समाज का यथार्थ चित्रण 'दंडनायक' की कहानियों में
समीक्षा | पुस्तक समीक्षा डॉ. दीपक पाण्डेय15 May 2021 (अंक: 181, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
पुस्तक: दंडनायक
लेखक: उमाकांत खुबालकर
प्रकाशक : मित्तल एँड संस, आई पी एक्सटेंशन, दिल्ली
संस्करण : 2019, पृष्ठ – 120,मूल्य- रु 195/-
उमाकांत खुबालकर के सद्यः प्रकाशित कहानी संग्रह ‘दंडनायक’से गुज़रना एक अनुभव संसार से गुज़रना है। आज के साहित्यकारों में उमाकांत खुबालकर एक उल्लेखनीय नाम है। इस कथा संग्रह से पूर्व प्रकाशित कहानी संग्रहों (शहर और पगडंडियाँ, व्यतिक्रम, विखंडित राग), नाटकों (पेपरवाला, खामोश नहीं है नारी, तक्षक हंस रहा है) जैसी साहित्यिक रचनाओं से साहित्यिक जगह में अपनी पहचान बनाई है और एक समर्थ कहानीकार के रूप में जाने जाते हैं।
नवीनतम कथा संग्रह ‘दंडनायक’ में पंद्रह कहानियाँ संगृहीत हैं। ये कहानियाँ अपनी विशिष्ट अतंर्वस्तु, सुघड़ रूपविधान और भाषा की सघन बुनावट के चलते पाठकों के ध्यान को अपनी आकर्षित करती हैं और यह महसूस कराती हैं कि कहानी की घटना हमारे आसपास की ही घटना और परिवेश को बयां कर रही हैं। इस संग्रह की कहानियों को पढ़ने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचा जा सकता है कि ‘दंडनायक’ की कहानियाँ गहरी संवेदनाओं को लेकर गंभीर विचार-विमर्श करती हैं, नारी-जीवन के विविध पक्षों, समाज के बेहद निर्मम समय को निकट से देखने, समझने तथा अनुभव करनेवाली; मानव-मूल्यों के ह्रास को अभिव्यक्त करने वाली सशक्त कथाएँ हैं। इसलिए उनकी कहानियाँ जीवन की तलछट में दबी-ढकी उन सच्चाइयों को भी उघाड़ने की शक्ति और सामर्थ्य रखती हैं, जिन्हें समाज में नगण्य मानकर अक़्सर अनदेखा कर दिया जाता है। लेखक ने इस पुस्तक को अपनी माताजी को समर्पित किया है और अपनी बात के अंतर्गत लिखा है– “इस संग्रह में दलित नारी के जीवन-संघर्ष का जुझारूपन दिखाई पड़ेगा तथा घरेलू मोर्चे पर पुरुषीय हिंसा के प्रतिरोध में आक्रामकता के तेवर भी नज़र आयेंगे। व्यस्थागत विसंगतियों एवं बेलगाम भ्रष्टाचार के साथ प्रतिबद्धता के साथ लड़ते हुए युवा शक्ति का तेज पुंज भी दृष्टिगत होगा।’(पृ-7)
‘खटराग’ कहानी गंभीर संवेदानात्मक कहानी है जिसमें ग़रीबी की विषमताओं और माँ के मातृत्व के उदात्त भाव को अभिव्यक्त किया है। आज जहाँ देखो वहाँ चारों तरफ ग़रीबों की दयनीय स्थितियाँ, परिस्थितियाँ और परिवेश मन को द्रवित कर देता है। देश की सड़कों की रेडलाइटों, चौराहों, बाज़ारों, पर्यटक स्थलों, धार्मिक स्थलों आदि के आस-पास भीख माँगते बच्चे, युवा, बूढ़े सब समाज का घिनौना रूप प्रदर्शित करते हैं। लेखक ने इस कहानी में देश की इस शोचनीय दशा का चित्रांकन तो किया है वहीं रामप्यारी नामक पात्र के माध्यम से समाज में मातृत्व भावों को झकझोड़ने वाली परिस्थिति को प्रस्तुत किया है। रामप्यारी ग़रीब परिवार में जन्मती है और जीवन भर ग़रीबी का दंश झेलती है। रामप्यारी भीख माँगकर पुत्र हितेश और पुत्री जानकी को अपने परिवेश से दूर रखकर पढ़ाती-लिखाती है, परंतु पढ़-लिख कर दोनों बच्चे माँ से कोई नाता नहीं रखते। एक माँ की वेदना रामप्यारी के इस संवाद में व्यक्त है – “भैया, क्या हम इतने गए गुज़रे हैं? फिर क्यों न दुखी हों? पूरी जिन्दगी इन बच्चों को बड़ा करने पर लुटा दी। जिनावरों की तरह खटते रहे अपना शरीर गलाया,लोगों के सामने हाथ फैलाया.......