उधार जन्म-जन्म का बंधन है
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी डॉ. अशोक गौतम1 Jun 2025 (अंक: 278, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
बंधुओ! गए वे दिन जब समाज में नेकी कर कुएँ में डालने की ग़लत नसीहत दी जाती थी और चंद गधे लोग सच्ची को ऐसे थे भी जो इस कहावत को सुन इमोशनल हो, थोड़ी बहुत नेकी करने के बाद उसे जैसे-तैसे हिम्मत कर कुएँ में डाल दिया करते थे। पर उस कुएँ में चोरी-चोरी इस-उसकी नज़रें बचाए ताका ज़रूर करते थे, यह देखने के लिए कि उनके द्वारा कुएँ में फेंकी नेकी ज़िन्दा है या मर गई है।
आजकल के दिन नेकी के बदले उधार दे कुएँ में डालने के दिन हैं। बड़ी मुश्किल है भाई साहब! किसीको उधार न दो तो मुश्किल और दो तो तो मुश्किल से भी बड़ी मुश्किल।
उधार न दो तो उधार माँगने वाला इधर-उधर फ़ज़ीहत करता फिरता है कि बड़ा आया अपने को साहूकार दिखाने वाला। इसकी साहूकारी किस काम की? दस-बीस हज़ार तो उधार के कुएँ में डाल नहीं दे सकता। दस-बीस हज़ार क्या माँग लिए कि राजा भोज से गंगू तेली हो गया। आदमी की अमीरी का पता करना हो तो उसका बैंक बैलेंस न देखकर उसकी उधार देने की हिम्मत चेक करके देखनी चाहिए। बैंक बैलेंस तो आज भिखारियों का भी बड़े-बड़े रईसों से अधिक होता है।
कुछ महीने पहले मेरे भी उधार देने की खुजली हुई और मैंने उसे मिटाने के लिए अपने को साहूकार दिखाने के चक्कर में एक माननीय बैंकरप्ट को उधार दे दिया, यह जानते हुए भी कि वे केवल उधार लेने की कला में निपुण हैं, लिया उधार लौटाने की की कला में नहीं। उनके पास उधार लेने के हर वक़्त एक से एक ऐसे-ऐसे मौलिक बहाने उपलब्ध रहते हैं कि उनके उधार लेेने के हर बहाने पर सपने में भी उधार न देने की पचासियों क़समें खाया हज़ार बार उन पर बलिहारी जाए, तो ऐसे में मैं तो था किस खेत की मूली?
लेकिन उधार देने के बाद पता चला कि उधारियों के सभ्य समाज में उधार देने के बाद उधार लेने वाले से अपना उधार माँगता-माँगता मर जाता है, पर क्या मजाल जो उधार लेने वाले के कान पर जूँ भी रेंगे। रेंगे तो तब जो उसके कान हों। उधार लेने के बाद उधार लेने वालों का और तो सबकुछ खुला रहता है, पर कान बिल्कुल बंद हो जाते हैं। तब ये भी पता चला कि उधार माँगने के लिए उतने बहाने नहीं करने पड़ते जितने दिया उधार वापस लेने कोे करने बनाने पड़ते हैं।
ज्यों ही मुझे पता चला कि जिन आदरणीय को मैंने अपना पेट काट जोड़े में से उनके रोने पर उधार दिया था, वे बीमार हो गए हैं तो मेरे पाँव के नीचे से ज़मीन सरकी। किसीको उधार देने के बाद अपने स्वास्थ्य की उतनी चिंता नहीं रहती जनाब! जितनी उधार लेने वाले के स्वास्थ्य की रहती है। उधार लेने और उधार देने वाले में बेसिक अंतर ये होता है कि उधार लेने वाले ने जिस-जिससे उधार लिया हो वह उन सबके बिन बीमारी मरने की दिल से कामना कर सकता है, पर उधार देने वाले उधार लेने वाले के स्वस्थ रहने की अपने अस्वस्थ रहते भी कामना करते हैं, सरकारी बैंकों को छोड़कर।
जिस उधार देने वाले ने जिसको उधार दिया हो वह उसके चिरंजीवी होने की कामना तब तक करता रहता है, जब तक वह उसका उधार लौटा नहीं देता। पर बहुधा होता ऐसा है कि उधार देने वाला अपने चिरंजीवी होने की परवाह किए बिना उसके लिए इतनी कामनाएँ करता है कि वह उसके लिए कामनाएँ करते-करते उससे बिन उधार लिए ही सिधार जाता है। गंगा को गए हाड़ और निपुण उधारबाज़ों को दिए उधार कम ही वापस आते हैं।
