अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

बेमतलब के रिश्ते

"मिस रमा मैं आपसे कुछ अपने बारे में बात करना चाहती हूँ।"

सिर उठाकर देखा तो सामने क्रिस्टी खड़ी थी, आँखों में कुछ उलझन के साए, आवाज़ में एक नाउम्मीदी, और चाल में कुछ सुस्ती, जो मैं पिछले कई दिनों से देख रही थी उसके चलन में।

क्रिस्टी मेरी असिस्टेंट टीचर है, दो साल से मेरे साथ है। मुझे यह पता है कि उसकी दो बड़ी लड़कियाँ हैं, जिनकी उम्र १७ ओर १५ साल है, एक लड़का जो १२ साल का है। पति से तलाक हो गया है, वह पढ़ाई भी करती है और नौकरी भी। यह चलन अमेरिका में बहुत ही साधारण बात है, हाँ शुरू-शुरू में चकित होने के सम्भावना ज़्यादा रहती है, दिमाग पर अनचाहा ज़ोर लगाने की कोशिश हम हिंदुस्तानियों को रहती है, पर आहिस्ता-आहिस्ता उसी रौ में बह जाते है, जहाँ कुछ ज़्यादा सोचना बेकार सा लगता है।

"बैठो क्रिस्टी और बताओ क्या बात है?" मैंने अपनेपन से उसका हाथ पकड़ते हुए कहा। कुर्सी पर बैठते हुए उसने कहा, "रमा शुड आइ हैव अनदर बेबी? आपकी क्या राय है इस के बारे मैं यह मैं जानना चाहती हूँ।"

अचानक इस सवाल ने मूझे चौंका दिया। क्रिस्टी ३५ साल की जवाँ औरत, न्यू यार्क में पली बड़ी, अभी तीन बच्चों की माँ, और मैं हिन्दुस्तान कि पैदाइश, वहाँ की बुलंदियों से वाकिफ़ आज यहाँ अपने परिवार के साथ रहकर भी अपनी संस्कृति को अपना दाइरा मानकर चलने वाली,अपने परिवार के सदस्यों से भी यही उम्मीद व आस मन में धर कर बढ़ती रहती हूँ। हमारे संस्कार हमारी नींव हैं जिनकी जड़ें बहुत मज़बूत है, शायद इसी लिये आसानी से यहाँ की रौशन राहें जल्दी से हमें गुमराह नहीं कर पाती हैं। बिजली की रफ़्तार से कुछ सवाल, कुछ जवाब ख्याल बन कर मेरे मन में उमड़ने लगे।

"उस बच्चे का बाप कौन होगा?" मैंने पूछा।

"माई बाय फ्रेंड" बहुत ही सरलता से कहते हुए उसने ये भी बताया की पिछले तीन सालों से उसका संबन्ध रहा है उसके साथ।

"यह उसकी इच्छा है या तुम्हारी?" मैंने उसकी आँखों में आँखें डालते हुए पूछा।

"मेरी" कहकर वह मेरे उत्तर का शायद इन्तज़ार करने लगी।

"बच्चा होने पर क्या वह एक बाप होने की जवाबदारी लेगा? क्या वह तुमसे बच्चा पैदा होने के पहले शादी करेगा?" मैंने एक साथ सारे सवाल पूछे लिये। सच तो यह है कि मैं सोचों के समुंदर में अपनी उलझन के साथ बहती जा रही थी। कभी इस तरह की परिस्थिति का सामना हुआ नहीं, और सोच का सिलसिला टूटा क्रिस्टी की आवाज़ से।

"रमा शादी करना कोई ज़्यादा महत्वपूर्ण नहीं है, और ना ही मैं ये उम्मीद रखती हूँ कि वह मेरे इस बच्चे का बाप बनता फिरे या मेरा पति। मैं आज़ाद हूँ, आज़ाद रहना चाहती हूँ, कोई नया बंधन मुझे जकड़े यह मुझे मंजूर नहीं। जहाँ मैं तीन बच्चों को पाल सकती हूँ तो एक और भी संभाल लूँगी। मैं आपसे यह जानना चाहती हूँ कि क्या यह मेरे लिये ठीक होगा? और आपकी अपनी राय क्या है इस बारे में, क्योंकि हिँदुस्तान की परम्पराओं के बारे में मैं बहुत कुछ सुन चुकी हूँ, आपके साथ से भी काफ़ी मुतासिर हूँ, जैसे आप अकेले होते हुए भी परिवार से जुड़ी हुई हैं,तो लगा कि यह जान लूँ कि आप की सोच इस बारे में क्या है?"