इन औलादों को अब हमें माँ-बाप कहने में लज्जा आती है।” इस कहानी में लेखक ने समाज का प्रतिनिधित्व करने वालों की मानसिकता का चित्रांकन इस प्रकार किया है – ‘रामलाल के अलावा अन्य नेता, चुनावी सभाओं में रामप्यारी और उसके अन्य भिखारी साथियों को पार्टी की ड्रेस पहनाकर, झंडे लेकर नारे लगवाते।’ (पृ-19)
‘नियति’ कहानी भी ग़रीबी में नारी के त्रासद जीवन को अभिव्यक्ति है। ग़रीबी के कारण शिक्षित भारती बेमेल विवाह की वेदी चढ़ जाती है और पति व परिवार से उपेक्षा तथा प्रताड़ना पाती है। फिर भी वह प्रतिरोध नहीं करती बल्कि उसे अपनी नियति मानकार शिरोधार्य करती चली है।
‘एक और रजनीगंधा’ कहानी समाज में महिलाओं के शोषण, उनके प्रति दुर्भावना पूर्ण व्यवहार को चित्रित करती है। कामकाजी महिलाओं को दोहरे उत्तरदायित्व (घर और ऑफ़िस के दायित्वों) का निर्वहन करना होता है जहाँ ज़िम्मेदारी को निभाने में तनिक चूक हो तो उलाहने, धमकियों और अपमान को सहना पड़ता है। लेखक ने सुष्मिता नामक पात्र के माध्यम से इस सामाजिक विषय को रोचक अंदाज़ में प्रस्तुत किया है।
‘अभिमान’ कहानी मध्यमवर्गीय समाज का प्रतिनिधित्व करने वाली कथा पर आधारित है, जहाँ व्यक्ति की नौकरी के साथ जीवन की जद्दोजेहद जारी रहती है और जीते-जीते जी सर ढकने के छत की जुगत भिड़ाता है पर उसे सुकून नहीं मिल पाता। कथा को थपलियाल और उसके परिवार के साथ बहुत ही रोचक अंदाज़ में पिरोया गया है। इस कहानी में सजग लेखक ने सैनिकों के देश-सेवा के लिए प्राण न्योछावर तक के समर्पण की भावना को किशन पात्र के माध्यम से चित्रित किया है पर सैनिक के निष्ठा और समर्पण के एवज़ में मिलने वाले वेतन और सुख-सुविधाओं को न्याय संगत नहीं माना है परंतु लेखक का यह सुझाव कि देश के हर घर से एक युवा को सेना में सेवा देनी चाहिए स्वागत योग्य है।
‘अनामिका’ कहानी भी मध्यवर्ग के जीवन की महत्वाकांक्षाओं के कारण नैतिक पतन और मूल्यों के ह्रास से सम्बंधित विषय पर बुनी गई है। कहानी प्रेमा, रीतेश और उनकी बेटी माधुरी के इर्द-गिर्द घूमती है। जहाँ रीतेश कम समय में बहुत कुछ पाने के घमंड में चूर हो कर नैतिक पतन में डूब मरता है वहीं युवा आधुनिकता की अंधी दौड़ में कैसे संस्कारहीन हो रहे हैं उसे युवा माधुरी नामक चरित्र के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है।
