वैश्विक परिदृश्य में हिंदी पत्रकारिता का ख़ज़ाना
समीक्षा | पुस्तक समीक्षा डॉ. दीपक पाण्डेय1 Dec 2024 (अंक: 266, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
पुस्तक का नाम: विदेश में हिंदी पत्रकारिता
लेखक: जवाहर कर्नावट
प्रकाशक: नेशनल बुक ट्रस्ट, नेहरू भवन, 5 इंस्टीट्यूशनल एरिया, फेस-II, वसंत कुञ्ज, नई दिल्ली 110070
पृष्ठ: 294,
मूल्य: ₹400.00
समाज में सूचना का आदान-प्रदान मनुष्य की आवश्यकता है और इसकी पूर्ति पत्रकारिता के माध्यम से सहज ही सम्भव होती है। किसी भी समाज में सूचना-माध्यम महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है और यह माध्यम व्यक्ति से व्यक्ति के बीच, व्यक्ति और व्यवस्था या सरकारों के बीच सेतु का काम करता है, साथ ही साथ जन समस्याओं, जन सरोकारों और जन भागीदारी को प्रेरणा देने का कार्य करता है। आज वैश्विक धरातल पर अनेक सूचना-माध्यमों की उपस्थिति है जो समाज के लिए बहुत उपयोगी एवं अनिवार्य साधन बन गए हैं। पत्र-पत्रिकाओं का गौरवशाली इतिहास समाज का अभिन्न हिस्सा है। विश्व के कोने-कोने से किसी न किसी भाषा में पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन होता है। यह बात हम सभी को गौरवान्वित महसूस करने का मौक़ा देती है कि विश्व के अनेक देशों से हिंदी पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन होता रहा है और निरंतर हो रहा है। भारत के बाहर की अनेक पत्र-पत्रिकाओं ने हिंदी-जगत में अपना विशेष मुक़ाम बनाया है और हिंदी के प्रचार-प्रसार में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। ऐतिहासिक दृष्टि से विदेशों में हिंदी पत्रकारिता का जन्म सन1883में लंदन से प्रकाशित ‘हिन्दोस्थान’ नामक त्रैमासिक पत्र से विदेश में प्रकाशित होनेवाले सर्वप्रथम हिंदी पत्र के रूप में स्वीकार किया जाता है। इसके संस्थापक राजा रामपाल सिंह थे। यह त्रिभाषी रूप में प्रकाशित होता था और इसमें हिंदीके साथ ही उर्दू तथाअंग्रेजी के अंश भी रहते थे। कुछ के नाम हैं: पुरवाई, विश्वा, हिंदी जगत, भारत दर्शन, सेतु, सौरभ, हिंदी की गूँज, हिंदी चेतना, साहित्यकुंज, आस्ट्रेलियांचल, बसंत, इन्द्रधनुष, दुर्गा, स्पाइल दर्पण, शांतिदूत, हिंदी ख़बर, वसुधा, अनुभूति, अन्यथा, अभिव्यक्ति, यात्रा, हिमालिनी, सिंगापुर संगम आदि-आदि।
‘विदेश में हिंदी पत्रकारिता’ जवाहर कर्नावट की हाल में नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली से प्रकाशित नवीनतम कृति है। विश्व के लगभग 27 देशों में पिछले 120 वर्षों की हिंदी पत्रकारिता, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और हिंदी रेडियो प्रसारण आदि की यात्रा को सचित्र इस पुस्तक की विषय-वस्तु में विस्तार से समाहित किया गया है। यह शोधपरक पुस्तक हिंदी प्रेमियों के लिए नई जानकारी का ख़ज़ाना है जो लेखक जवाहर कर्नावट के अथक परिश्रम का प्रतिफल है। आज जब भारत के उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों में भारत से बाहर लिखे जा रहे हिंदी साहित्य को शामिल किया जा रहा है तो इस पुस्तक की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है। ‘विदेश में हिंदी पत्रकारिता’ पुस्तक की विषय-सामग्री को लेखक ने चार खण्डों में विभक्त किया है:
