पेड़ लगाएँ
कथा साहित्य | लघुकथा डॉ. नवीन दवे मनावत15 Feb 2020 (अंक: 150, द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)
अख़बार में ख़बर प्रकाशित हुई थी। आज सुबह दस बजे गाँव और शहर के हर कोने व सड़कों पर पेड़ लगाये जाएँगे। सभी लोग अपने-अपने वाहन व मोबाईल व कैमरों को लेकर उपस्थित हुए। क़िस्म-क़िस्म के पेड़ लगाये गये। आपस में ख़ुशियाँ बाँटी गईं और पेड़ों के अस्तित्व पर चर्चा हुई। उपस्थित जन सैलाब में दो चार कवि भी थे जिन्होंने दोहों व कविताओं को प्रस्तुत किया।
अख़बार में रंगीन फोटों के साथ न्यूज़ प्रकाशित हुई।
धीरे- धीरे समय गुज़रता गया। मैं लगभग पाँच साल बाद बड़े ही उत्साह से उन पेड़ों को देखने गया। मैं दंग रह गया। अरे! यह क्या? कहीं में ग़लत जगह तो नहीं आया हूँ। तभी आहट सुनाई दी जो धरती में दबे उन्हीं पेड़ों की जिन्हे पाँच वर्ष पहले रोपा गया था।
"हमे लगाया गया पर पुन: किसी ने देखा नहीं, हम पानी के बिना मर गये है!"
मैं द्रवित हो चिंतन में खो गया।
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