तुम मत आना बस्तर
काव्य साहित्य | कविता प्रभुनाथ शुक्ल15 Jan 2025 (अंक: 269, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
मुकेश! तुम लौटकर मत आना बस्तर?
बस्तर तुम्हारे लिए रो रहा है
तुम्हें खोने के बाद जंगल सो रहा है
झरने, नदिया, पहाड़ और गुफाएँ
तुम्हें भूला नहीं पाएँगे
मुकेश! तुम लौटकर मत आना बस्तर?
तुम अब बस्तर की पीड़ा मत लिखना
आदिवासियों की भूख मत लिखना
जंगल की लूट मत लिखना
भ्रष्टाचार पर तुम चुप रहना
मुकेश! तुम लौटकर मत आना बस्तर?
पत्रकार बनकर मत आना
सच लिखने की हिम्मत मत लाना
नक्सल की पीड़ा पर चुप रहना
लेकिन, बिकना हो तो बस्तर आना
मुकेश! तुम लौटकर मत आना बस्तर?
सच लिखोगे तो मारे जाओगे
सेफ़्टीटैंक में चुन दिए जाओगे
ज़िन्दगी के सपने यूँ लुटा जाओगे
दोस्त! अपनों को बिलखता छोड़ जाओगे
मुकेश! तुम लौटकर मत आना बस्तर?
मरकर भी इतिहास नहीं बन पाओगे
पत्रकार हो तो कोई सम्मान नहीं पाओगे
मौत देने वालों को क्या मौत दे पाओगे
ख़बर लिखने वालो ख़बर बन जाओगे
मुकेश! तुम लौटकर मत आना बस्तर?
तुम शहीद नहीं कहलाओगे
शौर्य और परमवीर चक्र नहीं पाओगे
तुम्हारे नाम पर बस्तर की वह सड़क न होगी
चौराहे पर ख़डी तुम्हारी कोई मूरत न होगी
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