किरन जब नभ में छाई
काव्य साहित्य | कविता हरिहर झा1 Sep 2019
तीन सौ सत्तर बार
असत्य बोला तुमने
तम का पर्दा छँटा
किरन जब नभ में छाई।
विश्व संगठन में किसने
ऊँचा क़द चाहा
पोथी,
आँखों-देखी का आया दो राहा
अर्थ हुये, मनमाने
पाखंडी राहों पर
’टालो बला’ सोच में
सिसकी दबती पाई।
जुनून आग सा बहा
पापी वीर कहाते
बम धमाके,
स्तब्ध झील में, खून बहाते
धर्मांध खदेड़ें
ज्ञानी पंडित को घर से
काँटे आतंकी के,
लहू में कलि नहाई।
आड़ विधि की,
व्यवधानों का गड़बड़ हौवा
हंस प्रताड़ित,
काँव काँव करता था कौआ
अशक्य, असंभव समझा
जो सतर सालों में
चाटुकार के
हवा महल ने मुँह की खाई।
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
हास्य-व्यंग्य कविता
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं