावा नहीं कर सकता।"1 भारतीय जीवन में बाल-साहित्य का इतिहास अति प्राचीन है तभी तो हमारे सामाज में लोरियाँ, कथा-कहानियाँ परिवार का अहम हिस्सा रहती आई हैं। भारत में बाल साहित्य की परंपरा में बहुत प्राचीन है जो मौखिक रूप में गीत, कविता कहानी आदि रूपों में उपलब्ध रही, लोककथाएँ, पंचतंत्र, हितोपदेश, बेताल-पच्चीसी इनके उदाहरण हैं। 

बाल साहित्य को अनेक तरह से परिभाषित करने का चलन रहा है, इस संदर्भ में मुझे पाश्चात्य विद्वान हार्वे डार्टन की बात सटीक लगती है जहाँ वे अपनी पुस्तक “चिल्ड्रेंस बुक्स इन इंगलैंड” में बच्चों की पुस्तकों की सीमा का उल्लेख करते हैं। उनका कथन बाल-साहित्य के स्वरूप को स्पष्ट करता है, उन्होंने लिखा है– “बाल-साहित्य से मेरा अभिप्राय उन प्रकाशनों से है जिनका उद्देश्य बच्चों को सहज-रीति से आनंद देना है न कि उन्हें मुख्य रूप से शिक्षा देना अथवा उन्हें सुधारना अथवा उन्हें उपयोगी रीति से शांत बनाए रखना। अत: मैं इस इतिहास में सामान्य नियम के रूप में उन सभी पुस्तकों को शामिल नहीं करूँगा जो स्कूलों में पढ़ाई जाती हैं, जो विशुद्धत: नैतिक शिक्षा अथवा ज्ञानवर्धन के प्रयोजन से लिखी गई हैं, जिनमें बच्चे के जीवन का व्यस्क दृष्टि से चिंतन-प्रधान वर्णन होता है अथवा जो वर्णमाला, प्रेमर और वर्तनी-शिक्षा की पुस्तकों की कोटि में आती हैं।”2 

हिंदी में बाल-साहित्य कविता, कहानी, नाटक, एकांकी अनेक रूपों में उपलब्ध है और इस दिशा में निरंतर नित-नई रचनाएँ आती जा रही हैं। आज भारत से बाहर हिंदी लेखन की समृद्ध परंपरा विद्यमान है परंतु मॉरीशस में हिंदी-साहित्य सृजन विविध रूपों में उपलब्ध होता है। मॉरीशस के रचनाकारों ने कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी, संस्मरण आदि सभी विधाओं में उत्कृष्ट रचनाएँ लिखकर हिंदी साहित्य की श्री वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। मॉरिशस के हिंदी रचनाकारों की लंबी सूची है, हम यहाँ कुछ का नामोल्लेख कर रहे हैं – पं.लक्ष्मीनारायण चतुर्वेदी ‘रसपुंज’, पं. हरिप्रसाद रिसाल मिश्र, जयरुध्द दोसिया, ब्रजेन्द्र भगत ‘मधुकर’, अभिमन्यु अनत, रामदेव धुरंधर, सोमदत्त बखोरी, डॉ. मुनीश्वर चिन्तामणि, वीरसेन जागासिंह, प्रहलाद रामशरण, लोचन विदेशी, बीबी साहेबा फर्जली, इंद्रदेव भोला, धर्मवीर घूरा, ठाकुरदत्त पाण्डेय, जनार्दन कालीचरण, राजेंद्र अरुण, विनोदबाला अरुण, सरिता बुधु, भानुमती नागदान, पूजानंद नेमा, हरिनारायण सीता, आस्तानंद सदासिंह, वेनीमाधाव रामखिलावन, हेमराज सुन्दर, उदयनारायण गंगू, धनराज शंभू, सुमति बुधन, दीपचंद बिहारी, अजामिल माताबदल, रेशमी रामधनी, सूर्यदेव सिबोरत, बलवंतसिंह नौबत सिंह, महेश रामजियावन, लालदेव अंचरज, हीरालाल लीलाधर, आनंददेवी, मुकेश जी बोध आदि। इन्हीं हिंदी सेवकों में एक नाम कल्पना लालजी का है, जिन्होंने कविता, कहानी, खंडकाव्य लिखे हैं और विशेषत: बाल-साहित्य में भी लेखनी चलाई है। आपका बाल कविता संग्रह “खट्टी-मीठी मुस्कानें” चर्चित रचना है।

