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लुप्त होता आत्मविश्वास

 

पिछले कुछ वर्षों से 45 वर्षीय हिंदी अध्यापक निलेश बहुत शुद्ध और गंभीर से गंभीर विषयों पर हिंदी में लिखने लगे हैं। विद्यालय पत्रिका हो, संगीत सरिता हो या कोई अन्य कार्यक्रम, उनके स्पष्ट लेखन की चर्चा और प्रशंसा चारों तरफ़ है। उनकी कविताएँ एवं भाषण सभी को मोहित कर देते हैं। 

एक बार विद्यालय में शिक्षकों की आशुभाषण की प्रतियोगिता थी। इस प्रतियोगिता के लिए कई विद्यालयों के शिक्षक आए थे। सभी को विषय मिलने के बाद 2 मिनट में बोलना था। निलेश के विद्यालय से उसका चयन हुआ था क्योंकि इधर कुछ दिनों से अपनी बेहतरीन हिंदी के लिए चर्चा में था। जब निलेश को आशुभाषण का विषय दिया गया, तो वह ज़्यादा कुछ बोल न पाए और अपनी लड़खड़ाती सामान्य हिंदी से सभी को स्तब्ध कर दिए। प्रधानाचार्य और अन्य शिक्षकों के पैरों तले मानो ज़मीन खिसक गई कि इतना अच्छा लिखने और बोलने वाला निलेश अचानक क्यों असमर्थ हो गया। बाद में निलेश ने स्वयं स्वीकार किया कि अब तक वे अपने लेख और भाषण कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) की सहायता से लिखते थे। 

आज उन्हें अनुभव हुआ कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता निश्चय ही एक अच्छी खोज है, परन्तु उस पर पूर्णतः निर्भरता व्यक्ति को मानसिक रूप से अपाहिज बना देती है। एआई पर अधिक भरोसा करने से इंसान अपनी बौद्धिक क्षमता पर से विश्वास खोने लगता है। 

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