रहस्य
काव्य साहित्य | कविता पवन कुमार ‘मारुत’1 Dec 2025 (अंक: 289, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
मलहम मल दिया पिल्ले के पैर में
रोटी भी खिलाई पुचकारकर प्यार से
जो बेहद दर्द के कारण
चीत्कार कर रहा था ज़ोर-ज़ोर से।
क्योंकि कभी कहा था माँ ने बचपन में,
समझाकर के कि बेटा—
“जानवर बिना झोली का मँगता होता है”
अब समझा हूँ उस रहस्य को कि
इससे दौलत तो नहीं
परन्तु सुकून अथाह अपार मिलता है॥
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अन्धे ही तो हैं
- अब आवश्यकता ही नहीं है
- अफ़सोस
- आख़िर मेरा क़ुसूर क्या है
- इसलिए ही तो तुम जान हो मेरी
- ऐसा क्यों करते हो
- कितना ज़हर भरा है
- चाय पियो जी
- जूती खोलने की जगह ही नहीं है
- तीसरा हेला
- तुम्हारे जैसा कोई नहीं
- थकी हुई जूतियाँ
- धराड़ी धरती की रक्षा करती है
- नदी नहरों का निवेदन
- नादानी के घाव
- प्रेम प्याला पीकर मस्त हुआ हूँ
- प्लास्टिक का प्रहार
- मज़े में मरती मनुष्यता
- रहस्य
- रोटी के रंग
- रोज़ सुबह
- सौतन
- हैरत होती है
- ज़िल्लत की रोटी
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं