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किरन जब नभ में छाई 

तीन सौ सत्तर बार 
असत्य बोला तुमने
तम का पर्दा छँटा  
किरन जब नभ में छाई। 


विश्व संगठन में किसने 
ऊँचा क़द चाहा   
पोथी, 
आँखों-देखी का आया दो राहा
अर्थ हुये, मनमाने 
पाखंडी राहों पर 
’टालो बला’ सोच में  
सिसकी दबती पाई। 


जुनून आग सा बहा    
पापी वीर कहाते 
बम धमाके, 
स्तब्ध झील में, खून बहाते
धर्मांध खदेड़ें 
ज्ञानी पंडित को घर से 
काँटे आतंकी के, 
लहू में कलि नहाई।


आड़ विधि की, 
व्यवधानों का गड़बड़ हौवा  
हंस प्रताड़ित, 
काँव काँव करता था कौआ       
अशक्य, असंभव समझा  
जो सतर सालों में 
चाटुकार के 
हवा महल ने मुँह की खाई। 

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