मेरे क़र्ज़दार जी बीमार हुए तो मैं अपनी बीमारी का भुला उनके हालचाल पूछने नंगे पाँव भगवान से यही प्रार्थना करता उस प्राइवेट अस्पताल जा पहुँचा जहाँ वे उधार के पैसों से अपना वीवीआईपी इलाज मज़े से करवा रहे थे। और इधर उधार देने वाले मर रहे थे सरकारी अस्पताल की लाइनों में धक्के खाते-खाते। जब वहाँ पहुँचा तो उनके हालचाल पूछने आयों की लाइन देख हैरान हो गया। यार! उधार लेकर मस्ती करने वालों के इतने शुभचिंतक! वाह रे ख़ुदा! लगता है आज का दौर ख़ून पसीना एक कर कमाने वालों का दौर नहीं, उधार लेकर प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करवाने वालों का दौर है।
जनाब का बारी-बारी सब बंधु के हालचाल पूछ रहे थे। सब उनका हालचाल पूछ उनके सिरहाने एक से एक महँगे फलों के लिफ़ाफ़े रखते, उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करते और अपने आँसू पोंछते आगे हो लेते। और वे बेशर्म जनाब उनका उदास चेहरा देख तनिक सार्वजनिक मुस्कुरा लेते।
आख़िर जब उनका हालचाल पूछने की मेरी बारी आई तो मैंने उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना के साथ उन्हें अपनी अपने हिस्से की उम्र में से इतनी की उम्र भी देने की भगवान से प्रार्थना कर डाली कि जब तक वे मेरा लिया उधार न लौटा दें, हे मेरे प्रभु! उन्हें हर हाल में ज़िन्दा रखना। उन्हें पूरी तरह स्वस्थ करना या न, पर मेरा उधार लौटाने लायक़ तो बना ही देना।
बातों ही बातों में जब मैंने उनका हाल पूछने आयों के बारे में पूछा तो वे बोले, “दोस्त! यहाँ कोई किसीका हाल पूछने नहीं आता। ये सब मेरे बहाने अपना हालचाल पूछने आए थे। उधार दिए का तो उधार देने वाले यमलोक में भी हालचाल पूछने आते हैं, फिर ये तो प्राइवेट अस्पताल है। बिन मतलब किसीकी परेशानियों से यहाँ किसीका कोई लेना-देना नहीं होता दोस्त! अपनों में से अस्सी प्रतिशत अपनों को अपनों की परेशानियों से कोई लेना-देना नहीं होता। रहे अब बीस प्रतिशत, तो वे अपनों की परेशानियों का उनको सहलाते, आह भरते जश्न मनाते हैं। उनकी परेशानियों में शामिल होते रोनी सूरतें बना मन ही मन मुस्कुराते हैं। अपनों के परेशान होने पर उन्हें गीता ज्ञान सुनाते हैं। परेशानियाँ झेलो बंधु! जीवन अमर नहीं, परेशानियाँ अमर हैं। उधार देने वाले नहीं, उधार लेने वाले अमर हैं। अपनों की अपनों पर घात लगा की शैतानियाँ अमर हैं।
“दोस्त! तुम्हारी तरह इन्हें भी मेरी बीमारी से कोई सरोकार नहीं। मुझे अपने उधार दिए से सरोकार है। ये सब मेरे स्वस्थ होने की कामना लिए नहीं आए थे। अपने उधार लौटाने तक प्रभु से मुझे सलामत रखने की प्रार्थना लेकर आए थे। सच कहूँ तो कुछ तो मुझे पहले दिया अपना पुराना उधार बचाने के चक्कर में मेरे स्वस्थ होने के लिए और उधार भी दे गए ताकि मेरे द्वारा उनसे लिए उधार को लौटाने की उनमें नक़ली ही सही, कम से कम उम्मीद तो बनी रहे। मित्र! प्रेम जन्म-जन्म का बंधन नहीं बनाता, उधार जन्म-जन्म का बंधन बनाता है।
उधार लेने वाले को मोक्ष मिल जाए तो मिल जाए, पर उधार देने वाले को कभी मोक्ष नहीं मिलता। क्योंकि उसे उम्मीद होती है कि इस जन्म में न सही तो न सही, हो सकता है बंदा अगले जन्म में उससे लिया उधार लौटा दे। बस, इसी झूठी उम्मीद में वह बार बार जन्म लेता रहता है और मरता रहता है।
“अच्छा, छोड़ो ये सब बेकार की घिसी-पिटी बातें! पहले ये बताओ कि तुम मेरी बीमारी में अस्पताल का बिल चुकाने को और कितने लाए हो?” उन्होंने मुस्कुराते मेरी जेब की ओर टुकुर टुकुर ताकते पूछा और मेरी जेब में अपनी सारी आँखें डाल दीं। अब पता नहीं मुझ मरते ने क्या किया होगा?
