ओ मृत्यु, तू किसे डराने आई है?
काव्य साहित्य | कविता शक्ति सिंह15 Sep 2025 (अंक: 284, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
ओ मृत्यु, तू किस डराने आई है?
मैं जीवन पथ का वीर सिपाही हूँ।
हँसते-हँसते हर मौसम को जी आया हूँ।
आशा-निराशा को जीतने वाला राही हूँ।
शत्रुओं के हर प्रहार को अमृत सम पी आया हूँ।
ओ मृत्यु, आज तू मुझे सुलाना चाहती है।
ओ मृत्यु, बता तू मुझसे और क्या चाहती है?
तेरे यमदूत क्या करेंगे? राष्ट्र का काम अभी अधूरा है।
कह दे उन दूतों से देश में अभी भी अँधेरा है।
प्रकाश के आने तक, थोड़ा मौन ही रहना,
जनजीवन में विश्वास भर दूँ, तब तक दूर ही रहना।
ओ मृत्यु, डरपोक नहीं मैं तुझे बताना चाहता हूँ।
ओ मृत्यु, वीर संभाजी का लहू है, बताना चाहता हूँ।
कई अमावस की रातों को मैंने जी लिया है।
पतझड़ की पीड़ा को भी हँसकर पी लिया है।
मौत की सन्नाटों में चमकती हैं, मेरी आँखें,
पहलगाम का बदला लेने को उतावली हैं, मेरी साँसें।
ओ मृत्यु, गिरे हर आँसू को मोती बनाना चाहता हूँ।
ओ मृत्यु, तू रुक जा ज़रा, कुछ सिंदूर बचाना चाहता हूँ।
मेरे जीवन की धारा को अब तक कोई रोक न पाया।
कुछ कायरों ने चुपके से मेरे अपनों को है सुलाया।
उनका अंत करके ही, मृत्यु तेरा पान करूँगा।
मृत्यु से पहले माता-बहनों के लिए इतना सा काम करूँगा।
ओ मृत्यु, मैं भी तेरा वरण करना चाहता हूँ।
ओ मृत्यु, देश की सेवा कर तेरा शरण चाहता हूँ।
ओ मृत्यु, तू किस डराने आई है?
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