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नई नाक वाले पुराने दोस्त

जो भाईजान छींक को भी फ़ेसबुक पर पोस्ट करते रहे हैं, वे भाईजान फ़ेसबुक से कई दिनों से ग़ायब थे। उन्हें फ़ेसबुक से ग़ायब देख पहले तो बुरे बुर ख़्याल आए, पर फिर सोचा कि ग़ायब होना उनकी पुरानी आदत है। वे कभी भी कहीं से भी ग़ायब होने का हुनर रखते हैं। कभी वे दूसरी बीवी के साथ पहली बीवी के घर से कई कई दिन ग़ायब रहते हैं तो कभी दो दिन का आकस्मिक अवकाश लेकर दो दो महीने तक ऑफ़िस से।

मेरे हिसाब से मेरे समय की किसीकी हर व्यक्तिगत हूदा-बेहूदा जानकारी किसीको मुफ़्त में प्राप्त करनी हो तो फ़ेसबुक सबसे लोकप्रिय माध्यम है। फ़ेसबुक के माध्यम से अपने हर आम और ख़ास का सहज पता चल जाता है कि अपने किस मित्र को साहित्यिक कब्ज़ चली है और किस मित्र को साहित्यिक दस्त लगे हैं। कौन अपना मित्र ऑफ़िस जाने को तैयार हो रहा है, तो कौन मित्र साहब को पटा प्रेमिका के साथ मज़े लूट रहा है। कई बार तो लगता है कि जो पुलिस के हत्थे कोई अपराधी नहीं चढ़ रहा हो तो उसे उसके पीछे भागने के बदले कर्तव्यपालक पुलिस को चाहिए कि वह उसके फ़ेसबुक अकाउंट के पीछे भागे तो वह शर्तिया उसे दबोच लेगी।

कल ही वे ज्यों अपने फ़ेसबुक पर लाइव हुए तो पता चला कि नहीं, वे अभी गुज़रे नहीं, इसी लोक में हैं। फ़ेसबुक पर उन्होंने स्टेटस डाला- नाक का सफल रिप्लेसमेंट। तब यह सब फ़ेसबुक की कृपा से ही पता चला वर्ना मैं तो समझ बैठा था कि... अब मैं तुरंत समझ गया कि बंधु जो इतने दिन तक फ़ेसबुक पर अबसेंट थे, तो इस वज़ह से थे। ख़ैर रिप्लेसमेंटें तो उनकी चलती रहती हैं। कभी टाँग की तो कभी दिल की। पिछले दिनों वे दिमाग़ की रिप्लेसमेंट करवाने की सोच रहे थे। कारण, उन्हें लगने लगा था कि अब उनका दिमाग़ पूरी तरह सड़ हो चुका है, समाजविरोधी हो चुका है।

मित्र अपने थे तो ज्यों ही फ़ेसबुक से उनके नाक की रिप्लेसमेंट बोले तो पहले वाले बदनाम नाक को हटा उसकी जगह नया नाक लगवाने का पता चला तो मैं कृष्ण की तरह नंगे पाँव ही उनके नए नाक के हालचाल पूछने दौड़ पड़ा। बेचारों का नया नाक अब कैसा होगा? पुराने नाक की जगह नया नाक सही भी लगा होगा या... आजकल के डॉक्टरों के बारे में जितना बुरा सोचो, उतना ही कम। कमबख़्त कई बार सर्जरी करनी होती है टाँग की तो कर देते हैं ज़ुबान की। दिल रिप्लेस कर लगाना होता है आदमी का तो लगा देते हैं सूअर का।

मन में कई तरह के उनके नए नाक को लेकर बुरे से बुरे ख़्याल लिए मैं उनक घर पहुँचा तो वे बदले नए नाक पर इज़्ज़त की पट्टियाँ बँधवाए कुर्सी पर बैठे थे। उनके नए नाक पर चमाचम इज़्ज़त की पट्टियाँ बँधी देखीं तो हँसी भी आई। दोस्त! नए पुराने नाक पर इज़्ज़त की पट्टियाँ चाहे जितनी बँधवा लो, पर जो नाक एकबार कट-कट कर ठूँठ रह जाती है, उसकी जगह नई नाक लगाने के बाद भी कोई न कोई पुराना निशान तो रह ही जाता है। उस पर कुदरती इज़्ज़त दिखती ही नहीं। 

ख़ैर, मैं तो उस वक़्त उनकी पुरानी नाक की जगह लगी पट्टियों में नई दुल्हन की तरह चेहरा छिपाए नाक का हालचाल पूछने आया था, नई और पुरानी नाक की प्रतिष्ठा का विश्लेषणात्मक विवचेचन करने नहीं, सो उनको देख, आँखों में नक़ली आँसू ज़बरदस्ती ला उतावलेपन में उनके नव सर्जरित नाक पर झपटने को हुआ तो वे अपनी नई ख़रीद कर लगवाई नाक मुझसे बचाते बोले, “नहीं दोस्त! अभी मत छुओ इसे। कम्बख़्त साफ़ सुथरी नाक का सवाल है। वैसे भी अभी इसमें दर्द हो रहा है। डॉक्टर ने कहा है कि जब तक नई नाक पुरानी नाक की जगह पूरी तरह जम नहीं हो जाती, तब तक कोई चाहे तुम्हारा कितना ही प्रिय क्यों न हो, उसे नई नाक के पास नहीं आने देना, वर्ना इंफ़ेक्शन हो सकता है। ... और फिर... और जगह जो इंफ़ेक्शन हो जाए तो उसे दूर किया जा सकता है, पर इस नई लगी नाक में जो एकबार इंफ़ेक्शन हो गया तो वह मरने के बाद भी नहीं जाएगा। इसलिए प्लीज़ दोस्त! बुरा मत मानना! मैंने इस नई इज़्ज़तदार नाक से बीवी को भी इन दिनों दूर ही रहने की सलाह दी है। बस, एकबार जैसे कैसे नाक पहले वाली पोज़ीशन में आ जाए तो उसके बाद फिर…”

"सॉरी बॉस! मैं तुम्हारे नए नाक को लेकर कुछ ज़्यादा ही इमोशनल हो गया था बस, इसीलिए.... अब कैसा फ़ील कर रहे हो?"