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गिरमिटिया देशों में हिंदी पत्रकारिता
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उत्तरी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप के देशों में हिंदी पत्रकारिता
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यूरोप महाद्वीप के देशों में हिंदी पत्रकारिता
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एशिया महाद्वीप के देशों में हिंदी पत्रकारिता
‘गिरमिटिया देशों में हिंदी पत्रकारिता’ खंड के अंतर्गत मॉरिशस, फीजी, दक्षिण अफ्रिका, सूरीनाम, गयाना एवं त्रिनिदाद एवं टोबैगो में हिंदी प्रकाशन की गहन पड़ताल करते हुए इन देशों के हिंदी पत्रकारिता के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य की जानकारी दी गई है। जैसा कि सभी को विदित है कि 19वीं शताब्दी में उपनिवेशवादी शक्तियों द्वारा भारत से हज़ारों की संख्या में एग्रीमेंट के तहत मज़दूरों को विश्व के अनेक देशों में ले जाया गया था, भारतीय मज़दूरों ने अपनी भाषा, साहित्य और संस्कृति से सम्बल प्राप्त कर विपरीत परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाया और प्रवासन देश को अपने सामर्थ्य से समृद्ध बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी साथ ही प्रवासन देश को अपनाने के साथ अपनी भाषा, साहित्य और संस्कृति को समृद्ध करने के उपक्रम से जुड़े रहे और इसी उपक्रम का परिणाम है कि इन देशों में हिंदी भाषा और साहित्य, हिंदी पत्रकारिता की सुदृढ़ इमारत उपलब्ध है। मॉरीशस में हिंदी पत्रकारिता प्रारंभ 15 मार्च, 1909 को प्रकाशित ‘हिन्दुस्तानी’ पत्र के प्रकाशन से प्रारंभ माना जाता है। इस पत्र के मुखपृष्ठ का आदर्श वाक्य था, “व्यक्ति की स्वतंत्रता! मनुष्य की समानता! जातियों का भाईचारा!” इसके प्रकाशन का दायित्व मणिलाल डॉक्टर के पास था जो महात्मा गाँधी की प्रेरणा से मॉरीशस पहुँचे थे। इसके बाद मॉरीशस से हिंदी में अनेक पत्र-पत्रिकाएँ समय-समय पर प्रकाशित होती रहीं और कुछ आज भी हो रही हैं। पुस्तक में लेखक ने मॉरीशस की हिंदी पत्रकारिता में हिन्दुस्तानी, जनता, आर्योदय, दुर्गा, कांग्रेस, हिन्दू धर्म, दर्पण, इण्डियन टाइम्स, अनुराग, महाशिवरात्रि, आभा, ज़माना, जागृति, नवजीवन, आर्यवीर, बालसखा, वसंत, रिमझिम, स्वदेश, इन्द्रधनुष, पंकज, सुमन, ओरियंटल गजट (इसका पूर्व नाम ‘आर्य पत्रिका’था) मॉरीशस इण्डियन टाइम्स, विश्व हिंदी सचिवालय से भी वर्तमान में प्रकाशित हो रही ‘विश्व हिंदी समाचार’, ‘विश्व हिंदी पत्रिका’, ‘विश्व हिंदी साहित्य’ आदि का विश्लेषण किया है साथ ही लेखक ने मॉरीशस में हिंदी के उज्ज्वल भविष्य के लिए कम से कम एक हिंदी के दैनिक पत्र के प्रकाशन की आवश्यकता को रेखांकित किया है जिससे मॉरीशस की हिंदी पत्रकारिता को नया आयाम मिल सकता है।
