रोज़ सुबह
काव्य साहित्य | कविता पवन कुमार ‘मारुत’1 Dec 2025 (अंक: 289, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
धर्म-पुण्य तो मैं कुछ नहीं जानता
पर एक बात मुझे हमेशा याद रहती है।
रोज़ जाता हूँ सुबह छत पर
नहाने के बाद कपड़े सुखाने के लिए।
तो सूखे पड़े परिण्डों को
पानी से लबालब भर आता हूँ।
(परिण्डा= पक्षियों के पानी पीने का पात्र)
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