तलाक़
काव्य साहित्य | कविता वैदेही कुमारी1 Feb 2022 (अंक: 198, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
क्यों शादियाँ हैं टूटतीं
हर रोज़ किसी न किसी की
होती किस की ग़लती
या शिकार बनती ग़लतफ़हमियों की
क्या सच में रिश्तों की डोर
इतनी कमज़ोर है होती
या बातें बनने से ज़्यादा हैं बिगड़ती
ऐसे अनगिनत प्रश्नों की बारिश है होती
जब अख़बारों में तलाक़ की ख़बरें हैं रहती
कैसे जोड़े कोई टूटते रिश्तों की डोरी
कारण बिना जाने बातें सारी अधूरी
क्यों अलग होते वो लोग
होते जो जन्मों-जन्मों के साथी
क्यों चुभती वो बातें
जिनकी रूह हुआ करती थी प्यासी
क्या हैं क्यों हैं सवाल तो है कई
ढूँढ़ते जवाब जिनके हम सब भी
काश होता दादी माँ-सा नुस्ख़ा कोई
आज़मा कर जिसको
रिश्तों में आ जाती नई-सी मज़बूती।
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