ख़ूबसूरती
काव्य साहित्य | कविता वैदेही कुमारी1 Apr 2021
ज़िंदगी तो बदली हमारी
पर बदली ना सोच तुम्हारी
देते जो ताना तुम हरदम
सोचा तुमने बीती क्या मुझ पर
सुन्दर काया का जो तुमने स्वप्न सजाया
मेरा सुन्दर मन नज़र न आया
दोष नही है तेरा सिर्फ़
समाज ने सिखालाया ये फ़र्क़
गोरा रंग सबको भाया
बाह्य ख़ूबसूरती का फैला साया
मन की सुंदरता का मोल न जाना
तुमने मुझको न पहचाना
मुझको है कहना बस इतना
सबसे अच्छी मन की सुंदरता।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
"पहर को “पिघलना” नहीं सिखाया तुमने
कविता | पूनम चन्द्रा ’मनु’सदियों से एक करवट ही बैठा है ... बस बर्फ…
टिप्पणियाँ
{{user_name}} {{date_added}}
{{comment}}