नज़ारे
काव्य साहित्य | कविता अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श’15 Jun 2021 (अंक: 183, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
देखते ही ख़ूबसूरत नज़ारे . . .
एक चित्रकार उतार लेता है
नज़ारों को कैनवास पर,
एक फोटोग्राफर क़ैद कर लेता है
उन नज़ारों को कैमरे में,
और
एक कवि अपनी कविता में।
और मैं . . .
देखता रह जाता हूँ
उन नज़ारों को,
उन में खोए हुए
दिल में उतारता चला जाता हूँ,
उनमें जीता चला जाता हूँ।
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टिप्पणियाँ
विक्की राव 2021/08/30 02:04 PM
Nice poem
कुंदन शर्मा 2021/08/25 03:58 PM
बेहतरीन कविता
आलोक वर्मा 2021/07/01 03:23 AM
सुंदर कविता
अशोक वाजपेयी 2021/06/26 05:02 AM
सही बात
अजय चंद्राकर 2021/06/24 01:41 AM
Nice poem
कुलदीप शर्मा 2021/06/17 05:13 PM
सुंदर कविता
अभय चौटाला 2021/06/14 02:13 AM
बहुत अच्छी कविता
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विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
अभय राठौड़ दानापुर 2021/10/20 11:22 PM
Nice poem