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
60 साल का नौजवान
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | समीक्षा तैलंगरामावतर और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। मैंने…
(ब)जट : यमला पगला दीवाना
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी | अमित शर्माप्रतिवर्ष संसद में आम बजट पेश किया जाता…
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- रावण ऐसे नहीं मरा करते दोस्त
- शर्मा एक्सक्लूसिव पैट् शॉप
- अंधास्था द्वारे, वारे-न्यारे
- अंधेर नगरी फ़ास्ट क़ानून
- अजर अमर वायरस
- अतिथि करोनो भवः
- अपने गंजे, अपने कंघे
- अब तो मैं पुतला होकर ही रहूँगा
- अभिनंदन ग्रंथ की अंतिम यात्रा
- अमृत अल्कोहल दोऊ खड़े . . .
- असंतुष्ट इज़ बैटर दैन संतुष्ट
- अस्पताल में एक और आम हादसा
- आज्ञाकारी पति की वाल से
- आदमी होने की ज़रूरी शर्त
- आदर्श ऑफ़िस के दरिंदे
- आश्वासन मय सब जग जानी
- आसमान तो नहीं गिरा है न भाई साहब!
- आह प्रदूषण! वाह प्रदूषण!!
- आह रिटायरी! स्वाहा रिटायरी!
- आह! वाह! स्वाह!
- इंस्पेक्टर खातादीन सुवाच
- उठो हिंदी वियोगी! मैम आ गई
- उधार जन्म-जन्म का बंधन है
- उधार दे, कुएँ में डाल
- उनका न्यू मोटर वीइकल क़ानून
- उफ़! अब मेरे भी दिन फिरेंगे
- एक और वैष्णव का उदय
- एक निगेटिव रिपोर्ट बस!
- एक सार्वजनिक सूचना
- एप्पों की पालकी! जय कन्हैया लाल की!
- ऐन ऑफ़िशियल प्लांटेशन ड्राइव
- ऑफ़िस शोक
- ओम् जय उलूक जी भ्राता!
- कंघीहीन भाइयों के लिए ख़ुशख़बरी!
- कवि की निजी क्रीड़ात्मक पीड़ाएँ
- काम करे मेरी जूत्ती
- कालजयी का जयंती लाइव
- कालजयी होने की खुजली
- कुक्कड़ का राजनीतिक शोक
- कुछ तीखा हो जाए
- कुशल साहब, ग़ुसल लाजवाब
- केवल गाँधी वाले आवेदन करें
- कॉमेडी एक रिटायरी से
- क्षमाम्! क्षमाम्! चमचाश्री!
- खानदानी सांत्वना छाप मरहमखाना
- गधी मैया दूध दे
- गर्दभ कैबिनेट हेतु बुद्धिजीवी विमर्श
- चमचा अलंकरण समारोह
- चरणयोगी भोग्या वसुंधरा
- चला गब्बर बब्बर होने
- चार्ज हैंडिड ओवर, टेकन ओवर
- चुनाव करवाइए, कोविड भगाइए
- छगन जी पहलवान लोकतंत्र की रक्षा के अखाड़े में
- जनतंत्र द्रुत प्रगति पर है
- जाके प्रिय न बॉस बीवेही
- जातीय गणना में कुत्तों की एंट्री
- जी ज़नाब का मिठाई सेटिंग दर्शन
- जैसे तुम, वैसे हम
- जो सुख सरकारी चौबारे वह....
- ज्ञानपीठ कोचिंग सेंटर
- टट्टी ख़त्म
- ट्रायल का बकरा मैं मैं
- ट्रिन.. ट्रिन... ट्रिन... ट्रिन...
- ठंडी चाय, तौबा! हाय!
- ठेले पर वैक्सीन
- डेज़ी की कमर्शियल आत्मकथा
- डोमेस्टिक चकित्सक के घर कोराना
- तीसरे दर्जे का शुभचिंतक
- त्रस्त पतियों के लिए डायमंड चांस
- त्रासदी विवाहित इश्क़िए की
- दंबूक सिंह खद्दरधारी
- दीर्घायु कामना को उग्र बीवी!
- धुएँ का नया लॉट
- न काहू से दोस्ती, न काहू की ख़ैर
- नंगा सबसे चंगा
- नई नाक वाले पुराने दोस्त
- नमः नव मठाधिपतये
- नशा मुक्ति केंद्र में लेखक
- नो कमेंट्स प्लीज!
- नक़लं परमं धर्मम्
- पधारो म्हारे मोबाइल नशा मुक्ति धाम
- परसाई की पीठ पर गधा
- पशु-आदमी भाई! भाई!
