आह्वान
काव्य साहित्य | कविता शक्ति सिंह15 Sep 2025 (अंक: 284, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
आओ मिल-जुलकर धरती को स्वर्ग बनाएँ।
नष्ट होती मानवता को मिलकर बचाएँ॥
हिंदू-मुस्लिम बनकर बाँट लिए देश,
भाषा और जाति से मत बाँटो प्रदेश।
मृत्यु के पश्चात किसने देखा, स्वर्ग या नर्क,
इसलिए स्वार्थ, लालच, धोखा, छल है व्यर्थ।
आओ मिल-जुलकर धरती को स्वर्ग बनाएँ।
अपना है तो ग़लत भी सही लगता है,
पराया है तो सही भी ग़लत लगता है।
यही भेदभाव धरती से मिटाना है,
ग़लत हो या सही साहस से कहना है।
आओ मिल-जुलकर धरती को स्वर्ग बनाएँ।
धन, लूटपाट, धोखे और अराजकता की जननी है,
पद, ईर्ष्या, आक्रोश एवं निंदा की संगिनी है।
कितना अच्छा होता, यदि मिट जाता यह सब,
कितना सच्चा लगता, भाई-भाई का सुख तब।
आओ मिल-जुलकर धरती को स्वर्ग बनाएँ।
मासूमों की मासूमियत देखो, अबला का साबला बनो,
औरों के मन को पढ़ना सीखो, परदर्द समझना सीखो।
इंसानों का ही नहीं पशु-पक्षियों की पीड़ा समझो।
हे मानव आँख और मन की भाषा पढ़ना सीखो।
आओ मिलजुल कर धरती को स्वर्ग बनाएँ।
नष्ट होती मानवता को मिलकर बचाएँ॥
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