ख़ूबसूरती
काव्य साहित्य | कविता वैदेही कुमारी1 Apr 2021 (अंक: 178, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
ज़िंदगी तो बदली हमारी
पर बदली ना सोच तुम्हारी
देते जो ताना तुम हरदम
सोचा तुमने बीती क्या मुझ पर
सुन्दर काया का जो तुमने स्वप्न सजाया
मेरा सुन्दर मन नज़र न आया
दोष नही है तेरा सिर्फ़
समाज ने सिखालाया ये फ़र्क़
गोरा रंग सबको भाया
बाह्य ख़ूबसूरती का फैला साया
मन की सुंदरता का मोल न जाना
तुमने मुझको न पहचाना
मुझको है कहना बस इतना
सबसे अच्छी मन की सुंदरता।
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