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बाबा के डायपर और ऑफ़िस में हाइपर 

 

एक्स कैडर अधीक्षक रमेश बाबू के पास हर साहब के घर में काम करने का तीस साल का अनुभव है। साहब बदलते रहे, पर वे साहब के घर से नहीं बदले। जनपद का पद-पद का साहब वहाँ से जाता तो वह नए आने वाले साहब के घर में काम करने को पर्सनल स्‍टाफ ऑफ़िस के रमेश बाबू को ही स्ट्रांगली रिकोमेंड करके जाता। 

अधीक्षक रमेश बाबू को पता नहीं ऑफ़िस में काम क्या होता है। रमेश बाबू को पता नहीं फ़ाइल क्या होती है। रमेश बाबू को पता नहीं फ़ाइल पर नोटिंग कैसे होती है। उन्हें केवल इतना भर पता है कि साहब की किचन को चमका-दमका कर कैसे रखा जाता है कि साहब की मेमसाब का दिल लाख चिड़चिड़ाहट से भरा होने के बाद भी बाग़-बाग़ होता रहे। उन्हें केवल इतना भर पता है कि बाज़ार से साहब के नाम पर भूसे के भाव ताज़ी सब्ज़ी कैसे लाई जाती है। उन्हें केवल इतना भर पता है कि साहब की फ़ैमिली को खाने की टेबल पर उँगलियाँ चाटने को कैसे विवश किया जाता है। उसे केवल इतना भर पता है कि साहब तक पर विश्वास न करने वाली साहब की मेमसाब का विश्वास कैसे जीता जाता है। उन्हें केवल इतना भर पता है कि साहब के बच्चों को उनके माँ बाप की ओर से विमुख कर अपनी ओर कैसे आकर्षित किया जाता है। उन्हें केवल इतना भर पता है कि साहब के कुत्ते का प्रिय कैसे हुआ जाता है—आदि आदि। साहब के पर्सनल स्‍टाफ ऑफ़िस से पर्सनल स्टाफ़ होम हुए रमेश बाबू सरकारी काग़ज़ों में अपने ऑफ़िस में अधीक्षक के पद पर पहुँच चुके हैं। उन्हें इस बात का पता तब चलता है जब हर महीने उनके अकाउंट में अधीक्षक वाला वेतन पड़ता है। 

तो कल पता नहीं ये ऐसे कैसे हुआ कि पाँच महीना पहले आए नए साहब के दो साल के इकलौते चींटू बाबा के डायपर आज के ही बचे। वैसे ऑफ़िस से चींटू बाबा के लिए डिप्यूट ऑफ़िसर ऑन स्पेशल ड्यूटी जेओए सुश्री राधा उर्फ़ धाय माँ चार दिन पहले ही हल्ला पा देती है कि चींटू बाबा के डायपर ख़त्म हो रहे हैं। राधा को जब ये पता चला तो उसके पाँव के नीचे से ज़मीन सरकने लगी। उसने ये बात रमेश बाबू से की तो वे भी उसकी समस्या से पल्ला झाड़ गए। ऑफ़िस में लेटे साहब से कौन बैर ले? आख़िर हिम्मत कर ऑफ़िसर ऑन स्पेशल ड्यूटी राधा सिर झुकाए मेमसाब से डरते डरते कहा, “मेमसाब! सॉरी!”

“क्यों क्या हो गया?” मेमसाब ने अपने बाल सँवारते पूछा तो राधा धाय माँ बोली, “मेमसाब जी! बाबा के डायपर आज के ही बचे हैं।”

“क्या करती हो तुम? कितनी बार कहा कि साहब के डायपर ख़त्म हो जाएँ तो हो जाएँ पर बाबा के . . .? साहब को फोन लगाओ कि बाबा के डायपर का अभी इंतज़ाम करें।” मेमसाब ने राधा को आदेश दिया और अपने बाल सँवारने में लग गईं, “मेमसाब जी! मुझे साहब से बहुत डर लगता है। कहीं उन्होंने इस ग़लती के लिए मेरी सर्विसबुक में रेड एंट्री कर दी तो?? आप ही साहब जी को फोन कर दो न प्लीज़! और हाँ! साहब जी से कहना कि अबके जो बाबा को डायपर लाए थे, उसमें बाबा बहुत हैप्पी-हैप्पी रहे। साहब जी को वही वाले डायपर मँगवाने को कहना जी मेमसाब जी!” आख़िर जलते-भुनते मेमसाब ने साहब को सरकारी फोन से डाँट पिलाते कहा, “सुनते हो!”

“कुछ कहो तो मैं सुनूँ भी साहिबा!”

