अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी पत्रकारिता का दस्तावेज़ 


पुस्तक का नाम: हिंदी पत्रकारिता–राष्ट्रीयता और संस्कृति  
संपादक: डॉ. राज कुमार पाण्डेय 
समीक्षक: डॉ. दीपक पाण्डेय 
प्रकाशक: साहित्य संचय, बी-1050, गली नंबर-14
सोनिया विहार दिल्ली 110090
मूल्य: रु. 700/–
पृष्ठ: 272

समाज में सूचना का आदान-प्रदान मनुष्य की आवश्यकता है और इसकी पूर्ति पत्रकारिता के माध्यम से सहज ही सम्भव होती है। किसी भी समाज में सूचना-माध्यम महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है और यह माध्यम व्यक्ति से व्यक्ति के बीच, व्यक्ति और व्यवस्था या सरकारों के बीच सेतु का काम करता है, साथ ही साथ जन समस्याओं, जन सरोकारों और जन भागीदारी को प्रेरणा का कार्य करता है। आज वैश्विक धरातल पर अनेक सूचना-माध्यमों की उपस्थिति है जो समाज के लिए बहुत उपयोगी एवं अनिवार्य साधन बन गए हैं। 

‘हिंदी पत्रकारिता–राष्ट्रीयता एवं संस्कृति’ नामक पुस्तक प्राप्त हुई जिसमें हिंदी पत्रकारिता और भारतीय संस्कृति से संदर्भित चौंतीस लेख संकलित हैं। पुस्तक का संपादन डॉ. राज कुमार पाण्डेय ने किया है। इस पुस्तक में संकलित सभी लेख बहुत ही सूचनाप्रद और विषय को प्रतिपादित करने की की क्षमता से परिपूर्ण हैं। जहाँ हिंदी पत्रकारिता के उद्भव से लेकर उसके विकासक्रम के विविध प्रसंगों को जाना जा सकता है वहीं हिंदी पत्रकारिता को समर्पित गणमान्य महानुभावों के कार्यों एवं प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं के योगदान के बारे में जाना जा सकता है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और जनता को जागरूक करने उन्हें संगठित करने में हिंदी पत्रकारिता के योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता। हिंदी पत्रकारिता का उदय पंडित जुगल किशोर शुक्ल के संपादन में 30 मई, 1826 को प्रकाशित ‘उदंत मार्तण्ड’ से माना जाता है। इतिहास साक्षी है कि स्वाधीनता आंदोलन के आदि से अंत तक पत्रकारिता सक्रिय रूप से क्रियाशील रही है और अनेक पथ-प्रदर्शकों ने अपना सर्वस्व सौंपा भी है। महर्षि अरबिंद, महात्मा गाँधी, बाबू विष्णु पराड़कर, राजा राममोहन राय, भारतेंदु, मदन मोहन मालवीय, प्रतापनारायण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट, सावरकर, बाल गंगाधर तिलक, माखनलाल चतुर्वेदी, महावीर प्रसाद द्विवेदी, गणेश शंकर विद्यार्थी आदि अनेक अनेक निर्भीक और पराक्रमी महापुरुषों ने पत्रकारिता के माध्यम से स्वाधीनता आंदोलन को गति दी और नवजागरण की अलख जगाने में दिन-रात एक किया था। इस पुस्तक के कुछ लेखों के विशिष्ट संदभों से पुस्तक की उपयोगिता को जाना जा सकता है:

भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी का लेख ‘एकात्म मानवदर्शन के आधार पर बने मीडिया दृष्टि’ बहुत ही गंभीर है और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मीडिया के उत्तरदायित्वों को विश्लेषित करता है। लेखक का मानना है कि “जीवन मूल्यों की जितनी ज़रूरत मनुष्य को है उतनी ही मीडिया को भी है। यह सम्भव नहीं है कि समाज तो मूल्यों पर चलने का आग्रही हो और उसका मीडिया, उसकी फ़िल्में, उसकी प्रदर्शन कलाएँ, उसकी पत्रकारिता नकारात्मकता का प्रचार कर रही हो। समाज में मनुष्य को प्रभावित करने का सबसे प्रभावी माध्यम होने के नाते हम इन्हें इसे नहीं छोड़ सकते। इन्हें भी हमें अपने जीवन-मूल्यों के साथ जोड़ना होगा जो मनुष्यता और मानवता के विस्तार का ही रूप है।” (पृष्ठ-28) 

‘भारतेंदु युगीन पत्रकारिता: राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक उत्कर्ष’ लेख में प्रो. सूर्यकांत शास्त्री ने स्पष्ट किया है कि इस युग में मुखरित जीवनादर्शों से तद्युगीन सामाजिक, सांस्कृतिक नवजागारण का यथार्थ बोध होता है। इस युग के संपादकों ने अपनी प्रगतिशील विचारधारा के अवदान से नए भारत के निर्माण में इसी भूमिका का निर्वहन किया है जो परवर्ती राष्ट्रीय आन्दोलन और पत्रकारिता के लिए वरदान साबित हुई।” ((पृष्ठ-44) 

