लड़कियाँ
काव्य साहित्य | कविता वैदेही कुमारी1 Feb 2022 (अंक: 198, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
बाँधकर जो मैं ज़ुल्फ़ें निकलती
गुत्थी बुरी नज़रों को भी
ना थमती ना रुकती
बस चलती जैसे बहती कोई नदी
पत्थरों-सी लगती लोगों की बातें कही
रोकती जो रास्ते को मेरे हर घड़ी
शराफ़त को समझती मजबूरी मेरी
कोमल हृदय मेरी कमज़ोरी नहीं
पूजती ये दुनिया कभी दुर्गा कभी काली
नारी की शक्ति को जो न पहचानती
नया जीवन सृजन जो कर सकती
सोच उसमें होगी ऊर्जा कितनी।
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