“बाबा के डायपर ख़त्म हो गए हैं। रात को चेंज करने को नहीं हैं।”

“ये राधा भी न! कितनी बार कहा कि बाबा के सामान का ध्यान रखा करे, पर नहीं।”

“चलो, अब जो हो गया, सो हो गया। राधा को डाँटना मत। डाँटा तो मुझसे बुरा कोई न होगा। राधा कह रही है कि तुमने जो अबके बाबा के डायपर जहाँ से मँगावाए थे, वे बहुत कंफ़र्टेबल थे। बाबा उसमें मस्त-मस्त रहे। अबके भी वही डायपर मँगवाना,” कह मेमसाब ने फोन काट दिया। शायद दूसरी ओर से किसीका फोन आ रहा था। 

साहब परेशान! पर शायद वे डायपर तो चंडीगढ़ से आए थे जब उनका पीएस सरकारी गाड़ी लेकर दिल्ली से वंदेभारत में आ रही उनकी साली को लेने गया था। 

असल में बाहर की जितनी भी ख़रीदारी होती है, वे अपने पीएस को ही करने के आदेश देते हैं। तब वह ऑफ़िस के सारे काम छोड़ साहब का सारा सामान ले आता है पूरी ईमानदारी से। उनके पीएस के पास अपने साहब का हर क़िस्म का सामान हर दुकान से लाने की ख़ास कला है। 

परेशानी में उन्होंने अपने पीएस को अर्जेंट अपने कैबिन में बुलाया तो पीएस दूसरे काम बंद कर सिर पर पाँव रख उनके कैबिन में हाज़िर! 

“जी जनाब जी! आदेश सिर माथे?” 

“बीजी तो नहीं हो?” 

“नहीं साहब जी! आपके लिए तो मरने के बाद भी फ़्री ही फ़्री!”

“गुड! तो एक अर्जेंट काम आन पड़ा है।”

“साहब जी! घर का या ऑफ़िस का? 

“यार! ऑफ़िस में तो अर्जेंट आजतक कुछ हुआ ही नहीं। असल में बाबा के डायपर ख़त्म हो गए हैं। कमबख़्त लास्ट मोमेंट में बताती है। लगता है, इस राधा को दूसरे विभाग में ट्रांसफ़र करवाना पड़ेगा। काम को क़तई सीरियसली नहीं लेती। अच्छा तो एक बात बताओ, पिछली दफ़ा जो मैंने तुम्हें बाबा के डायपर लाने को कहा था, कहाँ से लाए थे?” 

“चंडीगढ़ से ही तो लाया था साहब जी! क्यों? ठीक नहीं निकले क्या?” 

“वह शॉप याद है तुम्हें? तुम्हारी मेमसाब बोल रही है कि बाबा उनमें बहुत कंफर्ट रहे।” 

“जी जनाब! सत्रह सेक्टर के एक डायपर शोरूम से लाया था। शोरूम के मालिक को जब पैमेंट करने से पहले यों ही आपका डेजीगनेशन बताया था तो वह आपका नोन निकला था साहब! वाह! साहब जी! आप भी न! ढूँढ़ने लगो तो स्वर्ग में भी चाहने वाले मिल जाएँ।”

“देखो यार! पाँच बजे से पहले डायपर मेरी टेबल पर हर हाल में होने चाहिएँ। डायपर का रैपर मैं तुम्हें व्हाट्सएप करवा दूँगा। और हाँ . . . अबके चार के बदले बीस पैक ले आना। अपनी मेमसाब का ग़ुस्सा तो तुम जानते ही हो। कहीं ऐसा न हो शाम को मुझे ही घर डायपर पहन कर जाना पड़े।”
 
“साहब जी! मेरे होते नो टेंशन! बँट यहाँ से चंडीगढ़ जाने में कम से कम ढाई घंटे लगेंगे। और फिर . . .” 

“अभी ग्यारह ही बजे हैं। ऑफ़िस की गाड़ी ले जाओ। पर पाँच बजे से पहले हर हाल में डायपर मेरी टेबल पर होने चाहिएँ। मान लो, यह तुम्हारा वफ़ादारी का एग्ज़ाम है। जो इसमें तुम पास हो गए तो . . .” 

“समझो लो साहब जी! मैं पास हो गया। पवनसुत हो गया और पवनसुत हो आया,” पीएस ने साहब जी को सलाम ठोका, ऑफ़िस की गाड़ी में सोए ड्राइवर को जगाते कहा, “सुन रे मुरारी! समझ ले आज तेरी ड्राइविंग का इम्तिहान है। पाँच बजे से पहले चंडीगढ़ से चींटू बाबा के डायपर लाकर साहब की टेबल पर रखने हैं। क्या बोलता है?” 

“जय हिंद साहब! सरकारी गाड़ी के ड्राइवर ने पहले गियर के बदले पाँचवें गियर में गाड़ी स्टार्ट की और देखते ही देखते उसका हवाई जहाज़ बना दिया। अब! दुर्घटना, घटना कुछ भी हो जाए। जी साहब जी की इज़्ज़त का सवाल था। 

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