- पहली बार मज़े
- पार्टी सौभाग्य श्री की तलाश
- पावर वालों का पावरफ़ुल कुत्ता
- पुरस्कार पाने का रोडमैप
- पुरस्कार रोग से लाचार और मैं तीमारदार
- पुल के उठाले में नेता जी
- पेपर लीकेज संघ ज़िंदाबाद!
- पैदल चल, मस्त रह
- पोइट आइसोलेशन में है वसंत!
- पोलिंग की पूर्व संध्या पर नेताजी का उद्बोधन
- फिर हैप्पी इंडिपेंडेंस डे
- फोटुओं और कार्यक्रमों का रिश्ता
- बंगाली बाबा परीक्षक वशीकरण वाले
- बधाई हो बधाई!!
- बाबा के डायपर और ऑफ़िस में हाइपर
- बुद्धिजीवी मेकर
- बूढ़ों के लिए ख़ुशख़बरी!
- बेगम जी के उपवास में ख़्वारियाँ
- बैकुंठ में जन्म लेती कुंठाएँ
- ब्लैक मार्किटियों की गूगल मीट
- भगौड़ी बीवी और पति विलाप
- भाड़े की देशभक्ति
- भोलाराम की मुक्ति
- मंत्री जी इंद्रलोक को
- मच्छर एकता ज़िंदाबाद!
- मातादीन का श्राप
- मातादीनजी का कन्फ़ैशन
- माधो! पग-पग ठगों का डेरा
- मार्जन, परिमार्जन, कुत्ता गार्जियन
- मालपुआमय हर कथा सुहानी
- मास्टर जी मंकी मोर्चे पर
- मिक्सिंग, फिक्सिंग और क्या??
- मुहब्बत में राजनीति
- मूर्तिभंजक की मूर्ति का चीरहरण
- मेरी किताब यमलोक पहुँची
- मेरे घर अख़बार आने के कारण
- मॉर्निंग वॉक और न्यू कुत्ता विमर्श
- मोबाइल लोक की जय!
- यमराज के सुतंत्र में गुरुजी
- यान के इंतज़ार में चंद्र सुंदरी
- राइटरों की नई राइटिंग संहिता
- राजनीतिक निवेश में ऐश ही ऐश
- रामदास, ठंड और बयानू सिकंदर
- रिटायरमेंट का मातम
- रिटायरियों का ओरिएंटेशन प्रोग्राम
- रैशनेलिटि स्वाहा
- लिंक बनाए राखिए . . .
- लिटरेचर फ़र्टिलिटी सेंटर
- लो, कर लो बात!
- वदाइयाँ यार! वदाइयाँ!
- विद द ग्रेस ऑफ़ ऑल्माइटी डॉग
- विनम्र श्रद्धांजलि पेंडिंग-सी
- वीवीआईपी के साथ विश्वानाथ
- वैक्सीन का रिएक्शन
- वैष्णवी ब्लड की जाँच रिपोर्ट
- व्यंग्य मार्केटिंग में बीवियाँ
- शर्मा जी को कुत्ता कमान
- शुभाकांक्षी, प्यालीदास!
- शेविंग पाउडर बलमा
- शोक सभा उर्फ टपाजंलि समारोह
- सजना है मुझे! हिंदी के लिए
- सम्मान लिपासुओं के लिए शुभ सूचना
- सम्मानित होने का चस्का
- सर जी! मैं अभी भी ग़ुलाम हूँ
- सरकार का पुतला ज़िंदाबाद!
- सर्व सम्मति से
- सामाजिक न्याय हेतु मंत्री जी को ज्ञापन
- साहब और कोरोना में खलयुद्ध
- साहित्य में साहित्य प्रवर्तक अडीशन
- सूधो! गब्बर से कहियो जाय
- सॉरी सरजी!
- स्टेट्स श्री में कुत्तों का योगदान
- स्याही फेंकिंग सूची और तथाकथित साली की ख़ुशी
- स्वर्गलोक में पारदर्शिता
- हँसना ज़रूरी है
- हम हैं तो मुमकिन है
- हाथ जोड़ता हूँ तिलोत्तमा प्लीज़!
- हादसा तो होने दे यार!
- हाय! मैं अभागा पति
- हिंदी दिवस, श्रोता शून्य, कवि बस!
- हिस्टॉरिकल भाषण
- हैप्पी बर्थडे टू बॉस के ऑगी जी!
- ख़ुश्बू बंद, बदबू शुरू
- ग़ुरबत में शरबत
- ज़िंदा-जी हरिद्वार यात्रा
- ज़िम्मेदारों के बीच यमराज
- फ़र्ज़ी का असली इंटरव्यू
- फ़ेसबुकोहलिक की टाइम लाइन से
- फ़्री का चंदन, नो चूँ! नो चाँ नंदन!
- फ़्री दिल चेकअप कैंप में डियर लाल
कविता
पुस्तक समीक्षा
कहानी
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं