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कुशल साहब, ग़ुसल लाजवाब

दिसंबर का भरी धूप वाला दिन। 

साहबजी अपने कमरे के चारों कोनों में हीटर ऑन किए छोड़ ऑफ़िस की चोर बग़ल में सूरज से विटामिन डी चुराने में मग्न थे, कुर्सी पर पसरे चाय की चुस्कियाँ लेते। उनके सामने हाथ में डायरी लिए उनका पीए खड़ा था। क्या पता वे कम क्या बक डालें। 

वैसे तो साहबजी अपनी कुर्सी से ज़रा भी नहीं हिलते। यही वजह है कि हर दो महीने बाद उनकी घिसाई कुर्सी बदलनी पड़ती है। 

पर इन दिनों वे पिछले महीने से रेग्युलर धूप में अपनी गोरी चमड़ी काली करने इसलिए आ रहे हैं कि डॉक्टर के पास अपने को चेक करवाने के बाद उसने उन्हें सलाह दी है कि उनकी पाचन पॉवर तो ठीक है पर उनकी हड्डियाँ पल-पल कमज़ोर हो रही हैं। वे इन्हें मज़बूत रखना चाहते हैं तो उन्हें सरकारी के साथ-साथ साथ क़ुदरती तौर पर भी विटामिन डी लेना होगा हर दिन कम से कम दो घंटे अपने ऑफ़िस से बाहर धूप में बैठ कर। 

बस! यही वजह है कि वे सुबह दस बजे ऑफ़िस में आते ही बाहर धूप में कुर्सी पर पसर जाते हैं लेट आने वालों की तरफ़ से अपनी आधी आँखें मूँदे अपना हर अंग करवट बदल-बदल कर सूरज को दिखाते हुए। कई बार उनके इस तरह कुर्सी पर पसरे देख सूरज को भी शर्म आ जाती है, पर उन्हें नहीं आती। उन्हें पता है कि हड्डियों में दम है तो ज़िन्दगी छमा छम है। 

उस वक़्त धूप में आराम से कुर्सी पर अपना अंग-अंग सेकते ऑफ़िस को भूल अचानक उन्हें पता नहीं क्या सूझी कि उन्होंने अपने सामने खड़े अपने पीए को आदेश दिया, “पीए!”

“जी साहब जी!”

“जनता के हितार्थ एक मीटिंग रखो!”

“पर साहबजी! अभी तो आपको विटामिन सी लेते आधा ही घंटा हुआ है और डॉक्टर ने सलाह दी है कि कम से कम दो घंटे तक आपको अपना आगा-पीछा सूरज को हर हाल में दिखाना है।”

“तो दो घंटे बाद एक मीटिंग रखो।”

“जनता के किस हित को लेकर सर?” 

“हमें अपनी जनता को गर्मियों से बचाने के लिए कल से ही आपदा तैयारियाँ युद्ध स्तर पर शुरू करनी हैं। जनता के लिए गर्मियों वाला टोल फ़्री नंबर जारी करना है और . . . और . . .”

“पर सॉरी सर! माफ़ कीजिएगा! अभी तो जाड़ों के दिन हैं। उसके बाद बसंत आएगा फिर गर्मी का सीज़न . . .। तब तक कौन जाने, कौन राजा हो कौन प्रजा . . .  इसलिए मेरा निवेदन है कि जो रखनी ही है तो बसंत की आपदा से जनता को बचाने के लिए मीटिंग रख ली जाए सर . . .” 

“साहब कौन है? तुम कि हम?” वे बदन गरम करते सूरज से अधिक गरमाए। 

“आप साहब!”

“तो क़ायदे से ऑर्डर किसका चलेगा, मेरा कि तुम्हारा?” 

“आपका सर!” 

“तो जो मैं कहता हूँ वो करो। अभी लंच टाइम में एक इमरजेंसी मीटिंग रखो। वैसे भी इन दिनों पूरा ऑफ़िस कमरे में हीटर जलाए धूप सेकने के सिवाय और कुछ नहीं कर रहा है। मतलब, धूप सेकने की पगार? जनता के धन का दुरुपयोग?” 

“नो सर! दिस इज़ टोटली ग़लत सर!” 

