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मानवता का पुनः निर्माण

 

हे देव, सृष्टि का नवनिर्माण कर। 
नर में पुनः मानवता का संचार कर॥
 
रावण जैसे अभिमानियों का नाश कर, 
कर्ण जैसे दानियों का निर्माण कर, 
आदर्श रामराज्य का विधान कर, 
रक्तविहिन समाज का अनुसंधान कर, 
हे देव, सृष्टि का नवनिर्माण कर। 
नर में पुनः मानवता का संचार कर॥
 
पाप तनिक भी न हो समाज में, 
नेक कर्म का भाव हो हर इंसान में, 
मातृ-पितृ प्रेम हो श्रवणकुमार में, 
दशरथ-सा नंदन हो हर धाम में, 
हे देव, सृष्टि का नवनिर्माण कर। 
नर में पुनः मानवता का संचार कर॥
 
भस्मासुर का विष्णु समाधान हों, 
भ्रष्टाचार निवारण हेतु हर कार्य हो, 
आतंकवाद का अहिंसावाद रामबाण हो, 
गार्गी निर्भयादि का सम्मान हो, 
हे देव, सृष्टि का नवनिर्माण कर। 
नर में पुनः मानवता का संचार कर॥
  
धृतराष्ट्र के लोभ का नाश कर, 
जनमेजय सर्प यज्ञ का निर्माण कर, 
नष्ट हो, नर का पशुत्व, ऐसा विधान कर, 
मुक्त व्यक्ति, पर संगठित समाज कर, 
हे देव, सृष्टि का नवनिर्माण कर। 
नर में पुनः मानवता का संचार कर॥
 
रचना होगी जब ऐसे समाज की, 
मानवता होगी मसलन इंसान की, 
गृह-गृह शोभा बिखरी होगी प्रेम की, 
निर्मित होगी तब भू पर सुख स्वर्ग की, 
हे देव, सृष्टि का नवनिर्माण कर। 
नर में पुनः मानवता का संचार कर॥

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