अस्तित्व
काव्य साहित्य | कविता वैदेही कुमारी1 Apr 2021 (अंक: 178, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
सफलता की अंधाधुंध दौड़ में
ख़ुद को खो रहे है हम
जो हम हैं नहीं
वो बनने का है वहम
संस्कृति क्या, हमने तो खो दिया अपना वुजूद
हम तो है यहाँ, पर अंतर्मन नहीं है मौजूद
छूट गई सच्चाई और मासूमियत
अब तो है बस झूठ संग आडम्बर
दिल में उठता अब ना कोई बवंडर
चाहे फैला हो चारों ओर दुख का समंदर
हमको बस है ख़ुद से मतलब
दूसरो को ख़ुश करने की नहीं है कोई तलब
खो कर अस्तिव ख़ुद का
क्या रास आएगी तुमको सफलता?
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