गुनाह तो नहीं है मोहब्बत करना
शायरी | ग़ज़ल अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श’15 Mar 2022 (अंक: 201, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
बह्र : 121 2122 222 22
गुनाह तो नहीं है मोहब्बत करना,
मगर हाँ जब करो इसकी अज़्मत करना।
ये इश्क़ प्यार मोहब्बत जो भी बोलो,
है अर्थ तो ज़माने को जन्नत करना।
करो जहाँ को रौशन मोहब्बत से तुम,
किसी की ज़िंदगी में ना ज़ुल्मत करना।
सफ़र ये दिल से दिल तक का है मोहब्बत,
कभी भी इस सफ़र में ना उजलत करना।
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