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उधार जन्म-जन्म का बंधन है

 

बंधुओ! गए वे दिन जब समाज में नेकी कर कुएँ में डालने की ग़लत नसीहत दी जाती थी और चंद गधे लोग सच्ची को ऐसे थे भी जो इस कहावत को सुन इमोशनल हो, थोड़ी बहुत नेकी करने के बाद उसे जैसे-तैसे हिम्मत कर कुएँ में डाल दिया करते थे। पर उस कुएँ में चोरी-चोरी इस-उसकी नज़रें बचाए ताका ज़रूर करते थे, यह देखने के लिए कि उनके द्वारा कुएँ में फेंकी नेकी ज़िन्दा है या मर गई है। 

आजकल के दिन नेकी के बदले उधार दे कुएँ में डालने के दिन हैं। बड़ी मुश्किल है भाई साहब! किसीको उधार न दो तो मुश्किल और दो तो तो मुश्किल से भी बड़ी मुश्किल। 

उधार न दो तो उधार माँगने वाला इधर-उधर फ़ज़ीहत करता फिरता है कि बड़ा आया अपने को साहूकार दिखाने वाला। इसकी साहूकारी किस काम की? दस-बीस हज़ार तो उधार के कुएँ में डाल नहीं दे सकता। दस-बीस हज़ार क्या माँग लिए कि राजा भोज से गंगू तेली हो गया। आदमी की अमीरी का पता करना हो तो उसका बैंक बैलेंस न देखकर उसकी उधार देने की हिम्मत चेक करके देखनी चाहिए। बैंक बैलेंस तो आज भिखारियों का भी बड़े-बड़े रईसों से अधिक होता है।

कुछ महीने पहले मेरे भी उधार देने की खुजली हुई और मैंने उसे मिटाने के लिए अपने को साहूकार दिखाने के चक्कर में एक माननीय बैंकरप्ट को उधार दे दिया, यह जानते हुए भी कि वे केवल उधार लेने की कला में निपुण हैं, लिया उधार लौटाने की की कला में नहीं। उनके पास उधार लेने के हर वक़्त एक से एक ऐसे-ऐसे मौलिक बहाने उपलब्ध रहते हैं कि उनके उधार लेेने के हर बहाने पर सपने में भी उधार न देने की पचासियों क़समें खाया हज़ार बार उन पर बलिहारी जाए, तो ऐसे में मैं तो था किस खेत की मूली? 

लेकिन उधार देने के बाद पता चला कि उधारियों के सभ्य समाज में उधार देने के बाद उधार लेने वाले से अपना उधार माँगता-माँगता मर जाता है, पर क्या मजाल जो उधार लेने वाले के कान पर जूँ भी रेंगे। रेंगे तो तब जो उसके कान हों। उधार लेने के बाद उधार लेने वालों का और तो सबकुछ खुला रहता है, पर कान बिल्कुल बंद हो जाते हैं। तब ये भी पता चला कि उधार माँगने के लिए उतने बहाने नहीं करने पड़ते जितने दिया उधार वापस लेने कोे करने बनाने पड़ते हैं। 

ज्यों ही मुझे पता चला कि जिन आदरणीय को मैंने अपना पेट काट जोड़े में से उनके रोने पर उधार दिया था, वे बीमार हो गए हैं तो मेरे पाँव के नीचे से ज़मीन सरकी। किसीको उधार देने के बाद अपने स्वास्थ्य की उतनी चिंता नहीं रहती जनाब! जितनी उधार लेने वाले के स्वास्थ्य की रहती है। उधार लेने और उधार देने वाले में बेसिक अंतर ये होता है कि उधार लेने वाले ने जिस-जिससे उधार लिया हो वह उन सबके बिन बीमारी मरने की दिल से कामना कर सकता है, पर उधार देने वाले उधार लेने वाले के स्वस्थ रहने की अपने अस्वस्थ रहते भी कामना करते हैं, सरकारी बैंकों को छोड़कर। 

जिस उधार देने वाले ने जिसको उधार दिया हो वह उसके चिरंजीवी होने की कामना तब तक करता रहता है, जब तक वह उसका उधार लौटा नहीं देता। पर बहुधा होता ऐसा है कि उधार देने वाला अपने चिरंजीवी होने की परवाह किए बिना उसके लिए इतनी कामनाएँ करता है कि वह उसके लिए कामनाएँ करते-करते उससे बिन उधार लिए ही सिधार जाता है। गंगा को गए हाड़ और निपुण उधारबाज़ों को दिए उधार कम ही वापस आते हैं। 

