सोचा न था
काव्य साहित्य | कविता वैदेही कुमारी1 Apr 2021 (अंक: 178, प्रथम, 2021 में प्रकाशित)
कभी सोचा न था
होगा कभी ऐसा
बंद होगे हम घरों में
सड़कों पे यूँ पसरा सन्नाटा होगा
मजबूरियाँ आएगी इस क़दर
दूर होगी माँ की ममता
यूँ अकेले हो जाएँगे हम
छोड़ जाएगा साया अपना
हँसते खिलखिलाते चेहरे
बन जाएँगे सपने
चारों ओर है बस अँधेरा
अवसाद ने डाला डेरा।
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