अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

राजनीति का झूठ कितना पुरातात्विक? 

 

हमारा खुदाई से चोली-दामन का साथ है। खुदाई और विकास हमारे जीवन का अहम भाग है। खुदाई बंद हो जाए तो विकास का पहिया जाम हो जाएगा। सभ्यताएँ विलुप्त हो जाएँगी। खुदाई हमारी सोच यानी न्यू इंडिया का ड्रीम प्रोजेक्ट है। खुदाई हमारी संस्कार में रची-बसी है। हमारे पुरखों की यह विरासत रही है। खुदाई की वजह से हमने ऐतिहासिक सभ्यताएँ हासिल की हैं, जिनका महत्त्व हमारी इतिहास की मोटी-मोटी किताबों में दर्ज है। खुदाई से निकली मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के साथ मेसोपोटामियाँ जैसी सभ्यताएँ और संस्कृति खुदाई से निकली हैं। जिस मुल्क में अपन रहते हैं वहाँ खुदाई हर नागरिक का जन्मसिद्ध अधिकार है। खुदाई यहाँ की एक कला और संस्कृति है। खुदाई निरतंर चलने वाली प्रक्रिया है। पुल, रेल, सड़कें, बाँध, अवास, अंडरब्रिज, कालोनियाँ, सीवर यह सब खुदाई से निकली बुलंदियाँ हैं। खुदाई से ही पेट्रोल-डीज़ल, गोल्ड, ताम्बा, कोबाल्ट, ज़िंक और जाने क्या-क्या निकला है। 

अब आप सोचिए! खुदाई से ही गड़े मुर्दे उखाड़ने का मुहावरा निकला है। खुदाई और खोज एक दूसरे से जुड़े हैं। खुदाई हमारे बाप-दादाओं का जन्मसिद्ध अधिकार है। तालाब, कुँए, टीले, राजमहल और ऐसिहासिक इमारतें खुदाई का परिणाम है। बिना खुदाई के इनकी नींव नहीं डाली जा सकती है। अपन के मुलुक में खुदाई अधिक गतिमान है। पक्ष हो या विपक्ष सब एक दूसरे की खुदाई में जुटे हैं। सच पूछा जाए तो सत्ता और सिंहासन का खेल इसी खुदाई से निकला है। इसी लिए सत्ता और विपक्ष एक दूसरे के लिए गड़े मुर्दे खोद निकालते हैं। एक दूसरे के लिए क़ब्र भी तैयार करते रहते हैं। यह सब बग़ैर खुदाई के सम्भव नहीं है। पुरातात्विक खुदाई की वजह से ही हमारे कई ऐतिहासिक विवादों के फ़ैसले भी सम्भव हुए। देश की राजनीति में आजकल खुदाई का मौसम चल रहा है। सत्ता विपक्ष, विपक्ष सत्ता की खुदाई कर रहा है। खुदाई की वजह से कई संवैधानिक धाराएँ जड़ से ख़त्म हो गईं। 

समुद्र मंथन से जिन चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई थी उसमें एक खुदाई भी थी जिसे देवताओं और असुरों ने भूला दिया था। लेकिन आधुनिक खुदाई से यह बाहर आई है। खुदाई में देश का बच्चा-बच्चा पी.एचडी. है। रात-दिन एक दूसरे की जड़ें खोदने में हम लगे हैं। हमारे यहाँ खुदाई को राष्ट्रीय शोधसंस्थान का दर्जा मिलना चाहिए। क्योंकि खुदाई हमारा जन्मसिद्ध अधिकार और राष्ट्रीय दायित्व भी है। देश में जितनी अच्छी-बुरी बातें बाहर आती हैं वह सब खुदाई से निकलती हैं। खुदाई में लोगों ने डिक्टेंशन हासिल किया है। इस खुदाई की जद में संतरी से लेकर मंत्री और पीएम से लेकर सीएम तक की डिग्रियों पर भी बावेला मच रहा है। सियासत में तो खुदाई को अतुलनीय महारत हासिल है। भला को सोशलमीडिया का जो आग में घी का काम करता है। 

अपनी चहकती चिड़िया की वाल पर टेंशन वाले डिटेंशन का पूरा इतिहास-भूगोल ही चस्पा कर दिया। इस खेल में बादशाह की जमात वाले सिरों के बाल उड़ गए। सिर खुजलाने के लिए कंघी की खोज होने लगी। खुदाई से अब झूठ जिन्न निकला है। सत्ता और विपक्ष की खुदाई से निकला झूठ ऐतिहासिक है या पुरातात्विक होता है यह जाँच का विषय है। लेकिन भ‍इया कुछ भी हो! हम खुदाई को प्रणाम करते हैं और चाहते है कि यह खुदाई खुदती रहे। 

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'हैप्पी बर्थ डे'
|

"बड़ा शोर सुनते थे पहलू में दिल का …

60 साल का नौजवान
|

रामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…

 (ब)जट : यमला पगला दीवाना
|

प्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…

 एनजीओ का शौक़
|

इस समय दीन-दुनिया में एक शौक़ चल रहा है,…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं