पीड़ा और दर्द
काव्य साहित्य | कविता डॉ. नवीन दवे मनावत15 Apr 2019
पीड़ा और दर्द
मोह ही देता है;
निर्मोह नहीं करता
समझौता कभी
जिजीविषाओं को
इतना समेट लेता है
इंसान
उससे नहीं कर पाता
बिछोह!
जब चढ़ता है
मौत के घाट
कोई मानव या पशु-पक्षी
एक ही जिजीविषा
उसे ज़िंदा रहना है
तभी उत्पति होती है
दर्द या पीड़ा की
निर्मोह अडिग रहता है
सीमा पर
सैनिकों की भाँति
न तड़प न दर्द
जिसे अंतत:
मालूम है
मौत निश्चित है, सत्य है
मरणासन्न तक
हम बनते हैं?
जिजीविषाओं व जिज्ञासाओं
के पुलिंदे नश्वर संसार के
तभी बनता दर्द
तभी पैदा होती है पीड़ाएँ
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