दक्षिण अफ़्रीका में हिंदी पत्रकारिता की यात्रा 4 जून, 1903 को प्रकाशित ‘इन्डियन ओपिनियन’ पत्र से प्रारंभ होती है जिसे नाटाल इण्डियन कांग्रेस के सचिव एम.एच. नाजर प्रवासी भारतीयों की आवाज़ बुलंद करने के उद्देश्य से, संपादित करते थे। यह पत्र चार भाषाओं में प्रकाशित होता था: अंग्रेजी, गुजराती, हिंदी और तमिल। इसी क्रम में समय-समय पर नए पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ: ‘अमृतसिंधु’ नामक एक मासिक पत्र, ‘धर्मवीर’ (संपादक-भवानीदयाल संन्यासी), ‘हिंदी’ (संपादक-भवानीदयाल संन्यासी), ‘राइजिंग सन’, ‘हिंदी खबर’ आदि का विशेष महत्त्व है। इस पुस्तक के लेखक ने दक्षिण अफ्रिका के पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित समाचारों के उदाहरण से तत्कालीन समय में वहाँ की प्रगति में हिंदी पत्रकारिता के महत्त्व को रेखांकित किया है।
फीजी में हिंदी पत्रकारिता शीर्षक के अंतर्गत जवाहर कर्नावट जी ने फीजी में मज़दूरों के रूप में भारतीयों के द्वीप में आगमन की उल्लेखनीय जानकारी देते हुए ‘फीजी बात’ भाषा के उद्भव को भी समाहित किया है। फीजी में हिंदी पत्रकारिता का उद्भव डॉ मणिलाल द्वारा फीजी में भारतीय मज़दूरों को संगठित करने के लक्ष्य से ‘द सेटलर’ नामक पत्र के हिंदी संस्करण से माना जा सकता है जिसके संपादन का दायित्व पंडित शिवराम शर्मा ने निभाया। 19 वीं सदी के दूसरे दशक में अनेक हिंदी पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन की शुरूआत हुई जिनमें फीजी समाचार, भारत पुत्र, वृद्धि एवं वृद्धिवाणी, शांतिदूत, द इंडियन टाइम्स, जागृति, जय फीजी और फीजी संदेश, राजदूत, फीजी वृत्तांत, शंख, फीजी फ़ोकस, उदयाचल, साहित्यकार, सरताज, संस्कृति आदि पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन और उनकी विषयवस्तु पर यथायोग्य टिप्पणी की साथ ही इनके प्रकाशन नेतृत्त्व पर भी जानकारी दी गई है। फीजी में हिंदी के प्रचार-प्रसार ‘रेडियो फीजी दो’ एवं ‘मिर्ची फिल्म’ की महत्त्वपूर्ण भूमिका को भी रेखांकित किया है साथ ही इस बात पर भी बल दिया है कि फीजी में हिंदी को संवैधानिक भाषा का दर्जा प्राप्त है और स्कूली-शिक्षा में हिंदी को पर्याप्त स्थान दिया गया है।
सूरीनाम में हिंदी का पदार्पण लालारूख जहाज़ से 1873 में पहुँचे भारतीय गिरमिटिया मज़दूरों के साथ ही हुआ और हिंदी पत्रकारिता का प्रारंभ ‘लालारूख’ नामक हिंदी पत्रिका से माना जाता है। ऐसा समाचार, जागृति, जीवन, वैदिक जीवन प्रारंभिक काल की हिंदी पत्र-पत्रिकाएँ हैं। कालांतर में आर्य दिवाकर, सरस्वती, भारतोदय, धर्म प्रकाश, क्रूस की रोशनी, प्रेम संदेश, शांतिदूत, सेतुबंध, प्रकाश, भासा, वसंत, सूरीनाम दर्पण, शब्द शक्ति आदि पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन किया गया। सूरीनाम के 6 रेडियो स्टेशन (रेडियो राधिका, रेडियो पारामारिबो, रेडियो एपिंती, रेडियो त्रिशूल, रेडियो रानी, संगीतमाला) हिंदी कार्यक्रमों का बहुतायत से प्रसारण करते हैं। सूरीनाम में टेलीविज़न के अनेक चैनल हिंदी कार्यक्रम प्रसारित कर देश में हिंदी के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं।