प्रो. पूरनचंद टंडन ने अपने लेख ‘गाँधी: जनजागरण और हिंदी’ में विस्तार से मानवता के लिए गाँधीवादी चिंतन को आवश्यक और प्रासंगिक माना है। उन्होंने लिखा है कि “भारतीय भविष्य की कुंजी गाँधी दर्शन में विद्यमान है। जीवन में रचनात्मकता कैसे लाई जाए, स्वस्थ एवं योगी जीवन कैसे बनाया जाए, साधक और साधना का रिश्ता कैसे निभाना है, सात्विक भोजन योग और चिकित्सा संबंधी दृष्टि कैसे विकसित की जाए, ये सब कुछ गाँधी दर्शन हमें बख़ूबी और पूरी सादगी से सिखाता हैं। वास्तव में गाँधी जी का जीवन, व्यक्तित्व-कृतित्व हम सभी के लिए, सम्पूर्ण विश्व के लिए हर तरह से प्रेरक है।” (पृष्ठ-52) 

मॉरीशस को लघु भारत भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ का वातावरण भारतीयता से सराबोर है। प्रो. विनोद मिश्र ने ‘मॉरीशस की हिंदी पत्रकारिता और भारतीय संस्कृति’ आलेख में भारतीय मज़दूरों के मॉरीशस द्वीप में पहुँचने और उनके त्रासद जीवन का विवेचन करते हुए उन्हें भारतीय संस्कृति के सच्चे संवाहक बताया है। आलेख में मॉरीशस में हिंदी पत्रकारिता के उद्भव और विकास को विस्तार से समायोजित किया गया है। मॉरीशस में हिंदी पत्रकारिता का प्रारंभ प्रवासी मज़दूरों पर हो रहे अत्याचारों के प्रतिरोध के लिए महात्मा गाँधी द्वारा भेजे गए मणिलाल डॉक्टर द्वारा ‘हिन्दुस्तानी’ नामक पत्र से होता है और यह क्रम 1948 में डॉ. शिवसागर रामगुलाम के सहयोग से ‘जनता’ समाचार पत्र, विष्णुदयाल द्वारा ‘ज़माना’ तथा आर्य समाज द्वारा ‘आर्योदय’ का प्रकाशन से आगे बढ़ता है। नागरी प्रचारिणी सभा की पत्रिका ‘दुर्गा’ से हिंदी में साहित्यिक पत्रिका का प्रारंभ माना जाता है और आज भी अनेक पत्रिकाएँ प्रकाशित हो रही हैं जैसे: बसंत, इन्द्रधनुष, विश्व हिंदी पत्रिका, विश्व हिंदी साहित्य आदि। मॉरीशस में हिंदी पत्रकारिता की वर्तमान स्थितियों पर विनोद मिश्र जी ने गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए लिखा है कि “मॉरीशस में अब हिंदी का एक भी समाचार पत्र प्रकाशित नहीं होता, हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता की स्थिति भी दुखद प्रतीत होती है, समय रहते इसके निदान की दिशा में सार्थक और रचनात्मक प्रयास किए जाने की नितांत आवश्यकता है।” (पृष्ठ-61) 

इसी प्रकार अन्य उत्कृष्ट लेख भी पुस्तक को पठनीय और उपयोगी बनाते हैं। ‘स्वाधीनता आंदोलन और हिंदी पत्रकारिता’ में प्रो. हितेंद्र मिश्र ने हिंदी पत्रकारिता के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर विचार किया है। हिंदी पत्रकारिता और राष्ट्रीय आंदोलन के परिदृश्य भारतीय चिंतकों, साहित्यिकारों, राजनैतिक व्यक्तित्वों आदि के योगादन पर आधारित लेख ज्ञानवर्धक और सूचनाप्रद हैं। महात्मा गाँधी, हनुमान प्रसाद पोद्दार, मदनमोहन मालवीय, भारतेंदु, माखनलाल चतुर्वेदी, महावीर प्रसाद द्विवेदी, बालमुकुन्द गुप्त, शिवपूजन सहाय, गणेशशंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी आदि के अवदानों पर गंभीर चिंतनपरक लेख पाठक को समृद्ध करने में सामर्थ्यवान हैं। चाँद, दस्तक प्रभात, हिंदी प्रदीप, हंस आदि पत्रिकाओं पर आधारित आलेख हिंदी साहित्यिक पत्रिकाओं के योगदान को रेखांकित करते हैं। 

निश्चित ही यह पुस्तक पाठकों के लिए उपयोगी होगी। पुस्तक में सम्मिलित सभी लेखकों को हार्दिक बधाई और संपादन के दायित्व का निर्वहन के लिए डॉ. राज कुमार पाण्डेय को साधुवाद। 

डॉ. दीपक पाण्डेय 
सहायक निदेशक, केंद्रीय हिंदी निदेशालय 
शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार 
नई दिल्ली 
ईमेल: dkp410@gmail.com

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

पुस्तक समीक्षा

साहित्यिक आलेख

बात-चीत

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं