वापिस लौटने का मन करता मेरा
काव्य साहित्य | कविता वैदेही कुमारी1 Jun 2022 (अंक: 206, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
थक चुके पैर मेरे रास्तों पर चलते चलते
मुक़ाम तो आये कई
पर ना मिला सुकून कहीं
एक छाँव कभी, अपनेपन को तरसते
दिखता कहाँ कोई अपना साथ चलते लोगों के मेले
कहते हैं लोग क़ामयाबी ख़ुशी देती
पर दिल को चैन ही नहीं
बचपन में हम अक़्सर गिरते
कभी झगड़ते कभी रूठते
पर देह की ये चोट थी मामूली
घाव भर गए बन कर यादें मीठी
असल ज़ख़्म तो अब मैंने देखे
अनदिखे अनजाने से जान जो लेते
कई चेहरे हैं लोगों के
लगाए हैं सबने अनगिनत मुखौटे
देख कर तकलीफ़ औरों की
मन में बरसती उनकी ख़ुशी
हो गई मुझको संतुष्टि पाकर सफलता के तमगे
अब एक क़दम वापसी की ओर
जहाँ मिले माँ की ममता छाँव
और पूरी हो तलाश अपनेपन की।
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