मॉरीशस के हिंदी में बाल-साहित्य के सृजनात्मक पक्ष के बारे में कवयित्री लिखती हैं– “खट्टी-मीठी मुस्कानें” मॉरीशस के बाल-साहित्य को समृद्ध करने की दिशा में सकारात्मक पहल है क्योंकि मॉरीशस के समृद्ध हिन्दी साहित्य में बाल-साहित्य की रचनाओं की कमी है। इस बात का ज़िक्र कल्पना लालजी ने पुस्तक की भूमिका के अंतर्गत किया है– “हमारे देश में हिन्दी-बाल-साहित्य आज भी बाल अवस्था में है, उसका विकास होना बाक़ी है।”3 इस कविता संग्रह में बहुत ही भावपूर्ण रचनाएँ हैं जो बालकों के चतुर्दिक विकास का मार्ग प्रशस्त करती हैं। जहाँ कविताओं में सहजता और सरलता है वहीं भावों-विचारों की गंभीरता है। कवयित्री ने बाल मनोभावों की गहरी पकड़ के साथ उनकी आवश्कताओं, रुचियों को केंद्र में रखकर कविताओं का सृजन किया है। कविताओं की लयात्मकता इन्हें बच्चों के बहुत क़रीब लाने में सफल प्रतीत होती है। बाल-मन समसामयिक परिवेश और परिस्थितियों से सर्वाधिक प्रभावित होता है इसका भी रचनाकर्म में ध्यान रखा गया है। 

बालमन में कठिन परिश्रम के महत्त्व को बताते हुए कवयित्री बालकों को उनके सामर्थ्य से परिचित कराकर उन्हें उन्नति के लिए प्रोत्साहित करते हुए लिखती हैं– 

मेहनत से तुम न घबराना 
हर पल आगे बढ़ते जाना
चट्टानों का सीना चीर 
द्वार प्रगति का जा खोलो।

समाज में बढ़ते वैमनस्य और युद्ध की परिस्थितियों के प्रति कल्पना लाजी ने सकारात्मक सोच बच्चों में भरने का प्रयास किया है जहाँ उन्होंने अपनत्व की भावना को बढ़ाकर विश्व-बंधुत्व की भावना का समर्थन किया है वहीं संदेह दिया है कि विषम परिस्थितियों में संयम से काम लेना श्रेयस्कर होगा और इससे युद्ध के ख़तरे को टाला जा सकता है, जो मानवता के लिए हानिकारक है। वे कहती हैं– 

मित्रता और प्रेम बढ़ाना 
जग में ऊँचा नाम कमाना 
मार्ग शांति का अपनाकर
विश्व-युद्ध के संकट टालो 