गयाना, त्रिनिदाद-टुबैगो एवं अन्य कैरेबियन द्वीपों में भी गिरमिटिया भारतीय मज़दूरों के साथ हिंदी पहुँची और आज भी किसी न किसी रूप में अस्तित्व में है लगभग आधी आबादी भारतीय मूल की है। यहाँ हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक उपक्रम हुए उन्हीं में हिंदी पत्रकारिता का भी विशेष महत्त्व है। गयाना से प्रकाशित ज्ञानदा पत्रिका का उल्लेखनीय योगदान है। भारत समाचार पत्रिका और रेडियो गयाना की गतिविधियाँ भी हिंदी के प्रोत्साहन में कार्यरत हैं। त्रिनिदाद में बच्चू लाला के सहयोग से प्रकाशित ‘कोहिनूर’ अख़बार से हिंदी पत्रकारिता का उदय माना जाता है कालान्तर में प्रकाशित पत्रिकाओं में ज्योति, हिंदी निधि स्वर, प्रगति, यात्रा उल्लेखनीय हैं। त्रिनिदाद में अनेक रेडियो एवं टेलीविज़न चैनल हिंदी कार्यक्रम निरंतर प्रसारित करते रहते हैं।
इस प्रकार देखा जाए तो गिरमिटिया देशों की हिंदी पत्रकारिता भारतीयों को एकजुट करने और उन्हें भारतीयता से जुड़े रहने का माध्यम बने जिससे आज भी भारतीय सांस्कृतिक छटा सभी देशों में पुष्पित-पल्लवित हो रही है।
लेखक ने उत्तरी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया महाद्व्वीप के देशों में हिंदी पत्रकारिता के अंतर्गत अमेरिका, कैनेडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड की पत्रकारिता का विवेचन किया है। इन देशों में भारतीयों की पहुँच स्वतंत्रता के बाद तेज़ी से बनी और भारतीय स्वेच्छा से इन देशों में पहुँचे इसके पीछे कारण जो भी रहे हों। परंतु अमेरिका में 1913 में लाला हरदयाल के संपादन में निकालने वाले ‘ग़दर’ अख़बार से हिंदी पत्रकारिता की शुरूआत होती है, साथ ही यह अख़बार भारतीय भाषाओं (उर्दू, गुजराती, पंजाबी) में प्रकाशित होता था। अमेरिका से प्रकाशित अन्य पत्र-पत्रिकाओं में महत्त्वपूर्ण नाम हैं: वैशाली, नवरंग टाइम्स, क्षितिज, पंचवटी, भारती, भारत समाचार, सीमांतिका, विश्वा, सौरभ, हिंदी जगत, बाल हिंदी जगत, विज्ञान प्रकाश, विश्व विवेक, नमस्ते यू एस ए, हिंदु टेम्स, अमेरिकन समाचार, स्पैन, कर्मभूमि, यादें, सेतु, उद्गार, हिंदी कौस्तुभ, अनन्य, ई-कल्पना आदि। अमेरिका में रेडियो और अनेक टेलीविज़न द्वारा हिंदी से संबंधित कार्यक्रम नियमित रूप से प्रसारित किए जाते हैं।