“तो जाओ, अभी एक नोटिस निकालो कि सबके साहबजी ने चाहा है कि जनहित में लंच में गर्मियों से निपटने के सरकारी तैयारियों पर आपातकालीन बैठक होनी है।”

“जी साहब!” उनका पीए उनको मन ही मन गालियाँ देता अपने कमरे में नोटिस टाइप करने चला गया। हद है यार! ये साहब जात के जीव समझते क्यों नहीं? हड्डियाँ क्या साहबों की ही कमज़ोर होती हैं, उनके मातहतों की नहीं? पता नहीं ये स्वार्थी कब समझेंगे कि साहबों की कमज़ोर हड्डियों के बिना देश चल सकता है, पर उनके मातहतों की कमज़ोर हड्डियों के बिना ये देश क़तई नहीं चल सकता। चला नहीं सकता क्या, तभी तो चल नहीं रहा है। अरे साहबो! देश हित में कभी अपने मातहतों की हड्डियों के बारे में भी सोचो तो देश का शुद्ध विकास हो। 

और लंच टाइम में साहब के कमरे के साथ लगते कॉन्फ़्रेंस रूम में उनके अंडर के सारे अधिकारी, कर्मचारी उनको गालियाँ देते जुट गए। पता नहीं क्या साहब है ये! ख़ुद तो चौबिसों घंटे यहाँ-वहाँ से खाता ही रहता है पर उन्हें लंच टाइम में भी उनका अपना लाया लंच तक नहीं खाने देता। 

जब साहब के पीए ने देखा कि सारे ऑफ़िस के अधिकारी, कर्मचारी आ गए हैं तो उसने साहब से आदेश माँगते पूछा, “साहबजी! अब सब आ गए हैं तो जो साहबजी का मन हो तो वे मीटिंग शुरू करवाएँ,” पीए के दुम दबाए पूछने पर उन्होंने अपनी अकड़ी गरदन और अकड़ाई। जब उन्हें लगा कि इससे अधिक वे अपनी गरदन नहीं अकड़ा सकते तो उन्होंने बड़े ही मार्मिक स्टाइल से गर्मी के सीज़न में आने वाली जन आपदा की पीड़ा को अपने मन में महसूसते रुँधे गले कहना शुरू किया, “हे मेरे ऑफ़िस के मेरे परम डियरो! लगता है गर्मी के सीज़न में गर्मी की किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए जनता की रक्षा के लिए अब टोल फ़्री नंबर जारी कर दिया जाए। क्योंकि मैं हर मौसम से सौ क़दम आगे चलने का हिमायती रहा हूँ। जनता आपदा में है तो हम हैं। 

“अतः मैंने चाहा है कि मेरे अंडर खाने सॉरी! आने वाले एरिया में अभी से गर्मी से निपटने की तमाम सरकारी तैयारी शुरू कर दी जाएँ ताकि गर्मी ख़राब होने पर हमारा ऑफ़िस अलर्ट पर रहे। इसके बाद भी जो जनता परेशानी में रहे तो हम कर भी क्या सकते हैं?” 

“पर सर! अभी तो दिसंबर चल रहा है। ये दिन जी भर धूप सेकने के दिन होते हैं सर! इसके बाद जनवरी आएगा फिर फरवरी और फिर मार्च। उसके बाद अप्रैल मई। उसके बाद जून जुलाई में जाकर कहीं गर्मी आएगी। आग लगने से पहले कुआँ ख़ुदाई क्यों? कोई जो कूदकर उसमें ख़ुदकुशी कर गया तो मीडिया दोष किसके सिर मढ़ेगा?” 

“देखो दोस्तो! कोई ख़ुदकुशी करे तो सारा दोष कुएँ का। रही बात मीडिया की तो उसको मैं हैंडल कर लूँगा। क़ुदरत का कुछ पता नहीं। हमें दुश्मनों पर भरोसा करना चाहिए, पर क़ुदरत पर बिल्कुल भी नहीं। वह चाहे तो जनवरी में भी हमें झुलसा सकती है। वह चाहे तो फरवरी में भी बाढ़ ला सकती है। हमें तब तक जनता को क़ुदरत के भरोसे बिल्कुल नहीं छोड़ना है जब तक हम उसके भरोसे हैं। इसलिए हम अभी गर्मी से बचने के लिए जनता को टोल फ़्री नंबर जारी कर रहे हैं 888888। यह टोल फ़्री नंबर चौबीस मिनट नहीं, सॉरी! पच्चीस घंटे लगातार चलेगा, हमारे ऑफ़िस का नंबर चले या न! 