नानी सुना कहानी, दादाजी और बंदर, चतुर बंदर, मुड़िया पहाड़ आदि कविताओं में कल्पना लालजी ने बाल मनोविज्ञान की गहरी परख के साथ नैतिक शिक्षा से संबंधित कहानियों को काव्य-रस में डुबो कर प्रस्तुत किया है। कवयित्री भली-भाँति परिचित है कि बालकों को कहानियाँ बहुत प्रिय होती हैं। कहा जाता है कि गीत बच्चों के मन की वाणी है और कहानी उनके मन का भोजन, बच्चों की अंतहीन उत्सुकता के कारण ही मानव संस्कृति में कहानी का अंतहीन सिलसिला चलता रहता है। कहानी बच्चों की भूख भगा देती है, उसकी आँखों की नींद उड़ा देती है। कहानी को बच्चे हर समय और हर स्थिति में सुनने को तैयार रहते हैं। सभी जानते हैं कि बचपन से ही बाल-मन को उनके रसास्वादन का अवसर मिलता है। कवयित्री ने उन्हीं कथावस्तु को कविता में सहज-सरल ढंग से लयात्मकता के साथ प्रस्तुत किया है जो रोचक होने के साथ-साथ नैतिकता का पाठ भी बालपन को सिखाता है। ‘नानी! सुना कहानी’ कविता में बहुप्रचलित शेर और खरगोश की कहानी को आधार बनाकर झूठा अभिमान न करने की शिक्षा दी है। ‘चतुर बंदर’ कविता में बंदर और मगरमच्छ की कहानी की कथावस्तु कविता में पिरोई गई है और बालमन में यह भावना भरने का प्रयास है कि हमेशा सजग रहना चाहिए तथा विपरीत स्थिति में संयम व् बुद्धि से काम लेना चाहिए। ‘मुड़िया पहाड़’ कविता मॉरीशस के विशिष्ट पहाड़ के संबंध में प्रचिलित लोक कहानी ‘परी और दूधवाले लड़के शान्तु’ की कथावस्तु पर आधारित है जिसमें लिखिका ने बताया कि मुड़िया पहाड़ कैसे बना और कविता के माध्यम से यह शिक्षा दी है कि हमें किसी के साथ विश्वासघात नहीं करना चाहिए।

प्राकृतिक विपदाओं पर कविता ‘तूफ़ान’ बहुत ही रोचक और बाल-मन में नवीन चेतना का संचार करने वाली है, विषम परिस्थितियों का पूरी हिम्मत से सामना कर नव-निर्माण के लिए प्रोत्साहन की प्रेरणा देने वाले भावबोध से परिपूर्ण कविता है। बच्चों के एक-एक सब्द में चित्रात्मकता के गुण हैं जो तूफ़ान की भयावयता को दर्शाता है पर कवयित्री संदेश देती है कि हम भय को दूर भगाकर हिम्मत से नव-निर्माण के लिए काम करेंगे– 

पर हम कब हैं डरने वाले, नहीं राह में रुकने वाले, 
ऐसे तूफानों के डर से निकालेंगे ना क्या हम घर से 
बढे चलेंगे बढ़े चलेंगे कष्टों को हम पार करेंगे 
देश के वीर जवान बनेंगे उसका नव-निर्माण करेंगे॥ 

अपने देश से परिचित कराती ‘मॉरिशस है देश हमारा’ कविता बहुत महत्वपूर्ण है इसके माध्यम से जहाँ हिंदी शब्दों में अपने देश की भौगोलिक, प्राकृतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थितियों का मनोहारी चित्रण किया वहीं बच्चों को शब्दों में देश का वैभव समझाया है। कुछ पंक्तियाँ देखिए–

मॉरिशस है देश हमारा 
हिन्द महासागर का तारा 
छोटा-सा पर बड़ा ही प्यारा 
इंद्रधनुषी देश यह हमारा।
    रक्षा सागर इसकी करता
    मुड़िया पहाड़ है पहरा देता 
    शामारैल का कण-कण कहता 
    सोना इस माटी में बसता॥

यह सर्वमान्य तथ्य है कि बच्चे निश्चल और निष्क्रिय होकर नहीं बैठ सकते, यह उनके स्वभाव के विपरीत होता है और इसीलिए संभवतः वे दुनिया की हर चीज़ को गतिशील एवं क्रियाशील देखना चाहते हैं।नाचना, कूदना, दौड़ना, भागना, चीखना-चिल्लाना, रोना-गाना आदि क्रियाओं को वे न केवल अपने जीवन में करना चाहते हैं बल्कि अपने साहित्य में भी देखना चाहते हैं। कल्पना लालजी ने बालमन के इन मनोभावों को अपने कविता संग्रह की अनेक कविताओं में शामिल किया है जो कवयित्री की बालकों के मन के प्रति सजगता का परिहायक है। ‘लुका-छिपी’ कविता के भावों को पढ़कर अपने बचपन के दिन अवश्य याद आयेंगे –