कैनेडा में भारतीयों की संख्या में दिनों-दिन वृद्धि हो रही है पर 19वीं सदी के प्रारंभ में ही भारतीय कैनेडा में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके थे। तारकनाथ झा ने वैंकुवर में साथियों के साथ मिलकर ‘आजाद भारत’ नामक समाचार पत्र निकाला और इसे ही कैनेडा की हिंदी पत्रकारिता का उद्भव माना जाता है। इसके बाद अनेक पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित हुईं या हो रही हैं जिनमें प्रमुख हैं: स्वदेश सेवक, प्रेयसी खालसा, हिन्दुस्तान, भारती, विश्व भारती, जीवन ज्योति, हिंडे संवाद, संगम, अंकुर, हिंदी चेतना, वसुधा, नमस्ते कैनेडा, हिंदी टाइम्स, हिंदी एब्रॉड, हिन्दुस्तान टाइम्स, उद्गार, एशियन आउटलुक, शहपरा, सरस्वती पत्र, साहित्य कुञ्ज, पुस्तक भारती रिसर्च जनरल, प्रयास आदि। कैनेडा में अनेक रेडियो स्टेशन एवं टेलीविज़न चैनल हिंदी कार्यक्रमों का नियमित प्रसारण करते हैं।
ऑस्ट्रेलिया में भारतीयों की संख्या लगभग 2% है और समय के साथ भारतीयों ने संगठन और संस्थाओं का गठन किया है। इन्हीं से हिंदी पत्रकारिता का सूत्रपात यहाँ हुआ है। अनेक हिंदी पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन ने यहाँ हिंदी पत्रकारिता को समृद्ध बनाने में विशेष योगदान दिया है। कुछ पत्र-पत्रिकाओं के नाम है: चेतना, देवनागरी, हिंदी समाचार-पत्रिका, हिंदी पुष्प, संदेश न्यूजलेटर, हिंदी एक्सप्रेस, हिंदी गौरव, भारत भारती, ऑस्ट्रेलियांचल–ई पत्रिका आदि। न्यूज़ीलैंड में भारतीय पत्रकारिता का इतिहास लगभग एक दशक पुराना है जब गुजराती में 1921 में ‘आर्योदय’ पत्र प्रकाशित हुआ था। पुस्तक के लेखक ने बताया है कि यहाँ हस्तलिखित रिपोर्टिंग से हिंदी पत्रकारिता की शुरूआत ‘द इंडियन टाइम्स’ से हुई है। न्यूज़ीलैंड की हिंदी पत्रकारिता में श्री रोहित हैप्पी का योगदान अप्रतिम है और उन्होंने ही ‘भारत-दर्शन’ नामक हिंदी की प्रिंटेड एवं साथ-साथ पहली ई-पत्रिका प्रकाशित की थी। कुछ और पत्र-पत्रिकाओं के नाम हैं: शान्ति सरोवर, महिके वतन न्यूजीलैंड, कूक समाचार पत्र, धनक, हिंदी वाणी, गुलदस्ता, इंडियन एक्सप्रेस, अपना भारत, संगम आदि।
यूरोप महाद्वीप के देशों में हिंदी पत्रकारिता के अंतर्गत ब्रिटेन, नीदरलैंड, जर्मनी, नॉर्वे, हंगरी, बुल्गारिया और रूस देशों की हिंदी पत्र-पत्रिकाओं का विवेचन किया गया है। ब्रिटेन में हिंदी पत्रकारिता का प्रारंभ 1883 में राजा रामपाल सिंह द्वारा लन्दन से प्रकाशित ‘हिंदोस्थान’ से माना जाता है। यहाँ के अन्य हिंदी पत्र-पत्रिकाओं के नाम हैं: तस्वीरी अख़बार, नैवेद्य, प्रवासिनी, चेतक, अमरदीप, हिंदी, पुरवाई, जगतवाणी, भारत भवन, आधुनिक साहित्य यू.के., लेखनी ई पत्रिका आदि। बीबीसी हिंदी की वेब सेवा और सनराइज़ रेडियो एवं टेलीविज़न के विविध चैनल हिंदी कार्यक्रमों का प्रसारण उपलब्ध करा रहे हैं। नीदरलैंड में सूरीनाम से भारतवंशी आकर बस गए हैं और सरनामी भाषा का उपयोग करते हैं इसी से हिंदी पत्रकारिता भी विकसित हुई है। यहाँ से जो पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित हुईं उनमें प्रमुख हैं–सरनामी पत्रिका, भाषा पत्रिका, सादन संदेश, हिंदी पत्रिका, विश्व ज्योति, हिंदी प्रचार पत्रिका, हिंदी भाषा समिति पत्रिका, ओम वाणी रेडियो एवं सूचना पत्रिका, अम्स्टेल गंगा वेब पत्रिका आदि। उजाला रेडियो, रेडियो संगम, सनराइज़ एफ़.