इस संग्रह की कहानी ‘दंडनायक’ पुलिस व्यवस्था में व्याप्त दुराचार और भ्रष्टाचार का पर्दाफ़ाश करती है। यह बहुत ही रोचक कहानी है और सन्देश देती है कि दुराचार में लिप्त लोगों के ख़िलाफ़ हिम्मत और से संघर्ष कर समाज में सजगता लाने का प्रयास करना चाहिए। चुंगी-नाके पर लूट-खसोट के पुलिसिए कारनामों के माध्यम से जहाँ इस कहानी में दुराचार और भ्रष्टाचार को मुख्य विषय बनाया है वहीं समाज में आपसी सद्भाव और भाईचारे की भावना से कठिन परिस्थितियों से भी उबरने की बात भी प्रमाणिकता को सिद्ध किया है।
बाल-शोषण पर रोचक कथा ‘गुस्ताखी’ सोसाइटी के प्रबुद्ध-वर्ग की मानसिकता पर कड़ा प्रहार करती है। जहाँ सोसाइटी की निवासी विशाखा बाल मज़दूर संगीता के पक्ष में उसके हित में आवाज़ उठाती है वहीं व्यवस्था और नियम क़ानून, बाल मज़दूर की विवशता को हथियार बनाकर विशाखा जैसों को ही दोषी सिद्ध करने में सफल होते हैं।
‘दुर्घटना’ कहानी भी समाज में ढोंगी और पाखंडी मानसिकता की पोल खोलती है। धन के मद में चूर जहाँ आर.के. सिंह, ग़रीब और लाचार साधना को सहानुभूति के जाल में फँसाता है और इंसानियत को तार-तार करने वाली सोच से विश्वासघात करता है। यह कहानी भी इस बात को उठाती है कि कैसे पुलिस प्रशासन में भ्रष्ट व्यवस्था समर्थ व्यक्ति के धन से कैसे नि:सहाय के प्रति न्याय करती है। पुलिस और आर.के. सिंह के संवाद से ही बात पुष्ट होगी – "देखिए मि. सिंह, यह ओपन मर्डर केस है। लेकिन इसमें आई विटनेस नहीं है, इसलिए इसमें कुछ झोल है।" ................ “जी मैं समझ रहा हूँ फिर भी अपनी डिमांड बताइए?”
“देखोजी, बात एकदम क्लियर कट है। हम स्टाफ में तीन लोग हैं और ड्राइवर मिलाकर कुल चार। इसलिए पूरे दस लाख लगेंगे, वरना जेल में सड़ोगे।” (पृ 71)
‘दिशांतर’ कहानी पर्यावरण की स्वच्छता के महत्त्व को प्रतिपादित कथ्य पर आधारित है जिसमें तीन पीढ़ियों के पात्रों के माध्यम से समाज को यह सन्देश दिया है कि पर्यावरण मानव जाति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। ‘साक्षरता का सबेरा’ सरकार की साक्षरता नीति के पक्ष से संबंधित कथ्य को प्रतिपादित करती है और यह संदेश देती है कि अशिक्षा के कारण दूसरे पर निर्भर पड़ता है अत: साक्षरता आत्मनिर्भरता की, अच्छे जीवन की पहली सीढ़ी है।
कहानी समाज के विविध पक्षों को उसी रूप को अभिव्यक्त करने में सफल हैं जिस रूप में वे विद्यमान हैं। लेखक ने सूक्तियों, मुहावरों और कहावतों का प्रयोग कर गंभीर विचारों को पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास किया है। इन कहानियों की कथावस्तु समाज को ही प्रतिबिंबित करती है अत: पाठक इससे अपने अनुभवों को जोड़ने लगता है तभी वह रुचि के साथ इनकी गंभीरता में डूबता-उतराता चलता है। छोटे-छोटे कथोकथन और संवाद सहज-सरल और बोधगम्य हैं। मुझे विश्वास है कि ‘दंडनायक’ की कहानियाँ पाठकों को अवश्य ही पसंद आयेंगी।
समीक्षक -डॉ दीपक पाण्डेय
सहायक निदेशक
केंद्रीय हिंदी निदेशालय
शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार
नई दिल्ली 110066
dkp410@gmail.com
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