"क्रिस्टी यह विषय नाजुक है और इसका सम्बन्ध जुड़ता है सीधे माँ से, चाहे वह हिंदुस्तान में हो या यहाँ पर। गर बच्चा होगा तो वह तुम्हारे शरीर का हिस्सा ही होगा और सम्बन्ध भी तुम्हारा उसके साथ गहरा होगा क्योंकि तुम माँ हो, और सदा रहोगी। पर क्या तुम्हारे तीनों बच्चे उस नये शिशु को अपना पायेंगे, यह सोचना और समय की अनुकूलता के हिसाब से फैसला जो भी करोगी वह तुम्हारा अपना होगा। एक कदम आगे बढ़ाने के लिये तुम तीन कदम का फासला पीछे नहीं छोड़ना चाहोगी। दूसरी बात अगर ज़िंदगी में कहीं आगे चलकर तुम्हारे किसी बच्चे ने यही कदम उठाया तो माँ होकर भी उन्हें कोई सलाह या रहबरी न दे पाओगी,शायद तुम्हारी कोई भी बात उन्हें माननीय ही न लगे तो तुम्हें उस वक़्त बुरा ज़रूर लगेगा। एक नई कड़ी जोड़ के एक नया रिश्ता जोड़ने के लिये तुम अनेक पुराने रिश्तों की जड़ों को कमजोर करने की राह खोल रही हो, फैसला तुम्हें करना है क्योंकि ज़िंदगी तुम्हारी है, पर तुम्हारी ज़िंदगी से जुड़े तुम्हारे ही बच्चे किसकी जवाबदारी है?" मैंने बहाव मेँ कहते हुए उसकी ओर देखा तो पाया वह गंभीरता से मेरी हर बात सुन रही थी।

"क्रिस्टी तुम बहुत ही सोच समझ कर, उसके बाद जो दिल कहे वही करो, जो भी फैसला करोगी उसके अच्छे व बुरे नतीजे के दौर से फिर भी तुम अकेली ही गुज़रोगी। इसलिये जो भी करो ठंडे दिमाग से सोच समझ कर करो। कभी कभी रिश्ते बनाने में हम जितनी जल्दबाज़ी कर बैठते है, जो बाद में समय आने पर खुद से भी निभा नहीं पाते। अगर उनकी अहमियत हमारे स्वार्थ को पूरा करती है तो फिर ऐसे रिशते सिर्फ रस्मों की तरह बन जाते है, जहाँ भावनाएँ कोई महत्व नहीं रखतीं और बिना भाव के रिश्तों की कोई बुनियाद ही नहीं होती। अब तुम अपने आप से पूछो और हर उस सवाल का उत्तर अपने अन्दर की गहराइयों को टटोलकर पा लो।"

ऐसा कहकर मैं चुप हो गई, पर मेरे मन की मैना चँचल चितवन में कुछ और कहे जा रही थी जो मैं अच्छी तरह से सुन रही थी।

साराँश यह है "आज़ाद देश के आज़ाद लोगों को हर तरह की आज़ादी है, पर आज़ादी का सही इस्तेमाल करना पाबंदी के दाइरे में होता है। जंजीरों की जकड़न से आज़ाद होकर हम फिर भी कितने गुलाम रहते हैं, अपनी खाइशों के, अपने मन की आशाओं और आकाँक्षाओं के, और इसी आज़ादी की कीमत भी हम उतनी ही बड़ी चुकाएँगे, अपने ही अस्तित्व की चट्टान पर चोटें खाकर। आज़ादी का दूसरा छोर है बंधन, और बंधन की परिधि में रहकर जो आज़ादी हम इस्तेमाल करते है, चाहे वह शरीर से जुड़ी हो या मन से, वह हमे अच्छे बुरे तजुरबों से सजा जाती है। रिश्तों का दाइरा जितना विशाल, जकड़न उतनी ही मजबूत होगी और जाल में होता है मन, जो बे पर के पँछी की तरह फड़फड़ाता है, पर अपनी ही बेबसी के बुने जाल में घायल व लहूलुहान होकर रह जाता है, तब जाकर उसे आज़ादी का सही मतलब समझ आता है।