एम. हिंदी के कार्यक्रम प्रसारित करते रहते हैं। जर्मनी में हिंदी के अध्ययन-अध्यापन, रेडियो डॉयचे वेले की हिंदी सेवा, जर्मन समाचार (हिंदी), बसेरा पत्रिका की जानकारी देते हुए इस बात का उल्लेख किया है कि प्रवासी भारतीयों की संख्या को देखते हुए हिंदी पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन अवश्य होना चाहिए। नॉर्वे में हिंदी पत्रकारिता का उद्भव ‘परिचय’ पत्रिका के प्रकाशन से माना जाता है, जो श्री कैलाश राय के संपादन में 1978 में अस्तित्व में आई। यह पत्रिका हिंदी, पंजाबी, अंग्रेज़ी तथा नार्वेजियन भाषा की सामग्री से सुसज्जित होती थी। ‘स्पाइल दर्पण’ यहाँ की प्रतिष्ठित पत्रिका है जिसका संपादन का दायित्व प्रवासी साहित्यकार सुरेशचंद्र शुक्ल 1988 से सँभाल रहे हैं, यह पत्रिका द्विभाषी (हिंदी तथा नार्वेजियन) है। अन्य पत्र-पत्रिकाओं में शान्तिदूत, त्रिवेणी पत्रिका, अप्रवासी टाइम्स, वैश्विका उल्लेखनीय हैं। हंगरी में हिंदी पत्रिका के प्रकाशन का श्रेय लयोश मज्ञरी की चौमा डे कोरोश पर ‘Diary of Alexander Chorma’ शीर्षक से प्रकाशित काव्य पुस्तिका के हिंदी अनुवाद को जाता है जो ‘दिन’ पत्रिका में प्रकाशित हुई। प्रयास पत्रिका भी यहाँ से प्रकाशित हुई। बुल्गारिया से मैत्री पत्रिका प्रकाशित हुई। रूस से सोवियत नारी, बाल स्पूतनिक, सोवियत संघ, सोवियत दर्पण, युवक दर्पण, सोवियत भूमि, युनोस्त, भारत भूमि, दिशा, नई दिशा, मैत्री, आरात्रिका नामक पत्रिकाओं, ‘नीक’ समाचार पत्र (संपादक डॉ. बारान्निकोव), विश्व दर्पण समाचार पत्र का प्रकाशन हुआ।
एशिया महाद्वीप के देशों में हिंदी पत्रकारिता खंड में जवाहर कर्नावट ने जापान, यू.ए.ई., कुवैत, क़तर, चीन, तिब्बत, सिंगापुर, श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड और नेपाल की हिंदी पत्रकारिता को विवेचित किया है। जापान से ‘इन्दो बुका’ (भारतीय संस्कृति) पत्रिका जापानी भाषा में प्रकाशित होती थी परन्तु विषयवस्तु भारतीय साहित्य, संस्कृति और हिन्दी भाषा व साहित्य पर आधारित होती थी। सर्वोदय पत्रिका नियमित प्रकाशित हो रही है और अब तक 720 अंक प्रकाशित हो चुके हैं। इसके साथ-साथ अन्य पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित हुईं जिनमें: अंक, इन्दो बुंगाको, ज्वालामुखी, जापान भारती, साकुरा की बयार, हिंदी साहित्य पत्रिका, हिंदी की गूँज (ऑनलाइन पत्रिका) आदि। यू.ए.ई. में पूर्णिमा बर्मन के प्रयास से ‘अभिव्यक्ति’ और ‘अनुभूति’ वेब पत्रिकाओं से हिंदी पत्रकारिता की शुरूआत मानी जाती है। अन्य पत्रिका ‘निकट’ का भी विशेष महत्त्व है। कुवैत से कुवैत समाचार, क़तर से नवचेतना पत्रिका का प्रकाशन हुआ। चीन में हिंदी पत्रकारिता का शुभारंभ पेकिंग रेडियो, चाइना रेडियो इंटरनेशल कार्यक्रमों के हिंदी प्रसारण से होता है। चीन सचित्र पत्रिका, आज का चीन, इंदु संचेतना, चीन