"वह तो नाक पर बँधी इज़्ज़त की पट्टी खुलने के बाद ही पता चलेगा कि.... पर डॉक्टर ने कहा है कि इधर-उधर के इंफ़ेक्शन से जो इस नाक को बचाकर रखा तो सौ प्रतिशत इज़्ज़तदार नाक वापस लौटने की पूरी होप है," कह हज़ार चूहे खाने वाले इज़्ज़तमय भविष्य की ओर आश्वस्त हुए तो मुझमें उस वक़्त उनके आसपास ईमानदारी की एक अँधेरी किरण दिखी। 

"चलो अच्छा किया तुमने जो अपनी बदनाम नाक की जगह नई नाक लगवा ली। आजकल मौसम भी ठीक है। नाक का जख़्म पकने का डर कम ही है। कुछ ही दिनों की बात है। फिर तुम मज़े से एकबार फिर भले ही कुछ दिनों के लिए ही सही, बीसियों भरीपूरी, साफ़ सुथरी नाक वालों के साथ बैठने के क़ाबिल हो जाओगे," मैंने भीतर ही भीतर हँसते हुए उनकी नई नाक के लिए मन ही मन शीघ्र अतिशीघ्र बदनाम होने की शुभकामनाएँ दीं तो उन्होंने मुझसे गंभीर होते पूछा, "वैसे नया नाक लगवाने के बाद नाक बिल्कुल पहले जैसे वाली हो जाएगी न, जब मैं पैदा हुआ था बिल्कुल वैसी? विशुद्ध ईमानदार? क्या मैं नई नाक के साथ फिर निहायत शरीफ़ दिखने लगूँगा न बचपन जैसा?"

"पहले जैसे वाली मतलब?"

"आईमीन, जब मैं प्योर ईमानदार था। उन दिनों जैसी?

"देखो दोस्त! पहली बार वाली ईमानदार नाक पहली बार वाली ही होती है। नक़ली नाकें कितनी ही असली मानकर क्यों न लगवाई जाएँ, पर उनमें वह बात नहीं होती जो असली नाक में होती है। वे बिल्कुल असली लगने के बाद भी कहीं न कहीं बता ही देती हैं कि वे असली दिखने वाली असल में नकली नाकें हैं। चाहे सुश्रुत से ही कटी फटी नाक की जगह दूसरी बिल्कुल साफ़ सुथरी नाक क्यों न लगवा लो। बदनामी का कोई न कोई निशान तो रह ही जाता है उन्नीस तीस का, चाहे डॉक्टर कितना ही कलाकार क्यों न हो।"

"मतलब?? पता चल जाता है कि ये बंदे की ये नेचुरल दिखने वाली नाक असल में नेचुरल नाक नहीं, असली नाक के नाम पर भ्रम है। धोखेबाज़ ने सर्जरी से बदलवा इसे इज़्ज़तदार बनवाया है?" उन्होंने जब पूछने के बाद बदली नाक से गहरी साँस ली तो मैंने मन ही मन फिर सोचा कि जब हर जात के आदमी को अपनी नाक की इतनी फ़िक्र होती है, तो वह ऐसा करता ही क्यों है कि उसे पुरानी कटी नाक की जगह नई नाक लगवाने को विवश होना पड़े? 

"तुमने यह तो देख लिया था न कि डॉक्टर ने तुम्हारी कटी नाक पर आदमी की ही नई नाक लगाई है?"

"क्या मतलब तुम्हारा?? तुम मुझे हौसला देने आए हो या डराने?"

"ये डॉक्टर लोग आजकल प्रयोग करते करते कई बार आदमी की नाक पर सूअर की नाक भी लगा देते हैं।"

"नहीं! ऐसा तो उन्होंने क्या ही किया होगा? मैंने तो उन्हें विशुद्ध ईमानदार आदमी की जैविक नाक मँगवा उन्हें पूरे पचास हज़ार दिए हैं।"

"करते तो नहीं। पर वे जो लालच में आकर कर भी दें तो उनको पूछेगा कौन?" मैंने जो काम करना था, सो हो गया था।

 "तो??" और वे एकाएक किसी अज्ञात शंका के शिकार हो अपने बदलवाए नाक पर बँधी इज़्ज़त की पट्टियाँ पागलों की तरह नोचने लगे तो इससे पहले कि मैं उनके द्वारा उनकी नई नाक पर बँधी इज़्ज़त की पट्टियाँ खुलने पर उनकी बदली नाक देख पाता, मैंने उनकी नई नाक की उनके द्वारा नोच-नोच कर खुल रही पट्टियों पर से एक पर अपनी जेब से लाल स्केचपेन निकाल लिखा- गेट वेल सून! और अपना सामाजिक दायित्व पूरा कर उनके पास से नौ दो ग्यारह हो गया।

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