ज़िल्लत की रोटी
काव्य साहित्य | कविता पवन कुमार ‘मारुत’1 Dec 2025 (अंक: 289, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
दादा-दादी ने की है आत्महत्या
शहरवाले घर में।
क्योंकि बेस्वाद बासी रोटियाँ मिलती थीं साँझ-सकारे,
और वो भी ज़िल्लत से चुपड़ी हुई पूर्ण रूप से।
दो रोटियाँ नहीं है आई.ए।.एस. के घर में
बुज़ुर्गों के लिए
जिसकी सम्पत्ति है तीस करोड़ की।
आख़िर आदमियत मर गई है या
कभी थी ही नहीं जहान में॥
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