थकी हुई जूतियाँ
काव्य साहित्य | कविता पवन कुमार ‘मारुत’1 Dec 2025 (अंक: 289, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
सवाल करती हैं घिसी हुई जूतियाँ,
थक गई हूँ चल चलकर मैं,
और कितना घिसोगे?
सुनकर एक तरफ़ ख़्याल आया,
उन छह-छह मासूम कलित कलियों का,
जो खिलने के लिए तैयार हैं,
सहारा पाकर किसी मज़बूत दरख़्त का।
और दूसरी ओर तमाचा मारते उन बीमार वृक्षों का,
जो बड़े आराम से चोट करके कहते हैं,
बिना भाई की बहन से विवाह नहीं करेंगे॥
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