लुका-छुप्पी खेल रहे थे 
एक दिन घर के सारे बच्चे 
-------------
दीदी अब तो बाहर आओ 
और नहीं अब मुझे सताओ 
शिप्रा बोली अच्छा बाबा 
और नहीं अब दौड़ा जाता। 

पशु–पक्षियों, फूल–पत्तियों के प्रति लगाव बालमन को प्राप्त नैसर्गिक तत्व है तभी तो बच्चे प्रकृति के इन उपादानों से अपना तादात्म आसानी से बना लेते हैं। इस कविता संग्रह में इन भावबोध की कवितायें हैं जो बालमन के प्रकृति प्रेम को प्रदर्शित करती हैं– 

‘फूलों से तुम हँसना सीखो कलियों से मुस्काना’

जानवरों के प्रति बालमन हमेशा से स्नेहिल रहा है और जानवरों से बच्चों के लगाव के कारण ही बाल-साहित्य के रचनाकार अपनी रचनाओं में इनसे संबंधित कथा, कहानी, कविता का समावेश करते हैं। कल्पना लालजी ने भी इस संग्रह की कुछ कविताओं में जानवरों को शामिल किया है। दादा जी और बंदर, बिल्ली की घंटी, मछली, चतुर बन्दर बहुत ही रोचक और बालोपयोगी कवितायें हैं। इन कविताओं में कवयित्री ने इन जानवरों के माध्यम से बच्चों के नैतिक विकास से जुडी संवेदनाओं को अभिव्यक्त किया है। 

समाज के सांस्कृतिक समारोह, उत्सवों, त्योहारों का आनंद बच्चों के जीवन में ख़ुशियों की अनुभूति कराते हैं और वे निश्छल भाव से इनका मज़ा लूटते हैं। इस संग्रह की अनेक कवितायें जैसे– ‘होली के रंग’, ‘दीपावली’, ’रक्षा-बंधन’ इनके उदाहरण हैं। दीपावली का त्यौहार बच्चों को भाता है तभी तो कवयित्री कहती हैं–

दीपों की झिलमिल ज्योति 
दीपावली की पावन बेला 
हर मन को है हर्षाती 

रक्षाबंधन की महत्ता को बताती हुई कवयित्री लिखती हैं–

पहले बहना तिलक लगाये 
फिर भैया राखी बँधवाये 
रक्षा का वह वचन निभाये 
भाई बहन का प्यार बढ़ावे। 

बालकों के मन में विज्ञान से जुड़े विषयों की जानकारी की उत्कंठा हमेशा रहती है और नए तकनीक और प्रोद्योगिकी से बहुत जल्दी व्यावहारिक होने की क्षमता रखते हैं। इस संग्रह में ‘सवेरा’, ‘कंप्यूटर’, ‘विज्ञान’, ‘रेलगाड़ी’, ’घड़ियाँ’ कविताओं में विज्ञान से जुडी व्यवहारिक जानकारी को काव्य पंक्तियों में पिरोया गया है। ‘चन्दा मामा’ कविता में चन्द्रमा के स्वरूप के घटने-बढ़ने का ज़िक्र कर बच्चों में इसके कारण को जानने के लिए प्रेरित पंक्तियाँ बच्चों को प्रोत्साहित करती हुई लगती हैं–

कभी गोल नज़र आते हो 
कभी किनारा कर जाते हो 
आँख मिचौली कभी खेलते 
तारों संग नज़र आते हो॥ 

कंप्यूटर कविता में भी कवयित्री इस यंत्र की रचना-प्रक्रिया, संचालन और उपयोग की महत्ता का प्रतिपादन किया है वे लिखती हैं–

बैंकों में मैं नजर आता 
मुझ बिन काम न चल पाता
सेवा मेरी जो कोई पाता 
पल में काम सभी हो जाता।