भारत संवाद, समन्वय हिंची नामक पत्र-पत्रिकायें प्रकाश में आईं। तिब्बत से प्रकाशित हिंदी की पहली पत्रिका ‘तिब्बत देश’ है जिसका प्रकाशन अब भी हो रहा है। कालांतर में ‘तिब्बत बुलेटिन’ का प्रकाशन हुआ। सिंगापुर से 1941 में पहली हिंदी पत्रिका ‘संगापुरी अखबार’ का प्रकाशन हुआ। अन्य पत्र-पत्रिकाओं में जवान, साधना, दृष्टि, सिंगापुर संगम एवं पल्लवन (ऑनलाइन) आदि महत्त्वपूर्ण हैं। म्यांमार में हिंदी पत्र ‘विश्वदूत’ एवं ‘बर्मा समाचार’ के प्रकाशन ने हिन्दी पत्रकारिता की नींव रखी, बाद में प्राची प्रकाश, ब्रह्मभूमि, आर्य युवक जागृति, मातृभाषा, देवभाषा आदि का प्रकाशन हुआ। श्रीलंका से सुगृहिणी मासिक पत्रिका, हिन्दी जर्नल, श्रीलंका हिन्दी समाचार आदि पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित हुईं। थाईलैंड से थाई-भारत जर्नल, हिन्दी सन्देश का प्रकाशन हुआ। नेपाल में हिन्दी पत्रकारिता का शुभारंभ ‘नेकार पुकार’ से माना जाता है इसके अलावा अन्य पत्र-पत्रिकाओं में जय सोपान, नेपाल टाइम्स, नया संदेश, राजहंस, ज्ञान विकास, जनवाणी, तरंग, सात दिन, आदर्शवाणी, मुक्त नेपाल, नया नेपाल, नव नेपाल, सही रास्ता, नया ज़माना, कारवाँ, साहित्य लोक पत्रिका, लोकमत, हिमालिनी हिमकिरण, विविध भारत आदि उल्लेखनीय हैं।
इस प्रकार यह पुस्तक जहाँ विश्व के अनेक देशों में हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार में पत्र-पत्रिकाओं के योगदान को रेखांकित करती है, वहीं लेखक ने अनेक देशों में हिन्दी के अध्ययन-अध्यापन की परंपरा का भी विश्लेषण कर सार्थक जानकारी हिन्दी समाज को उपलब्ध कराई है। हिन्दी पत्रकारिता के लिए अनेक समर्पित व्यक्तियों और संस्थाओं की भूमिका को गहराई से जानने की जिज्ञासा का बीजारोपण किया है। हमें पूरा विश्वास है कि जवाहर कर्नावट जी का यह प्रयास वैश्विक हिन्दी के स्वरूप के निर्धारण और इस दिशा में शोधकार्य का मार्ग प्रशस्त करेगा।
इसी क्रम में एक जानकारी साझा करना चाहता हूँ कि कुछ वर्षों पूर्व इस विषय को आधार बनाकर पर डॉ. पवन जैन की एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी जिसका नाम था ‘विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता’। इसके प्रकाशक थे राधा पब्लिकेशन, नई दिल्ली 110022। प्रवासी साहित्य एवं उसके प्रचार-प्रसार में तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं की विषय सामग्री के अध्ययन में निश्चित तौर पर उपलब्ध सामग्री उपयोगी हो सकती है।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि ‘विदेश में हिंदी पत्रकारिता’ कृति हिन्दी जगत के लिए उपयोगी साबित होगी और हिन्दी समाज हमेशा लेखक की सृजनात्मक प्रतिभा का ऋणी रहेगा।
समीक्षक: डॉ दीपक पाण्डेय, सहायक निदेशक, केंद्रीय हिंदी निदेशालय
शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार, नई दिल्ली
ईमेल: dkp410@gmail.com
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