"समझ समझ कर समझ को समझना भी एक समझ है जो इतना समझाने पर भी ना समझे वो मेरी समझ में ना समझ है।"

बहुत गलत होने से तकरीबन कुछ सही होना बेहतर है। तकदीर तकदीर कहकर कोई जवाबदारी से मुक्त नहीं हो जाता है क्योंकि तकदीर तो पानी का एक रेला है जो बहता रहता है,जिसे कोई रोक भी नहीं पाया है। पर तदबीर एक ऐसा हथियार है जिसे हम अपनी सही सोच,सुलझे हुऐ ज़मीर के हौसलों से खुद सँवार सकते है, निखार सकते हैं, अपनी तकदीर को एक नई दिशा दे सकते हैं, ठीक उसी तरह जैसे कोई शिल्पकार अपनी कला के हुनर से शिला का सीना चीरकर, पत्थर में जान फूँक देता है। अगर कोई बुराइयों से आगाह करे तो वह सच्चा दोस्त ही हो सकता है, पर इन सब से महत्वपूर्ण बात है सही रिश्तों की पहचान, जो भाँति भाँति के इंद्रधनुषी रंगों से हमारी ज़िंदगी को रँगीन बनाकर कभी तो सँवारने का काम करती हैं तो कभी बिखराव का बहाना भी। कभी नफरत से, कभी गरज से, तो कभी खुदगर्जी से, नित नये रूप धरण कर लेते है रिशते। इन रिश्तों के बीच रहकर, हर दौर से गुजरने के बाद ही तजुर्बों का अँजन पहन कर कुछ साफ देख सकते हैं। तजुर्बा कोई मुफ्त में मिलने वाली चीज तो है नहीं, उसके लिये वक्त और उम्र गुजारनी पडती है, हर रिश्ते से जूझते जूझते उन जँजीरों से आज़ाद होना पड़ता है और फिर एक नया रिश्ता जोड़ना पड़ता है अपने आप से। अपने मन की हर गाँठ को खोलना पड़ता है, दोस्ती करनी पड़ती है खुद से, जब ये सब आवरण उतर जाते हैं तो हमें अपना सही रूप दिखाई देता है। उसीके साथ जुडकर हम एक नया बुलंद रिश्ता कायम करने की चेष्टा करते है जिसकी नींव हर मतलब से परे होती है और यही बेमतलब का रिश्ता हमें हमारी असली मंजिल की ओर ले जाता है।

 अब आप पढ़कर खुद यह विचार करें कि आप किस रिश्ते को महत्व देंगे और किस किस को नहीं, स्वार्थहीन होकर फैसला करें।

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

......गिलहरी
|

सारे बच्चों से आगे न दौड़ो तो आँखों के सामने…

...और सत्संग चलता रहा
|

"संत सतगुरु इस धरती पर भगवान हैं। वे…

 जिज्ञासा
|

सुबह-सुबह अख़बार खोलते ही निधन वाले कालम…

 बेशर्म
|

थियेटर से बाहर निकलते ही, पूर्णिमा की नज़र…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

साहित्यिक आलेख

कहानी

अनूदित कहानी

पुस्तक समीक्षा

बात-चीत

ग़ज़ल

अनूदित कविता

पुस्तक चर्चा

बाल साहित्य कविता

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं

लेखक की पुस्तकें

  1. पंद्रह सिंधी कहानियाँ
  2. एक थका हुआ सच
  3. प्रांत-प्रांत की कहानियाँ
  4. चराग़े-दिल

लेखक की अनूदित पुस्तकें

  1. एक थका हुआ सच