किसी भी राष्ट्र के बालक उसके भविष्य होते हैं। उन्हें योग्य व सुसंस्कृत बनाने में सबसे ज़्यादा योगदान बाल-साहित्य का ही होता है। ऐसा बाल-साहित्य उन्हें पढ़ने को दिया जाना चाहिए, जो उनकी बाल सुलभ जिज्ञासाओं को शांत करते हुए उनके सम्यक विकास में सहायक हो। बच्चों को कहानी व कविताएँ ख़ूब पसंद आती हैं। कविताएँ छोटी होने से याद रह जाती हैं और बच्चे उन्हें सहजता से गाते-गुनगुनाते रहते हैं इसलिए उन्हें सर्वाधिक प्रिय भी होती हैं। कल्पना लालजी की इन कविताओं में उपदेशात्मक शैली में बच्चों को शिक्षा देने का प्रयास है, शब्दों और पंक्तियों में बहुत गहराई है, कुछ उदाहरण देखें–

व्यायाम करे जो प्रातःकाल 
उसका जीवन होता ख़ुशहाल 
वक्त करो न तुम बरबाद 
मेरी सीख तुम रखना याद। 

इसी प्रकृति की अन्य पक्तियाँ हैं– 

मित्रता का दामन पकड़ो 
प्रेम करो तुम कभी न झगड़ो 
सच और झूठ को पहचानो 
सच्चाई को अपना मानो। 

मेहनत से तुम न घबराना 
हर पल आगे बढ़ते जाना 

सोच समझ कर कदम उठाओ 
सही राह सदा अपनाओ। 

भू-वैश्वीकरण की आपाधापी और तकनीकी के तेज़ बढ़ते फैलाव ने बच्चों को सबसे ज़्यादा प्रभावित किया है और वे आभासी दुनिया मे ही अपना समय व्यतीत कर रहे हैं। ‘विज्ञान’ कविता में दिन और रात होने की बात को कवयित्री ने बहुत ही रोचक अंदाज़ में अभिव्यक्त किया है–

घूम धुरी पर जब वह जाती 
दिन और रात तभी ले आती 
चाँद सितारे सूरज लाती 
चेतना और प्रेम जगाती॥

इस संग्रह की सभी रचनाओं को मैंने बार-बार पढ़ा और आश्चर्यचकित हूँ कि बालमन को आत्मसात कर सृजित रचनायें सही मायने में बच्चों के मनोभावों को निश्छलता पूर्वक कुशलता से प्रकट करती हैं। इन कविताओं में परिवार, धरती, प्रकृति, मौसम, पर्यावरण, ब्रह्मांड, खेल-खिलौने पशु-पक्षी, पेड़-पौधे हैं तो विज्ञान के विषय भी पाठक को प्रभावित करते हैं। इन कविताओं के माध्यम से कवयित्री के बुद्धि कौशल, संवेदनशीलता, सृजनशीलता को भी परिलक्षित किया जा सकता है। इन कविताओं में बाल सुलभ चपलता, चूहलता, मनोरंजकता के साथ ही बाल जीवन की धमा-चौकड़ी वाली छोटी-छोटी बातों का परिचय भी पाठक प्राप्त करते हैं। इस संग्रह की कविताओं में गेयता का भाव बच्चों के लिए रोचकता पैदा करता है और उस गेयता में बालमन को नैतिकता का पाठ पदाने का स्तुत्य प्रयास है. भाषा बोधगम्य है और बालमन के अनुरूप है, मुहावरों से कविता का सौंदर्य बढ़ा है और उसमें लयात्मकता आ गई है। मेरा तो मानना है कि बाल-साहित्य के रचनाकार के कलापक्ष को नज़रंदाज़ करके भावपक्ष पर ध्यान देकर इन रचनाओं को आत्मसात करना चाहिए। यह संग्रह बाल-साहित्य जगत के लिए गौरव ही नहीं प्रेरणा प्रदान करने वाला भी सिद्ध होगा। 

संदर्भ- 

हिन्दी बाल-साहित्य का विवेचनात्मक अध्ययन- मस्तराम कपूर
हिंदी बाल साहित्य विमर्श, डॉ. शकुंतला कालरा 
हिन्दी बाल-साहित्य का विवेचनात्मक अध्ययन- मस्तराम कपूर

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