मेरे क़र्ज़दार जी बीमार हुए तो मैं अपनी बीमारी का भुला उनके हालचाल पूछने नंगे पाँव भगवान से यही प्रार्थना करता उस प्राइवेट अस्पताल जा पहुँचा जहाँ वे उधार के पैसों से अपना वीवीआईपी इलाज मज़े से करवा रहे थे। और इधर उधार देने वाले मर रहे थे सरकारी अस्पताल की लाइनों में धक्के खाते-खाते। जब वहाँ पहुँचा तो उनके हालचाल पूछने आयों की लाइन देख हैरान हो गया। यार! उधार लेकर मस्ती करने वालों के इतने शुभचिंतक! वाह रे ख़ुदा! लगता है आज का दौर ख़ून पसीना एक कर कमाने वालों का दौर नहीं, उधार लेकर प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करवाने वालों का दौर है। 

जनाब का बारी-बारी सब बंधु के हालचाल पूछ रहे थे। सब उनका हालचाल पूछ उनके सिरहाने एक से एक महँगे फलों के लिफ़ाफ़े रखते, उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते और अपने आँसू पोंछते आगे हो लेते। और वे बेशर्म जनाब उनका उदास चेहरा देख तनिक सार्वजनिक मुस्कुरा लेते। 

आख़िर जब उनका हालचाल पूछने की मेरी बारी आई तो मैंने उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना के साथ उन्हें अपनी अपने हिस्से की उम्र में से इतनी की उम्र भी देने की भगवान से प्रार्थना कर डाली कि जब तक वे मेरा लिया उधार न लौटा दें, हे मेरे प्रभु! उन्हें हर हाल में ज़िन्दा रखना। उन्हें पूरी तरह स्वस्थ करना या न, पर मेरा उधार लौटाने लायक़ तो बना ही देना। 

बातों ही बातों में जब मैंने उनका हाल पूछने आयों के बारे में पूछा तो वे बोले, “दोस्त! यहाँ कोई किसीका हाल पूछने नहीं आता। ये सब मेरे बहाने अपना हालचाल पूछने आए थे। उधार दिए का तो उधार देने वाले यमलोक में भी हालचाल पूछने आते हैं, फिर ये तो प्राइवेट अस्पताल है। बिन मतलब किसीकी परेशानियों से यहाँ किसीका कोई लेना-देना नहीं होता दोस्त! अपनों में से अस्सी प्रतिशत अपनों को अपनों की परेशानियों से कोई लेना-देना नहीं होता। रहे अब बीस प्रतिशत, तो वे अपनों की परेशानियों का उनको सहलाते, आह भरते जश्न मनाते हैं। उनकी परेशानियों में शामिल होते रोनी सूरतें बना मन ही मन मुस्कुराते हैं। अपनों के परेशान होने पर उन्हें गीता ज्ञान सुनाते हैं। परेशानियाँ झेलो बंधु! जीवन अमर नहीं, परेशानियाँ अमर हैं। उधार देने वाले नहीं, उधार लेने वाले अमर हैं। अपनों की अपनों पर घात लगा की शैतानियाँ अमर हैं। 

“दोस्त! तुम्हारी तरह इन्हें भी मेरी बीमारी से कोई सरोकार नहीं। मुझे अपने उधार दिए से सरोकार है। ये सब मेरे स्वस्थ होने की कामना लिए नहीं आए थे। अपने उधार लौटाने तक प्रभु से मुझे सलामत रखने की प्रार्थना लेकर आए थे। सच कहूँ तो कुछ तो मुझे पहले दिया अपना पुराना उधार बचाने के चक्कर में मेरे स्वस्थ होने के लिए और उधार भी दे गए ताकि मेरे द्वारा उनसे लिए उधार को लौटाने की उनमें नक़ली ही सही, कम से कम उम्मीद तो बनी रहे। मित्र! प्रेम जन्म-जन्म का बंधन नहीं बनाता, उधार जन्म-जन्म का बंधन बनाता है। 
उधार लेने वाले को मोक्ष मिल जाए तो मिल जाए, पर उधार देने वाले को कभी मोक्ष नहीं मिलता। क्योंकि उसे उम्मीद होती है कि इस जन्म में न सही तो न सही, हो सकता है बंदा अगले जन्म में उससे लिया उधार लौटा दे। बस, इसी झूठी उम्मीद में वह बार बार जन्म लेता रहता है और मरता रहता है। 

“अच्छा, छोड़ो ये सब बेकार की घिसी-पिटी बातें! पहले ये बताओ कि तुम मेरी बीमारी में अस्पताल का बिल चुकाने को और कितने लाए हो?” उन्होंने मुस्कुराते मेरी जेब की ओर टुकुर टुकुर ताकते पूछा और मेरी जेब में अपनी सारी आँखें डाल दीं। अब पता नहीं मुझ मरते ने क्या किया होगा? 

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