ख़ुशी
काव्य साहित्य | कविता वैदेही कुमारी1 Jun 2022 (अंक: 206, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
क्या होती है ख़ुशी
क्यों रहते हम सब दुखी
जो है ही नहीं पास अपने
आँखें उसको दूसरों में तलाशतीं
क्यों होंठों की हँसी
मुहताज है दूसरों के लफ़्ज़ों की
क्यों हम सोचते
ज़रूरत है अपनी मुस्कान को औरों की
जब तक हम ख़ुद ख़ुश नहीं
कैसे कोई बने मुस्कान हमारी
हम तो मान बैठे
उनको को रहबर ही
पर ये तो है अपनी ग़लती
ख़ुद को ख़ुश रखने की भी
ज़िम्मेदारी हमने औरों को दे दी
कभी सपने में भी पराधीन को ख़ुशियाँ हैं मिलीं?
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