“तब गर्मी से परेशान कोई भी ज़रूरतमंद किसी भी स्थिति में इस नंबर पर हमें सहायता के लिए मुफ़्त में फोन कर सकता है। 

“अब मैं साहब! अपने समस्त अधिकारियों, कर्मचारियों को निर्देश देता हूँ कि तुम्हारे द्वारा गर्मी के मौसम में जनहित में सभी सुविधाएँ अभी से सुचारु रखनी शुरू कर दी जाएँ। 

“मैं शर्मा जी को आदेश देता हूँ कि वे मेरे एरिया की जनता के लिए जनता के हित के लिए सड़क के दोनों ओर जल्द से जल्द ऐसे पेड़ लगवाएँ जो चार महीनों में ही जनता को छाया देने लायक़ हो जाएँ। भले ही पेड़ों की जातियाँ हमें विदेशों से क्यों न लानी पड़ें। इसके लिए मेरा विदेश जाना तय रहेगा जितनी जल्दी सम्भव हो। 

“वर्मा जी को आदेश दिए जाते हैं कि वे गर्मी से जनता को नजात दिलाने के लिए अभी से सड़कों पर पंखे, एसी लगवाने की प्रक्रिया शुरू करवा दें। जनता के लिए सड़क के हर मोड़ पर कूलर लगवाने के लिए सड़कों के मोड़ों की तुरंत गिनती कर रिपोर्ट चार दिनों के भीतर मेरी टेबल पर आ जानी चाहिए। 

“और हाँ आप! आप कल से ही सड़कों पर जेसीबी मशीनों के साथ चौबीस घंटे ख़ुद तैनात रहेंगे ताकि गर्मी के सीज़न में हवा को सड़क से गुज़रने में कोई दिक़्क़त न हो। सड़कों की देखभाल भी आप ही करेंगे ताकि गर्मी से पीड़ित एंबुलेंस बिना रोक टोक सरकारी अस्पताल पहुँच जाए। 

“और ठाकुर साहब आप! आपको आदेश दिया जाता है कि आप गर्मी में लू से हताहतों के लिए सरकारी अस्पतालों में अभी से बिस्तरों का मोर्चा सँभाल लें प्लीज़! हम नहीं चाहते कि हमारे राज में गर्मियों में कोई भी जन लू से सड़क पर मरे। 

“और पीए साहब आप! आप गर्मी से लड़ने के लिए अपने ऑफ़िस के संसाधनों की लिस्ट अपडेट कीजिए। जो-जो हमारे पास सामान कम हो, उसके टेंडर कॉल करवाइए। इसके साथ ही साथ आप पुलिस विभाग को मेरी ओर से पत्र भेज दीजिए कि वे कल से ही मेरे इलाक़े में बचे पेड़ों की शीतल हवा की कड़ी निगरानी करते हुए ईमानदारी से हर ज़रूरतमंद आम आदमी तक ड्रोन के माध्यम से पहुँचाना सुनिश्चित करे। गर्मियों में उनकी हवा दूसरे न चोर कर ले जाएँ, इसके लिए वे हवा की सुरक्षा का भी पुख़्ता इंतज़ाम कर हमें समय-समय पर सूचित करेंगे, यह उनको हमारा आदेश है। और हाँ! मेरी ओर से सूरज को भी एक कड़ी चेतावनी वाला पत्र लिखा दिया जाए कि जो वह गर्मियों में हमारी जनता को त्रस्त करने के लिए सरकार द्वारा तय गर्मी के पैमाने से इंच भर भी अधिक गर्म हुआ तो हम उसके ख़िलाफ़ किसी भी हद तक कार्रवाई करने से गुरेज़ न करेंगे। हो सकता है तब हम उसके अपने पर किए अहसान भी भूल जाएँ तो भूल जाएँ। हमारे लिए जनहित सर्वोपरि है। इसीके साथ यह आपातकालीन मीटिंग ख़त्म होती है। अगले जनहित को लेकर अगली मीटिंग में फिर मिलेंगे जल्दी ही,” साहब ने अपना संबोधन यों ख़त्म किया ज्यों उन पर कोई आपदा आ गई हो और फिर ऑफ़िस के पिछली ओर के लॉन में बची धूप में आकर अपनी हड्डियाँ मज़बूत करने कुर्सी पर आड़े-तिरछे पसर गए। 

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