इक लगन तिरे शहर में जाने की लगी हुई थी
शायरी | ग़ज़ल अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श’1 Jul 2021 (अंक: 184, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
फ़ाइलुन फ़अल फ़ाइलुन फ़ाईलुन मुफ़ाइलुन फ़ा
212 12 212 222 1212 2
इक लगन तिरे शहर में जाने की लगी हुई थी।
आज जा के देखा मुहब्बत कितनी बची हुई थी।।
आपसे जहाँ बात फिर मिलने की कभी हुई थी,
आज मैं देखा गर्द उन वादों पर जमी हुई थी।
लग रही थी हर रहगुज़र वीराँ हम जहाँ मिले थे,
सिर्फ़ ख़ूब-रू एक याद-ए-माज़ी सजी हुई थी।
सोचता हूँ तक़दीर कितनी थी मेहरबान हम पर,
क्यूँ मगर ये तक़दीर अपनी उस दिन क़सी हुई थी।
आपको भी आ कर ज़रूरी था एक बार मिलना,
चौक पर वही चाय मन-भावन भी बनी हुई थी।
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टिप्पणियाँ
विक्की राव 2021/08/30 02:02 PM
Gajab
कुंदन शर्मा 2021/08/25 03:56 PM
खूबसूरत ग़ज़ल
आलोक वर्मा 2021/07/01 03:19 AM
जी बेहतरीन शायरियां
अशोक वाजपेयी 2021/06/26 04:59 AM
बढिया ग़ज़ल
प्रवीन ठाकुर 2021/06/26 04:57 AM
Waah
Pradeep Bhardwaj 2021/06/24 03:06 AM
Wah khub
अजय चंद्राकर 2021/06/24 01:38 AM
Shandar ghazal .. like it
विनोद उपाध्याय 2021/06/23 08:28 PM
क्या बात है वाह शानदार ग़ज़ल जनाब
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विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
अभय राठौड़ दानापुर 2021/10/20 11:15 PM
वाह वाह